रात के ग्यारह बज रहे है। मैं एक रेलवे स्टेशन पर बैठा हूँ। मेरे सामने बहुत सी ट्रेनें अपनी अपनी मंजिलो की ओर जा रही है। कुछ मंजिल से वापस आ रही है। इन गाड़ियों की आवाजाही के बीच मुझे कुछ दिल्ली की गुलाबी थंड महसूस हो रही है। वही गुलाबी ठंड जो मैं कच्छ के मौसम में भूल गया था। अब महीना है जनवरी का और मैं जिस जगह पर बैठा हूँ वो दिल्ली का एक रेलवे स्टेशन है। मैं यहाँ पर कच्छ जाने वाली गाड़ी का इंतज़ार कर रहा हूँ। यह गुलाबी सर्द मुझे याद दिल रही है, मैं यहाँ तक कैसे पहुंचा और क्या क्या सीख पाया इस सफर में …
सफर की शुरुआत
मैं सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश के एक छोटे गांव गोसाईंगंज में पला बढ़ा। उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए सुल्तानपुर के स्कूल में प्रवेश लिया। जब तक मैं अपने गांव में था मैं बहुत ही तेज तर्रार और अव्वल दर्जे का विद्यार्थी था। पर जब मैं अपनी आगे की पढ़ाई के लिए सुल्तानपुर गया तो मैं सबके बीच कही खो सा गया। मैं सबके बीच सोचता था कि मैं कौन हूँ और क्या कर रहा हूँ? यह सवाल इतना बड़ा था कि उसके बाद मैंने बहुत अलग अलग जगहों में काम किया। जैसे 12वी के बाद पॉलिटेक्निक किया। उसके पीछे सोच थी कि मुझे बचपन से उपकरण ठीक करने अच्छे लगते थे। मशीनों को पढ़ते हुए महसूस हुआ कि मुझे इंसानो के साथ काम करने में ज्यादा मजा आता है।
जब मैं यह सब पढ़ाई कर रहा था तो उसी समय मैंने एक संस्था के लिए स्वयंसेवा शुरू की। जिसमे मैने बहुत से युवा लोगो के साथ उनके जीवन को कैसे 21वी शताब्दी के सापेक्ष एक अच्छी तरीके से बनाया जाए उसपे काम किया। वहाँ काम करते हुए महसूस हुआ कि क्या मिलता है लोगो के साथ उनके लिये काम करते हुए।
पहली नौकरी
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने एक स्टार्टअप के साथ काम शुरू किया। जो शिक्षा के ऊपर काम कर रहा था। उनके साथ काम करते हुए महसूस हुआ कि कुछ छूट रहा हैं, कुछ कमी सी हैं, शायद यह वो अनुभव था जो मुझे मेरे स्वयंसेवी जीवन मे तो उपलब्ध था पर यहां नहीं। कुछ दिन काम करके मैंने यह नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद मुझे समझ नही आ रहा था कि अब क्या करूँ। एक ओर मेरे इस छोटे से अनुभव की ही सोच मेरे दिमाग मे हावी थी तो दूसरी ओर समाज के लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा।
मुझे कुछ अच्छा करना था पर क्या, यह मुझे समझ नही आ रहा था। सामाजिक क्षेत्र में जब मैं एक स्वयंसेवी था तो मजा तो आ रहा था पर मेरी कोई शिक्षा नही थी उस क्षेत्र में। मुझे नही पता था कि मैं वहाँ पर क्या करूँगा। इसलिए मैंने खुद को परखने का फैसला किया और फेलोशिप में आ गया।
फ़ेलोशिप में मेरा आरंभिक जीवन
इंडिया फ़ेलो में मुझे खुद को खोजने का मौका मिला। जहाँ मुझे खमीर नाम की संस्था में भेजा गया। खमीर एक हस्तकला पर काम करने वाली संस्था है। यह गुजरात के कच्छ जिले में काम करती है। मैं जब वहाँ पहुँचा तो शुरू में बहुत कठिनाई हुई पर धीमे धीमे मैं सबके सहयोग से अपने आप को वहाँ की परिस्थितियों में ढाल पाया। जब मैंने आर्टिसन से मिलना शुरू किया, तो मैंने उनसे पूछा कि आप अपने सामान को सस्ता क्यों नहीं बनाते? आप अपने उत्पाद की कीमत को कैसे कम कर सकते हैं? इस पर क्यों काम नहीं किया जाता? पर बाद में समझ आया कि क्राफ्ट सस्ते बेचने के बारे में है ही नहीं और इसे मार्केट कंट्रोल नहीं किया जा सकता। (यह एक स्वतंत्र चीज है, क्राफ्ट की कीमत ज्यादा क्यों है? इसे जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।)
संस्था का सहयोग
जब मैंने लोगों से मिलना शुरू किया, तो मुझे डर था कि मुझे लोग स्वीकार करेंगे या नहीं। हालांकि, मेरे संगठन के सहकर्मियों ने मेरे लिए मेरी यात्रा को सरल बना दिया। उन्होंने समुदाय को मुझसे परिचित किया, समझाया कि मैं एक इंडिया फेलो हूं और समुदाय के साथ रहने और सीखने आया हूं। यह मेरे प्रारंभिक दिनों को अलग और विशिष्ट बना दिया। प्रारंभ में, मैं समुदाय के साथ ज्यादा जुड़ नहीं पाया। लेकिन बाद में, जैसे ही मैं समझने लगा, मैं उनके साथ जुड़ने और उनकी स्थानीय भाषा में उनसे बातचीत का प्रयास करने लगा। इस प्रयासने मुझे उनके साथ जुड़ने में मदद की, न केवल मदद की बल्कि समुदाय से भी अपार प्यार दिलाया।
डर
विभिन्न समुदायों से मिलते वक़्त मुझे हमेशा यह डर रहता था कि क्या वे मुझे समझेंगे या नहीं? मुझे स्वीकार करेंगे या नहीं? हालांकि, समुदाय के साथ सच्चाई और ईमानदारी से व्यवहार करना महत्वपूर्ण है। उन्ही को सुनाए जो आपको समझते है। जो आपको समझ नहीं पाते, उन्ही से भी बिना किसी पूर्वाग्रह के उतनाही प्यार करे। विश्वास करें कि समय लगेगा लेकिन वे भी खुले दिल से आपको स्वीकार करेंगे।
कारीगरों से मैं जो सीख पाया
मैं इस यात्रा में बहुत सारे कारीगरों से मिला और उनसे मिलकर मुझे साधना करने का अहसास हुआ। जब आप किसी काम में पूरी तरह से रम जाते हैं, तो आपका अध्यात्मिक उत्थान स्वयं ही हो जाता है। मुझे यह भी अनुभव हुआ कि कबीर दास और रविदास जैसे लोग न केवल किसी दूसरे ग्रह से आए हैं, बल्कि ये कला ही उनको इतना उत्साही और प्रेरित करती है। मेरे पास कारीगरों से सीखा हुआ यह विचार है कि हिज्र (यात्रा) बहुत महत्वपूर्ण है। यह न केवल अन्य सभ्यताओं और संस्कृतियों को सीखने का अवसर प्रदान करती है, बल्कि हमारे आत्मिक और सामाजिक उत्थान के लिए भी आवश्यक है।
कारीगरों ने मुझे सिखाया कि कुछ बदलाव के लिए हमें अपने परिवार के साथ काम करना चाहिए, और मशीनों के इस्तेमाल के बजाय हमें स्वयं को समर्पित करना चाहिए। इन अनुभवों ने मुझे सिखाया कि भौतिक वस्तुओं के अतिरिक्त, आत्मिक शांति, परिवार का साथ, और सामाजिक-आध्यात्मिक उत्थान हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है।
कला को बस कलाकार समझ सकता है
अगर आप किसी कलाकार को अच्छे ढंग से समझाना चाहते हैं तो केवल आप उसके सामानों को देखकर नहीं समझ सकते। आपको उनकी यात्रा में, उनके जीवन की गहराई में उतरना होगा। इसलिए उनके काम को भी सीखने की कोशिश करनी होगी। इसी चीज़ का मौका मुझे खमीर में मिला। मैंने वहाँ पर कुछ क्राफ्ट सीखने की कोशिश की। जैसे ही मैंने चरखा चलाया और धागा उन्हीं संवारते हुए देखा। मुझे अहसास हुआ कि कारीगर बनना कितना महत्वपूर्ण है।
कपास कातते हुए मुझे यह भी समझ में आया कि जीवन के मूल्य भी क्राफ्ट में निहित हैं। इस काम को करते समय मुझे पता चला कि धैर्य कितना महत्वपूर्ण है।
जैसे ही ट्रेन की सीटी बजती है, मुझे फिर से गुलाबी थंड महसूस होने लगती है। और मैं यथार्थ में लौट के दौड़ कर ट्रैन पकड़ता हूँ। जिसमे कोई इस गुलाबी सर्द को महसूस करने चढ़ा है तो कोई इस गुलाबी सर्द से भागने! पर सफर तो सबका है।
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