मैं इस साल मई में खमीर आया जो कि कच्छ के कारीगरों के साथ काम करने वाली एक संस्था है। जब से यहां आया हूँ तब से लोगों की जीविका, उनके काम करने के अंदाज़, उनके काम को प्रभावित करने वाले कारक और उनके समुदाय के अन्य लोगों को समझने की कोशिश कर रहा हूँ।
अभी हाल ही में, में अपनी संस्था की तरफ से एक गांव में गया। अभी तक मैंने जितने कारीगरों को देखा था, वे पारंपरिक तरीके से काम कर रहे थे और इस प्रकार के काम में ज़्यादातर पुरुष ही शामिल होते हैं। पर जब मैं प्लास्टिक वीविंग का कार्यक्षेत्र देखने पहुँचा तो मेरा अनुभव बिल्कुल अलग था।क्योकि प्लास्टिक वीविंग अभी कुछ सालों से ही प्रचलित हुई है और इस कार्य में वह सभी बातें हैं जो समुदाय की ज़रूरतों के हिसाब से बहुत अहम हैं।
प्लास्टिक वीविंग क्या है
यह बुनाई की एक ऐसी तकनीक है जिसमें हम अनुपयोगी प्लास्टिक का फिर से प्रयोग करके उससे ज़रुरत की चीज़ें हाथ से बुनकर बनाते हैं। इसके लूम का ढांचा आम बुनाई के लूम जैसा ही होता है पर इसे कम जगह और कम शोर में आराम से चलाया जा सकता है।
प्लास्टिक वीविंग करना बहुत सरल है, और इसे कोई भी जल्दी से सीख सकता है। इसका लूम हल्का होता है, जिससे कोई भी इसे आसानी से चला सकता है। प्लास्टिक होने की वजह से बारिश में भी इसकी बुनाई आसानी से की जा सकती है। इस प्रक्रिया के माध्यम से आप पर्यावरण को भी बचा सकते हो और जो प्लास्टिक अभी तक इधर-उधर फेका जा रहा था, उसका सही उपयोग सुनिश्चित करके उसका दोबारा प्रयोग किया जा सकता है।
इसमें काम करने वाले लोग
प्लास्टिक वीविंग में काम करने वाले ज्यादातर लोग पहले मजदूर थे जो खेतों में या दिहाड़ी पर काम किया करते थे। लेकिन जब से ‘खमीर’ ने इस तकनीक को करना और सिखाना शुरू किया है, बहुत से नए लोग इससे जुड़ने लगे हैं। इसके प्रभाव को हम ऐसे समझ सकते हैं कि आखिरी के कुछ महीनों में हमारे पास जो भी कारीगर आयी हैं वो पहले से खमीर के साथ काम कर रही महिलाओं से इस कला को सीख कर आ रही हैं। जहां पहले उनके पति दूसरे क्राफ्ट पर काम कर रहे थे और वो केवल सहायक की भूमिका में थी, अब वे महिलाएँ प्लास्टिक वीविंग में मुख्य भूमिका में हैं और अपनी सफलता की एक नई कहानी लिख रही हैं।
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प्लास्टिक वीविंग इतना खास क्यों है
इस सवाल को कारीगरों से पूछने पर वो कहते हैं
यह काम अच्छा है, कारीगरी का मजदूरी का नहीं। इस काम को वो अपनी इच्छा के हिसाब से कर सकते हैं। यह बहुत भारी काम नहीं है, तो महिलाएं आसानी से कर सकती हैं और इसे घर पर बाकी काम और बच्चों की देखभाल के साथ खाली समय में भी किया जा सकता है। वो इस काम को अपनी सुरक्षा और आर्थिक स्थिति के लिए अच्छा मानती हैं। बारिश में भी प्लास्टिक के ऊपर कुछ असर न होने की वजह से यह काम हर मौसम का है।
आजीविका के लिए एक शानदार उदाहरण
आज आजीविका के लिए हमारे पास बहुत सारे काम हैं और सरकार अपनी योजनाओं से लोगों को उन कामों तक पहुँचाती है। लोग अपनी सुविधा और परम्परा के हिसाब से अपने लिए काम चुनते हैं। आज तकनीक के इस युग में जब वर्क फ्रॉम होम एक आम बात बन गई है तो लोग चाहते हैं कि कुछ ऐसा हो जहाँ वे अपना और अपनों का ध्यान रख सकें। खुल के जीने और आज़ादी से कुछ भी करने के लिए नौकरियां छोड़ना आम बात होती जा रही है, तो लोग समय की पाबंदियां भी नहीं चाह रहे हैं।
इन सबके आगे एक और बहुत बड़ी इच्छा लोगों के मन में है, वो है आत्मसम्मान और उनका खुद का मूल्य। यह एक चीज मैंने कच्छ के कारीगरों में बहुत देखी है। वे प्लास्टिक वीविंग इसलिए भी करना चाहते हैं ताकि उन्हें यह महसूस हो कि वे अच्छा काम कर रहे हैं। ऐसी भावना उन्हें फैक्ट्री में या मजदूरों की तरह काम करके नहीं मिलती।
यूं तो ऊपर लिखी बातें हर क्राफ्ट या कला में मौजूद हैं पर प्लास्टिक वीविंग में ये खास रूप में है। इसलिए में इसे पर्यावरण को बचाने वाली तकनीक के रूप में ही नहीं बल्कि एक ऐसी कला के रूप में देख रहा हूँ जो आज कच्छ के बहुत से घरों में आम लोगों को आर्थिक रूप से सबल बना रही है और साथ ही उनकी कलात्मक उन्नति में सहयोग करके उनकी आत्मा का भी विकास कर रही है।
बहुत बढ़िया!!!
What kind of plastic can be used? I got to read about something new and interesting. Thanks!