हमेशा किसी भी कार्य की शुरुआत होती है एक सवाल से! किसी भी विचार में, बात में, विवाद में, चर्चा में या आंदोलन में। एक सवाल जो उठता है चिंगारी की तरह और थोड़ी हवा मिलने पर बड़ी और चमकीली लपटें पकड़ता है। जरूरत होती है बस उस चिंगारी को जगाए रखने की।
भुज, कच्छ में ऐसा ही एक किशोरी संगठन काम करता है, चिंगारी जगाए रखने का। यहाँ भुज की किशोरियों का चिंगारी से मतलब है सवाल पूछना। एक किशोरी जो की सवाल पूछती है, और बहुत सवाल पूछती है, किसी चिंगारी से कम है क्या? हमारा संगठन ऐसी ही कुछ चिंगारियों को आगे लिए बढ़ता है। हम में से कुछ इकखट्टे होकर एक बड़े समूह को बांध कर रखते है। हमारा समूह कुछ १४ चिंगारियों का है, जो ४०० चिंगारियों को पनपने का हौसला देता हैं और उन्हे एक संगठन में बांधे रखता हैं।
क्या होता है जब किशोरियाँ सवाल पूछती हैं?
लोगों की आंखे मोटी और बौहें ऊंची हो जाती हैं। बहुत बार हमें चुप करवा दिया जाता है या सवाल को ही नक्कारा करार कर दिया जाता है। पर हम अपने संगठन में सवालों को बहुत एहमियत देते है। कुछ ऐसी ही चिंगारियों और उनके सवालों के बारे में बात करते है। एक चिंगारी जिसका नाम यशोदा है। किशोरी चर्चा के दौरान उसने कहा साहित्य में अपनी रुचि के बारे में। और पूछा
“हम क्यूँ नहीं घूम सकते हैं? अगर साहित्य जानना है तो भुज से शुरुआत क्यूँ नहीं कर सकते है?”
संगठन का काम है चिंगारी को जगाए रखना। तो हमनें मिलकर एक एक्सपोजर सीरीज तैयार की। जहां हम हर महीने भुज मे या भुज से बाहर के अलग अलग जगहों पर जाते है और ढेर सारे सवाल करते हैं। और शुरुआत हुई भुज के इतिहास से। यशोदा की एक चिंगारी हमारे ग्रुप के लिए प्रवास और नए सवालों का बीज बन गई। हमारा पहला एक्सपोजर हुआ भुज के एतिहासिक स्थलों पर। हम अकेले तो ये सब नहीं देख सकते थे, हमारे पास जानकारी नहीं थी। हमने खोजा जय भाई को, जो की भुज में हेरिटेज वाक करवाते हैं।
फिर हम माहदेव गेट गए जो की भुज के 5 नाकों में से एक है। जब शहर को दीवारबंद करना होता था तो नाकों को बंद कर दिया जाता था।
उसके बाद हम गए रघुनाथ जी का आरा। यहाँ से हमीरसर साफ दिखता है।और कमाल की बात यह है की यहाँ से भी हमीरसर के पानी का स्तर पता चलता है। वो भी दीवार पर बने २ हाथियों से। जब भी तालाब पूरा भर जाता है, आज भी हाथी की सूंड तक पानी या जाता है। भुज में हमीरसर का भरना मतलब छुट्टी। उस दिन पूरा भुज छुट्टी पर होता है और हमीरसर देखने आता है। एक बात जिसने बहुत परेशान किया, ये आरा भी कचरे एर पॉलिथीन से लबालब था।
उसके बाद हम पावड़ी पर गए। यहाँ से भी हमीरसर काफी सुंदर दिखता है। यहाँ और हर जगह हमनें सुंदरता के बीच बहुत कचरा देखा। इतनी सुंदर मछलियाँ तालाब में थी कचरे से उनको दिक्कत होती होगी।
हम गए तो थे इतिहास जानने, जो की अच्छा था पर आज की हालत देख कर अच्छा नहीं लगा। जिस हिसाब से बेशुमार कचरा इन एतिहासिक स्थलों को ढक रहा है। डर है आने वाले समय में यह इतिहास देखने लायक बचेगा या नहीं?
अभी हमारा एतिहासिक एक्सपोजर २ बाकी है, जिसमे हम भुज के दूसरी छोर का साहित्य जानने वाले हैं। हम एक बार पूरा भुज साहित्यिक नजर से देख लें, फिर संगठन के तौर पर सोचा है, इसकी सफाई का कुछ इंतेज़ाम करना होगा। इतिहास को जानकार काफी अच्छा लगा, अब हमें जानना था की हमारे कच्छ में कैसी कलाएं है? ये सब अपनी आँखों से देखना था। फिर क्या? हमनें एक और एक्सपोजर प्लान किया। इस बार पूरे दिन घूमा और ढेर सारे सवाल किए। घर पर आगे बढ़कर बात की और पूरे दिन घूमने की इजाजत ली। हम में से कईं घर काम, फैक्ट्री में काम और सफाई करने जाती हैं। हमनें अपने सेठ से भी बोलकर पूरे दिन की छुट्टी रख ली। एक बार घूमने से आत्मविश्वास आया की हम घर पर और काम की जगह पर खुदके लिए बात कर सकते हैं और भी जगहें देख सकते हैं। यह संभव है।
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