मेरी नज़र में दिल्ली

by | Jun 21, 2023

इण्डिया फैलो मिड पाॅइन्ट कार्यशाला के लिए मेरा १० दिन के लिए दिल्ली जाना हुआ। वैसे मैं पहले भी दिल्ली जा चुका हूँ पर इससे पहले कभी इतने दिनों तक वहां नहीं रूका और न ही इतना घूम सका। मैं सवाई माधोपुर, राजस्थान में एक छोटे से गाँव मखौली में रहता हूँ। इससे पहले मुझे कई जगह जाने और घूमने का मौका मिला लेकिन वह सब इससे कम समय के लिए था। इस बार मैंने दिल्ली को अच्छे से व नज़दीक से देखा। दिल्ली बहुत बड़ा शहर है और भारत की राजधानी भी।

वहाँ के लोगों के लिए जो रोजमर्रा की चीजें होंगी वे मेरे लिए कुछ अलग थी, जैसे 12 प्लेटफार्म वाला रेल्वे स्टेशन, लोगों की भीड़, ट्राफिक और गाड़ियों की भरमार। जहाँ पर हमारी वर्कशाॅप थी वह जगह हवाई अड्डे से नजदीक थी जिस कारण वहाँ से हर दो मिनट में हवाई जहाज़ निकलते थे। बिल्डिंग की छत पर जाओ तो ऐसा लगता था कि मानो ये हवाई जहाज हमारे सर के ऊपर से ही जा रहे हैं।

कार्यशाला के दौरान ही मुझे दिल्ली में अलग-अलग जगहों पर घूमने का मौका मिला जिनमें शामिल थे लोधी गार्डन, इण्डिया गेट, निज़ामुद्दीन दरगाह, आंध्रा भवन, सरोजनी नगर मार्केट, क़ुतुब मीनार और अन्य। लोधी गार्डन जैसा सुन्दर गार्डन मैंने पहली बार देखा जिसमे नित्य अलग-अलग प्रकार के पौधे दिखे। हमने वहाँ खो-खो और वॉलीबाल भी खेला। यहाँ के मस्जिद और पुराने मकबरों में बहुत इतिहास छुपा हुआ है। उसी शाम ‘अकबर द ग्रेट नहीं रहे नाम का एक नाटक देखा जिसमें इतना मज़ा आया कि मैं अपनी हंसी रोक नहीं सका। यह नाटक देश की राजनैतिक स्थिति पर एक कटाक्ष था।

अपने को-फ़ेलोस और टीम के साथ अमन बाग़ में

यहाँ घूमने के लिए बहुत कुछ है। कई जगहें तो विश्वप्रसिद्ध मानी जाती हैं। लेकिन यह काफी भीड़-भाड़ वाली जगह भी है। ऐसा लगता है कि यहाँ के लोगों का बस एक ही लक्ष्य है चलते जाना। दिन हो या रात लोग आगे बढ़ते रहते हैं। हर किसी के दिमाग में कोई न कोई काम चलता रहता है जो व्यक्ति को ठहरने नहीं देता। मुझे ऐसा भी अनुभव हुआ कि हमारे गाँव की अपेक्षा यहाँ महंगाई अधिक है। मुझे एक जगह से दूसरी जगह ऑटो से आने-जाने में बहुत खर्चा करना पड़ा और उस समय मुझे मेरे गाँव की याद आयी कि वहाँ हम कैसे काफी कम किराये में ज़्यादा दूर जा सकते हैं। यहाँ पर जीवन व्यतीत करने के लिए अधिक संसाधनों की ज़रूरत होती है जिसके कारण लोग दिन-रात काम-धंधे में लगे रहते हैं। बड़ा शहर होने के कारण आस-पास के मजदूर वर्ग के लोगों को भी यहाँ रोज़गार मिल जाता है।

यहाँ की सबसे खराब बात जो मुझे लगी वह था यहाँ का प्रदूषण। प्रदूषण के कारण शाम के समय अंधकार जैसा हो जाता था। वातावरण धुंधला-धुंधला सा रहता था। वैसा स्वच्छ व शुद्ध वातावरण दिल्ली में नहीं है जो मेरे गाँव में है। बावजूद इसके, 10 दिन भी यह शहर देखने के लिए कम लगे। पता ही नहीं चला कि समय कब निकल गया।

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