मैं आजीविका ब्यूरो द्वारा शुरू किया गया शेल्टर स्क्वायर फाउंडेशन में इंडिया फेलो के रूप में पिछले ४ महीनो से काम कर रहा हूँ। यह सूरत से २० किलोमीटर दूर सायन में स्थित एक हॉस्टल है, रिपब्लिक हॉस्टल, जो श्रमिकों के लिए शुरू किया गया है। इन् ४ महीनो के समुदाय से जुड़े कुछ दिलचस्प कहानियां सांझा कर रहा हूँ। मैं अब इनके साथ यही रहता हूँ। यह आपको एक झांकी देगा इन् तमाम श्रमिक मजदूरों के जीवन जापन का, और शायद आप कुछ समय बिताए उनके जिंदगियों के बारे में सोचते हुए।
गोदावरी भाई को गिरा मिला एक मोबाइल फ़ोन
एक दिन सुबह टिफ़िन डिलीवरी करते समय गोदावरी भाई (मेस संचालक) को एक स्मार्टफोन गिरा हुआ मिला। उन्होंने उसे उठाकर अपने पास रख लिया और इसके बारे में शिवा भाई (एसोसिएट, आजीविका ब्यूरो) को बताया। कुछ देर बाद उन्हें उस स्मार्टफोन के मालिक का फोन आया, तो उसे मिलने और फ़ोन वापस लेने के लिए हमारे हॉस्टल बुला लिया। इधर गोदावरी भाई ने हॉस्टल के बाकी लोगों को इस बात की जानकारी दी और उनका राय जानने का प्रयास किया कि उन्हें वह मोबाइल वापस देना चाहिए या नहीं। सभी का यही मत था कि उन्हें वह फ़ोन उसके मालिक को लौटा देना चाहिए।
जब फ़ोन मालिक हमारे हॉस्टल में आया, तो वो 22-23 वर्ष का एक युवा कामगार निकला जिसकी महीने की तनख्वाह 15-17 हज़ार रुपये होगी। इसे जांचने के लिए कि फ़ोन सच में उसका है या नहीं, शिवा भाई ने उससे फ़ोन का पासवर्ड पूछा और उस पासवर्ड से फ़ोन लॉक खुल गया। सभी को इस बात की हैरानी हुई कि ओडिशा से आया यह प्रवासी मज़दूर 20 हज़ार रुपये का फ़ोन रखता है। हॉस्टल के लोगों ने उसे समझाया कि उसे ज़्यादा पैसे बचाना और घर भेजना चाहिए, न कि ऐसी महंगी चीज़ों में खर्च करना चाहिए जिसकी वर्त्तमान में उसे कोई ख़ास आवश्यकता नहीं है। हमने फ़ोन देते समय उसका एक वीडियो बनाया, जिसमें उसने कहा कि उसका फ़ोन जो सुबह भूला गया था, उसे रिपब्लिक हॉस्टल वालों ने उसे वापस किया है।
इस घटना के कुछ घंटे बाद एक सज्जन हमारे पास आए और गोदावरी पाढ़ी (गोदावरी भाई) के बारे में पूछा। बात करने पर पता चला कि वह स्कूली दिनों में गोदावरी भाई के सहपाठी हुआ करते थे। जिस लड़के का फ़ोन हमें मिला था, वह उनका भतीजा लगता है। सालों तक पावर लूम्स में मज़दूरी करने की वजह से उनका शरीर अब कमज़ोर पड़ गया है। आँखों की रौशनी भी काम हो गई है। उन्होंने अंग्रेजी (व्याकरणिक रूप से गलत) में बताया कि वह डेस्क जॉब की तलाश में हैं लेकिन कंप्यूटर टेक्नोलॉजी में पारंगत नहीं हैं। अगर उन्हें कोई ऐसी नौकरी नहीं मिली तो वह गाँव वापस चले जाएंगे।
बलराम भुइयां
बलराम भुइयां एक दिन भारी नशे की हालत में हॉस्टल लौटा और उसी हाल में सो गया। उसके साथी कामगारों से पता चला कि उसने अपने बिस्तर पर ही पेशाब कर दिया है। हॉस्टल संचालकों ने उसे चेतावनी दी कि अगर दोबारा ऐसा हुआ तो उसे हॉस्टल से निकाल दिया जाएगा। होश में आने के बाद उसने अपने बिस्तर को साफ किया और हॉस्टल कर्मचारियों से माफी मांगी। उसने आश्वासन दिया कि ऐसा फिर कभी नहीं होगा। लेकिन, अगले दिन उसने और भी बदतमीजी की। न केवल बलराम नशे में आया, उसने अपने ही गाँव से आए एक साथी कामगार पर उल्टी कर दी। उस कामगार ने ज़्यादा कुछ नहीं कहा और बलराम द्वारा फैलाई गई सारी गंदगी को साफ किया। उसे नीचे हॉल में ला कर सुलाया गया लेकिन वह बाहर दरवाजे के पास जाकर सो गया।
होश आने पर उसने फिर से हॉस्टल कर्मचारियों से एक आखिरी मौके के लिए निवेदन किया। निवेदन करते समय उसने गाँव में रह रहे उसकी पत्नी और बच्चों का भी जिक्र किया। इस घटना के बाद २ दिन तक उसने शराब नहीं पी और ठीक बर्ताव किया। 2 दिन बाद, बलराम फिर शराब पी कर आया। हालांकि, इस बार ना उसने कोई गंदगी फैलाई ना हंगामा किया। उसने कम खाना खाया। २-३ दिनों के बाद उसे काम से निकाल दिया गया। उसे दूसरा कोई काम नहीं मिला, तो उसने हॉस्टल छोड़ दिया।
गोदावरी बनाम महेश्वर
एक सुबह, महेश्वर जी (हॉस्टल मैनेजर) मेस में इस्तेमाल के लिए कुछ सामान लेकर आए। क्योंकि सामान भारी था, वह अकेले इसे हॉस्टल के माले तक चढ़ाकर नहीं ला सकते थे। उन्होंने गोदावरी भाई को फ़ोन किया और नीचे आकर सामान लेजाने में मदद करने का निवेदन किया। गोदावरी भाई ने यह कहकर मदद करने से मना कर दिया कि सामान उठाना उनका काम नहीं है। महेश्वर जी ने कहा कि यह काम गोदावरी भाई का ही है क्योंकि वह मेस संचालक हैं। लेकिन उन्हें यह काम करना पड़ रहा है। कोई हेल्पर भी वहाँ मौजूद नहीं है। इस बात पर दोनों के बीच बहस हो गई। जब यह बात शिवा भाई को पता लगी, तो उन्होंने हॉस्टल पहुंचकर दोनों को साथ बैठाया और समझाया कि यहाँ सभी को मिल-बाँट कर काम करना है। शिवा भाई ने कहा कि अगर हम किसी भी कार्य को अपना, न की बड़ा या छोटा समझकर करें, तो ही यह हॉस्टल और मेस अच्छे से चल पाएगा
मुन्ना गौड़ा
मुन्ना गौड़ा हमारे हॉस्टल में रहता था। वह एक अति आलसी व्यक्ति था। काम के वक्त भी आलस दिखने की वजह से उसे वहां से निकाल दिया गया जिसके कारण उसकी आय का स्रोत खत्म हो गया। हॉस्टल में उसके कुछ 5 हजार रुपये बकाया था। मेस संचालक गोदावरी भाई ने उससे कहा कि वह हमारे मेस में ही हेल्पर का काम करेगा, जिससे उसका बकाया भी खत्म हो जाएगा और वह कुछ पैसा भी कमा लेगा। वह ऐसा करने को राज़ी हो गया।
कुछ दिन काम करने के बाद जब उसका बकाया खत्म हुआ, साथ ही कुछ और पैसे उसने कमा लिए तो उसने गाँव जाने की ज़िद की। उसकी पगार के जो कुछ पैसे हमारे पास बचे थे, जो हमने उसे दे दिए। एक हफ्ते तक गायब रहने के बाद वह हमारे यहाँ वापस आ गया। उसने बताया कि वह गाँव नहीं गया बल्कि अपने किसी जान-पहचान के यहाँ ठहरा हुआ था। मुन्ना ने कोई नया काम नहीं पकड़ा। कुछ दिन यहाँ रहने के बाद उसे समय पर मासिक शुल्क जमा नहीं करने के कारण हॉस्टल से निकाल दिया गया।
मारामारी: होली की बधाइयाँ
होली की रात, 10 कामगारों को छोड़कर बाकी सभी ने खाना खा लिया था। हॉस्टल लौटने पर इन 10 लोगों ने बेवजह हंगामा शुरू कर दिया। मेस संचालक गोदावरी भाई ने इन लोगों को समझाने और शांत कराने की कोशिश की, हालांकि वे इस प्रयास में विफल रहे। इसी बातचीत के दौरान कुछ बहस बाज़ी हुई, जिसमें एक मजदूर ने गोदावरी भाई को एक ज़ोरदार तमाचा जड़ दिया। इसके बाद दोनों के बीच हिंसा हुई और गोदावरी भाई ज़मीन पर गिर पड़े। महेश्वर जी को जैसे ही इस घटना का संज्ञान मिला, वह तुरंत हॉस्टल पहुंचे और मामला शांत कराया। उन्होंने मजदूरों को समझाया कि ऐसा व्यवहार हॉस्टल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
अक्षय नायक
हमारे हॉस्टल निवासी अक्षय नायक प्रतिदिन अपनी साइकिल से काम पर जाते थे। एक सुबह जब वह काम पर जाने के लिए निकले तो देखा कि उनकी साइकिल गायब थी। उन्होंने आस-पास खोज की, लेकिन कुछ पता नहीं चला। उन्होंने हमें इस घटना के बारे में २-३ दिनों बाद सूचित किया। उस समय हमारे हॉस्टल में न तो कोई सिक्योरिटी गार्ड था और ना ही CCTV कैमरा। हमने थोड़ी पूछताछ की, पर कुछ पता न चला। हॉस्टल के नीचे एक साइकिल मेकेनिक की दुकान थी। कुछ दिन बाद, चोरी हुई साइकिल उसी दुकान पर मिली।
पूछने पर पता चला कि एक कबाड़ वाले ने उसे यह साइकिल दी थी। वो उस साइकिल को मरम्मत और रंग-रोगन करके बेचने वाला था। महेश्वर जी ने उससे बात की और समझाने का प्रयास किया कि यह साइकिल चोरी की है और वो इसे लौटा दे, लेकिन विफल रहे। उन्होंने उस कबाड़ वाले को हमारे हॉस्टल भेजने को कहा जिसने वह साइकिल ला कर उसे दी। अगले दिन, साइकिल मेकेनिक ने हमें बताया कि पिछले दिन वह कबाड़ वाला हमारे हॉस्टल में दोपहर को आया था, लेकिन हम में से कोई यहाँ नहीं था। तब तक, हॉस्टल में CCTV कैमरा लग चुका था। जब हमने फुटेज देखा, तो उसमें कोई भी आता हुआ नहीं दिखा। मेकेनिक ने हमसे झूठ बोला। इस पूरे प्रकरण के बारे में महेश्वर जी ने महेश सर को बताया। हमने उसे अगले दिन ऑफिस बुलाया और महेश सर से बात कराई। महेश सर ने उसे समझाया और वह साइकिल लौटने के लिए राज़ी हो गया। अक्षय नायक को साइकिल वैसे ही मिली जैसी कि उन्होंने खोई थी।
रुपेश और बाकि सब
रात के साढ़े दस बज रहे थे। हॉस्टल ऑफिस के तीनों कर्मचारी घर जा चुके था। हॉस्टल निवासी रुपेश परिदा का हॉस्टल बिल्डिंग के पास किसी से झगड़ा हो गया। वह हॉस्टल के किचन में आया और 2 कलछी उठाकर लड़ाई करने भागा। हमारे गार्ड ने तुरंत ही इस बात की जानकारी हॉस्टल मैनेजर महेश्वर जी को फ़ोन पर दी। रुपेश के पिता पद्मा चरण परिदा भी उसके साथ हमारे हॉस्टल में ही रहते हैं। उन्होंने रुपेश को शांत कराया और अपने साथ ऊपर हॉस्टल हॉल ले गए। हॉस्टल हॉल में उसके परम मित्र बाबला प्रधान ने उस पर फ़ोन चोरी करने का झूठा आरोप लगाया। गुस्से में आग बबूला रुपेश ने बाबला को एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया।
इस लड़ाई में रुपेश के पिता, पद्मा परिदा, ने भी अपने बेटे का साथ दिया। ननका स्वेन ने मामले को शांत कराने का प्रयास किया, लेकिन रुपेश ने उसे भी थप्पड़ मार दिया। गुस्साए ननका ने रुपेश को उसी दवा का स्वाद चखाया जो वह सभी को दे रहा था। झापड़! झापड़ इतना सख्त था की रुपेश के चेहरे पर दाग उखड़ गई। यह सब घटित होने के बाद महेश्वर जी मौका-ए-वारदात पर पहुंचे। उन्होंने घटना में सम्मिलित सारे चरित्रों को हॉस्टल से निकाल देने की चेतावनी दी। अगली सुबह रुपेश ने माफ़ी मांगी और हमें आश्वासन दिया की ऐसा कुछ दोबारा नहीं होगा। बाबला और ननका ने कहा की अगर रुपेश को हॉस्टल से नहीं निकला गया, तो वे दोनों हॉस्टल छोड़ देंगे। ज़रा बात करने और समझाने पर दोनों मान गए और अपनी हरक़त के लिए माफ़ी भी मांगी।
इस घटना के एक महीने बाद ऐसे ही किसी हिंसा में सम्मिलित होने और नशे में हंगामा करने की वजह से रुपेश और उसके पिता को हॉस्टल से निकाल दिया गया।
पवित्र परिदा
हमारे हॉस्टल का सबसे युवा निवासी है पवित्र परिदा जिसने जीवन के सिर्फ 17 बसंत ही देखे हैं। 14 वर्ष की उम्र तक वह गंजाम स्थित अपने गांव में ही रहता और पढता था। उसके पिता 16 वर्ष की उम्र में सूरत आए और पॉवरलूम में काम करने लगे। लेकिन वह शारीरिक रूप से लचर हैं। बचपन में लगी एक चोट की वजह से उन्हें चलने फिरने में आजीवन तकलीफ है। पवित्र जब 14 वर्ष का था तो उसने कक्षा 9 की परीक्षा उत्तीर्ण की।
उसकी पढाई में कुछ ख़ास रूचि नहीं थी और परिवार पर भी वित्तीय संकट के बादल गहरा रहे थे। उसके परिवार के ऊपर क़र्ज़ भी है। ऐसे में 14 वर्षीय पवित्र परिदा अपने पिता के पास सूरत आ गया और पॉवरलूम में काम करने लगा। सूरत आने के बाद के 3 वर्ष वह अपने पिता के साथ ही रहता था। एक हॉल के घर में पवित्र और उसके पिता समेत कुल 5 लोग रहते थे। वह जो भी पैसे कमाता, अपने पिता को लाकर दे देता। उसके पिता खुद महीने के कुछ 17-18 हज़ार रुपये कमा लेते हैं और पवित्र भी 13-14 हज़ार रुपये कमा लेता है। वह लूम में बीम पसारने का काम करता है। अभी कुछ महीने पहले उसने जिस लूम में काम शुरू किया, वह उसके पिता के भाड़े के आवास से दूर था और हमारे हॉस्टल के करीब, तो उसने हमारे हॉस्टल में पनाह ली। पवित्र ने बताया की उसके महीने का खर्च कुछ 5500-6000 रुपये है। बचे हुए कुछ पैसे वह अपने पास रखता है और बाकी घर भेज देता है। उसके 2 भाई – बहन है जो 11 और 12 साल के हैं। वह चाहता है की उसके भाई – बहन ठीक से पढ़ लिख जाएँ।
साहू सन्यासी
ज़िन्दगी अप्रत्याशित है। यहाँ कब क्या हो जाए कुछ कह नहीं सकते। हमारे हॉस्टल के निवासी सन्यासी साहू की ज़िन्दगी कुछ ऐसी ही है। उनका जन्म सूरत में एक उड़िया परिवार में हुआ। यहाँ उनके परिवार के पास अच्छी खासी ज़मीन का स्वामित्व था। सन्यासी भाई की शिक्षा अमरोली के जीवन ज्योति स्कूल में हुई जहाँ से उन्होंने 10वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। परिवार के पास धन होने के बावजूद सन्यासी भाई ने अपने हाई स्कूल के दिनों में अखबार डिलीवरी का पार्ट टाइम काम भी किया। इससे कमाए हुए पैसों से उन्होंने अपने लिए एक सेल फ़ोन खरीदा था।
स्कूल की पढाई ख़त्म करने के बाद वे नेटवर्क मार्केटिंग के क्षेत्र से जुड़े और काम करने लगे। लेकिन इसी बीच उनके पिता और चाचा के बीच मतभेद होने लगे। कुछ नेता और गुंडे लोगों से दोस्ती के वजह से उनके चाचा ने धोखे से परिवार की सारी ज़मीन पर कब्ज़ा जमा लिया और अपना एकाधिकार स्थापित किया। इस घटना से स्तब्ध सन्यासी भाई के पिता ने अपने भाई से सारे रिश्ते नाते तोड़ दिए। नेटवर्क मार्केटिंग में कुछ साल कार्य करने के बाद सन्यासी भाई को उनके एक मित्र ने बेंगलुरु में काम लगवा दिया। वहां वे पेपर पैकेजिंग इंडस्ट्री में थे। 2 वर्ष बेंगलुरु में काम करने के बाद वे वापस सूरत आ गए और डायमंड में 2 वर्ष कार्य किया।
सन्यासी भाई 2019 से लूम्स में कार्यरत हैं। उनके एक भाई डायमंड में हैं और दूसरे पुलिस सर्विस में। कुछ वर्ष पहले उनकी बहन की शादी हुई जिसमें काफी ज़्यादा खर्च हुआ। सन्यासी भाई की पत्नी और दोनों बेटियां उड़ीसा स्थित उनके गांव में रहती हैं। सूरत में सन्यासी भाई महीने के 28,000 रुपये कमा लेते हैं जिसमे से 5 हज़ार रुपये वह गांव अपने परिवार के पास भेज देते हैं। उनके पिता अमरोली में अपने बेटे के साथ रहते हैं। सन्यासी भाई ने अपने गांव में एक घर बनवाया है जिसका खर्च कुल 70 लाख रुपये पड़ा। उन्होंने हाल ही में एक मोटरसाइकिल भी खरीदा है। घर और मोटरसाइकिल के लिए उन्होंने भारी क़र्ज़ भी लिया है जिसे वे धीरे धीरे चुका रहे हैं। जीवन में इतने उतार चढ़ाव देखने के बाद भी सन्यासी भाई जब भी मिलते हैं तो मुस्कुरा कर अभिवादन करते हैं।
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