किशोरियाँ कहती हैं, उठो! किशोरियाँ कहती हैं, बैठो!
किशोरियाँ कहती हैं, चलो! किशोरियाँ कहती हैं, रूको!
किशोरियाँ कहती हैं, सेक्स! किशोरियाँ कहती हैं, यौनिकता!
चौंकिए नहीं। किशोरियाँ इन सब के अलावा और भी बहुत कुछ कहती हैं|
कच्छ महिला विकास संगठन द्वारा खमीर कैंपस में नवम्बर में आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला हुयी जिसकी संयोजिकाएं दिल्ली स्थित “क्रिया” से आईं मयूरी और स्वर्णलता थीं। पिछ्ले तीन सालों से कमविसं इन ख़्वाबिदा लड़कियों के साथ उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, जेंडर आदि की समझ बढ़ाने में लगा हुआ है। इस गुजराती नए साल भी इन लड़कियों की ठिठोलियों से शुरु हुई यौनिकता की समझ। लड़कियों ने ढेरों सवाल पूछे, अपनी चुप्पी तोड़ी और शर्म को पीछे छोड़ा। हमारे संगठन के साथियों के लिए भी यह कार्यशाला अत्यंत महत्वपूर्ण रही और हमने कई नई बाते सीखीं।
कार्यक्रम में लगभग 20 से 25 किशोरियों ने भाग लिया जो आस पास के गांवों और स्लम से थीं। उनकी जिज्ञासा और कार्यशाला के दौरान उत्साह देखने लायक था। कहां तो आज भी गुजरात का यह हिस्सा बाल विवाह जैसी कुरीतियों से ग्रसित हैं और वहीं इन लड़कियों की इतनी हिम्मत की सभी सामाजिक दायरों को तोड़कर वो सीखने की ललक लिए आगे आ रहीं हैं। तीन दिवसीय कार्यशाला में शक्तिवर्धक व्यायाम, सामूहिक गतिविधियाँ, फिल्म प्रदर्शन, वाद-विवाद, बातचीत, शारीरिक चित्रण, प्रदर्शन आदि हुए।
दिन की शुरुआत परिचय से होती है जिसके बाद प्रतिभागियों से पूछा जाता है कि वे जेंडर से क्या समझती हैं और उन्होंने पिछ्ली ट्रेनिंग के बाद जेंडर के कौन से नियम तोड़े हैं? प्रतिभागी बताते हैं कि उन्होंने धार्मिक भेदभाव करना छोड़ दिया है और जहां वह पहले फ़ोन के इस्तेमाल को गलत मानती थीं अब वे खुलकर फ़ोन इस्तेमाल करने लगी हैं। वे अपनी इच्छाओं पर ध्यान देने लगी हैं, स्कूल जाने लगी हैं, अपनी पसंद के कपड़े पहनने लगी हैं, अपने दोस्तों के साथ घूमने जाने लगी हैं, खुलकर बोलने लगी हैं, क्रिकेट खेलने लगी हैं, शहर से दूर जाकर ऑटो चलाने की ट्रेनिंग ली है, बुर्का पहनना छोड़ा है, पुरुषों से दोस्ती की है, और बाल विवाह और घरेलू हिंसा के खिलाफ़ आवाज़ उठाई है।
इसके बाद एक अन्य गतिविधि कराई जाती है जिसमें प्रतिभागियों को 4-5 के छोटे समूहों में बाँट दिया जाता है और उन्हें मेंढक-मेंढकी की एक कहानी पढ़ने को दिया जाता है। कहानी पढ़कर उन्हें यह बताना है कि इसमें मेंढक कौन है और मेंढकी कौन। प्रतिभागियों के उत्तर प्रशिक्षक को एक बोर्ड पर लिखने हैं। प्रतिभागी बताते हैं कि जो निडर है, जो खतरे मोल लेते हैं, जो नए रास्ते सुझाते हैं वह मेंढक हैं और जो अपने साथी को बचाते हैं, डरकर छुप जाते हैं वो मेंढकी हैं। इससे प्रतिभागियों की जेंडर को लेकर परम्परागत सोच उजागर होती है। एक अन्य गतिविधि दस प्रतिभागियों को स्वेच्छा से आगे आने को कहा जाता है। इसके बाद एक प्रिविलेज वॉक होता है जिसमें प्रशिक्षक जो वाक्य बोलते हैं वो वाक्य आपके लिए सही होने पर आप आगे बढ़ते हैं।। गतिविधि के अंत में एमएलए का बेटा की पहचान लिए हुए प्रतिभागी सबसे आगे हैं और सेक्स वर्कर, विकलांग लड़की, ट्रांसजेंडर लड़की, दलित लड़का आदि बेहद पीछे हैं।
इसके बाद प्रशिक्षक प्रतिभागियों को निर्देश देती हैं कि उन्हें दौड़कर आगे आना है और सामने खड़े बोर्ड के अधिक से अधिक क्षेत्र पर अधिकार करना है। प्रतिभागी दौड़कर बोर्ड को पकड़ते हैं और देखते हैं कि जो आगे थे उन्होंने बोर्ड पर सबसे अधिक जगह घेरी है। प्रशिक्षक इसके बाद समूह को अपने स्थान पर बैठने को कहते हैं और समानता और स्वाभाविक न्याय (equality and equity) का अंतर समझाते हैं। वे प्रतिभागियों को संविधान के बारे में समझाते हैं और बताते हैं कि कैसे हमारे संविधान में हम सबको बराबर अधिकार दिए गए हैं लेकिन कई सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, शारीरिक कारणों से हम उन अधिकारों से वंचित रह जाते हैं।
अगले दिन प्रशिक्षक बोर्ड पर ‘यौनिकता’ लिखती हैं और प्रतिभागियों से पूछती हैं कि वे इससे क्या समझते हैं। प्रतिभागी उत्तर देने में कतराते हैं लेकिन धीरे-धीरे कई बातें निकल कर आती हैं। कई प्रतिभागी कहते हैं कि उन्हें नहीं पता ये क्या है और वे ये शब्द पहली बार सुन रहे हैं और उन्हें यह सुनकर काफी अजीब या अटपटा लग रहा है, वहीं कई प्रतिभागी बताते हैं कि ये लड़का या लड़की होने से संबंधित है, योनि का द्वार है, गर्भ से संबंधित है, लड़की के शरीर का मुख्य भाग है, योनि है, माहवारी से संबंधित है, जीवन का मुख्य अंग है, हिंसा या छेड़खानी से संबंधित है, इच्छा से संबंधित है, एकता या संगठन से संबंधित है, सत्ता और नियंत्रण से संबंधित है, स्तन या यौन अंगों से संबंधित है, शर्म, प्रेम, चुप्पी, हिचक, पसंद, आदि से भी संबंधित है। कुछ प्रतिभागी कहते हैं कि इसकी शिक्षा ज़रूरी है और वे इस बारे में किसी से बात नहीं कर पाते जबकि यह पूरे शरीर और जीवन से जुड़ा विषय है। प्रतिभागियों की कही हुई सारी बातें प्रशिक्षक बोर्ड पर लिखती जाती हैं और अंत में सभी कही हुई बातों को साथ लेकर यौनिकता को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, आनंद, क्रियाकलापों आदि के रूप में परिभाषित करती हैं। वे बताती हैं कि कैसे यौनिकता हिंसा और नियंत्रण का कारण बनता है और समाज यौनिकता के किन आयामों को किन व्यक्तियों के लिए छूट देता है।
इसके बाद की गतिविधि में प्रतिभागियों को यह बताना है कि उन्हें अपने शरीर का कौन सा भाग पसंद है और कौन सा नहीं। प्रशिक्षक इसके बाद प्रतिभागियों से पूछते हैं कि उन्हें जो नहीं पसंद वो क्यों नहीं पसंद और जो पसंद है वो क्यों पसंद है। एक-दो स्थितियों में जहां शरीर का अलग होना प्रतिभागियों को शारीरिक रूप से कष्टकारक होता है उन्हें छोड़कर अधिकतर स्थितियों में यह स्पष्ट होता है कि प्रतिभागियों की पसंद या नापसंद समाज, मीडिया और टीवी से प्रभावित है। प्रतिभागी प्रशिक्षक के पूछने पर कहते हैं कि वे इस बारे में और बात करना चाहेंगे और उन्हें शुरु से अपने शरीर को लेकर कई तरह की पाबंदियों और शर्म से गुजरना पड़ा है। प्रशिक्षक मीडिया के बारे में और बात करते हुए बताती हैं कि मीडिया एक खास तरह के शरीर को ही सुंदर मानता है और हमें मीडिया के प्रदर्शित शरीरों के आगे अपने शरीर को कमतर नहीं समझना चाहिए और अपने शरीर से प्यार करना चाहिए। इसके बाद सोनाक्षी सिन्हा का एक विडियो दिखाया जाता है जिसमें वह भी सबकी बेमतलब की बातों को सुनना छोड़ अपने शरीर से प्यार करने की सलाह देती हैं।
इसके बाद प्रतिभागियों को 4-5 के समूह में बाँटा जाता है और उन्हें अपने एक साथी के शरीर का मानचित्र बनाने को कहा जाता है। इसमें उन्हें यह चर्चा करना है कि उन्हें कहाँ शर्म, डर, सत्ता और आनंद महसूस होता है। इसके बाद प्रतिभागियों को अपने-अपने समूह के शरीर का मानचित्र प्रस्तुत करना है। इस गतिविधि में प्रतिभागी अपने शरीर और उसके वातावरण की बेहतर समझ बनाते हैं। प्रशिक्षक यौनिक और अन्य प्रकार के सुख की बात करती हैं। इसी क्रम में माहवारी को भी गंदा समझा जाता है ताकि महिलाओं को अन्य कई धार्मिक और सामाजिक अधिकारों से वंचित किया जा सके जो अंततः उन्हें सम्पत्ति से वंचित करने में सहयोगी होता है। इसके बाद प्रशिक्षक इंटरसेक्स और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और शरीरों के बारे में बुनियादी जानकारी देती हैं प्रशिक्षक यह स्पष्ट करते हैं कि यौनिकता सभी के जीवन में महत्वपूर्ण है और सभी को अपनी यौनिकता पूरी स्वतंत्रता के साथ समझने की छूट है। इसके बाद ‘एजेंट्स ऑफ़ इश्क़’ द्वारा प्रस्तुत फ़िल्में ग्रोन अप गर्ल्स: रिइमैजिनिंग रोमैंस और ग्रोन अप गर्ल्स: रिइमैजिनिंग फ़ैमिली दिखाई जाती है और प्रतिभागी प्रेम और परिवार की महत्ता पर बातचीत करते हैं।
पढ़िए एक इंटरसेक्स और एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति की कहानी।
कार्यशाला का तीसरा और अंतिम दिन। प्रतिभागी उत्साहित हैं और कच्छ महिला विकास संगठन और क्रिया के सदस्यों से कई तरह के सवाल पूछ रहे हैं। नाश्ते के दौरान एक प्रतिभागी पूछती हैं कि आखिर किन्नर कैसे होते हैं और यह कैसे पता चलेगा कि कोई किन्नर है। जिसपर प्रशिक्षक बताती हैं कि किन्नर अथवा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के शरीरों और यौनांगों को लेकर हमारी दिलचस्पी दरअसल इसलिए है क्योंकि हमारे लिए यह स्वीकार करना बेहद मुश्किल होता है कि कोई हमसे अलग भी हो सकते हैं। वह बताती हैं कि किन्नर समुदाय हिंदुस्तान में कई तरह के काम करता है जिसमें शादी-ब्याह और बच्चे के होने पर बधाई मांगना, ट्रैफ़िक पर भीख मांगना प्रमुख है। उन्हें कई तरह की हिंसाओं और प्रताड़नाओं का सामाना करना पड़ता है और इसलिए कई बार वे अपनी पहचान छुपाकर रखते हैं। उन्हें काम मिलना मुश्किल होता है और भारत सरकार द्वारा पारित ट्रांसजेंडर बिल भी उनके हकों की रक्षा करने की बजाय उनके लिए घातक साबित हुआ है। प्रशिक्षक मीडिया में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कैसे दिखाया जाता है इस बारे में बताते हुए कहती हैं कि उन्हें बेहद गलत तरीके से पेश कर उनका मज़ाक उड़ाया जाता है और मीडिया तथा समाज की यह मानसिकता उनकी कई समस्याओं की वजह बनती है।
इसके बाद प्रतिभागियों को ज़ैनाब की कहानी पढ़कर सुनाई जाती है और उनसे बीच बीच में ज़ैनाब की ज़िंदगी से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं। जैसे माहवारी आने पर और दादी के उसे खेलने से मना करने पए उसे क्या करना चाहिए? गाँव में उसके दोस्त के साथ उसके रिश्ते की अफ़वाह उड़ने पर उसे क्या करना चाहिए? किसी दोस्त के आधी रात में किसी सूनसान जगह पर बुलाने पर क्या करना चाहिए? इसके बाद प्रतिभागियों को ग्रोन अप गर्ल्स: रीइमैजिन गोल्स, ग्रोन अप गर्ल्स: रीइमैजिन फ़्रीडम, ग्रोन अप गर्ल्स: रीइमैजिन वर्क और ग्रोन अप गर्ल्स: रीइमैजिन हैप्पीनेस दिखाई जाती हैं। प्रतिभागियों को 4-5 के समूह में बाँटकर हर समूह को कुछ पर्चियां दी जाती हैं जिनपर कुछ पहचानें लिखीं हैं। प्रतिभागियों को उन्हें दिए हुए चार्ट पेपर पर उस तरह से लगाना है जैसे वे उन पहचानों को समाज में देखते हैं। । जिसके बाद उन्हें अपना चार्ट प्रस्तुत करना है और उन्हें बताना है कि उन्होंने पहचानों को जहां रखा है वहां क्यों रखा है। हर समूह के प्रतिभागी सभी पहचानें लगभग वैसे ही प्रस्तुत करते हैं जैसे समाज में देखा जाता है। वे अपनी जाति और धर्म में विवाह किए जोड़े को सबसे ऊपर, सेक्स वर्कर और ट्रांसजेंडर लड़के/ लड़की को सबसे नीचे रखते हैं। अंत में कमविसं के साथी चार्ट प्रस्तुत करते हैं जिसमें सभी पहचानें एक गोले में हैं और उन्हें बराबर बताया जाता है। कमविसं के साथी समझाते हैं कि उनका समाज का भविष्य ऐसा है जिसमें वे सबको बराबर देखते हैं और सभी के पास समान मौके हैं।
इसके बाद प्रतिभागियों को फिर 4-5 के समूह में बांटा जाता है और उन्हें समूह की सहमति से एक नेता चुनकर उनके गुणों के बारे में लिखना होता है। दो समूह गांधी, एक समूह नरेंद्र मोदी और कमविसं का समूह “स्वयं” को अपना नेता मानते हैं। इस गतिविधि में बेहद चर्चा होती है और समूह गुणों की बजाय काम के बारे में बताते हैं जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रतिभागी काम और गुण को एक जैसा समझते हैं। प्रतिभागी गांधी के बारे में बताते हुए कहते हैं कि वे उन्हें अपना नेता इसलिए मानते हैं क्योंकि उन्होंने महिलाओं के सम्मान, पानी की कीमत, स्वच्छता के महत्व आदि पर ध्यान दिया और देश को अंग्रेज़ो से आज़ाद कराया। प्रतिभागी नरेंद्र मोदी के लिए नोटबंदी, गरीबी उन्मूलन, उज्जवला योजना, सीमा सुरक्षा, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, महिला सुरक्षा आदि के बारे में बात करते हैं। प्रतिभागी इस क्रम में नरेंद्र मोदी के कार्यों और गुणों का बचाव करते हुए कई बार मनमोहन सिंह पर आक्षेप करते हैं। इस सब के दौरान प्रतिभागियों से पूछा जाता है कि नोटबंदी से सेक्स वर्कर, ट्रांसजेंडर लोगों और मजदूरों – किसानों की स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा वे इसका आकलन करें और यह भी समझें की क्या इस समय समाज के कुछ तबके असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
इसके बाद यह समझने का प्रयास होता है कि किसी भी समूह ने किसी महिला नेता का नाम क्यों नहीं लिखा। इसमें कुछ प्रतिभागी अन्य नेताओं जैसे रानी लक्ष्मीबाई, कस्तूरबा बा, ए पी जे अब्दुल कलाम आदि का नाम लेते हैं। प्रशिक्षक प्रतिभागियों को सावित्रीबाई फुले, पंडिता रमाबाई, द्युति चंद, सानिया मिर्ज़ा, पी वी संधु आदि के बारे में बताती हैं। यह बात होती है कि हम महिला नेताओं को इसलिए नहीं जानते क्योंकि इतिहास से उनके नामों को मिटाया जाता है और उन्हें सम्मान नहीं दिया जाता। बात को आगे बढ़ाते हुए प्रशिक्षक बताती हैं कि हम जब ‘नेता’ सुनते हैं तो हमारे दिमागों में एक पुरुष की ही छवि बनती है जिसका समाज में एक ख़ास रुतबा हो। इसके बाद फेमिनिस्ट (नारीवादी/नारीत्ववादी) लीडरशीप/नेतृत्व की जरूरत के बारे में बात करते हुए प्रशिक्षक बताती हैं कि महिला नेताओं के आने से महिलाओं के मुद्दे सामने आएंगे और वे अपनी समस्याएं सुलझा पाएंगी। इसके लिए जाति, जेंडर, धर्म, यौनिकता आदि के तय मानकों को तोड़कर बराबरी की पहल करनी होगी ताकि इन विषयों से संबंधित रूढ़िवादी सोच टूटे और औरतें खुली हवा में साँस ले सकें।
कार्यशाला के अंत में प्रतिभागी शर्म, डर, चुप्पी, झिझक, अज्ञानता आदि रखने की और नई सीख, नई दोस्तियां, ढेर सारी अच्छी यादें आदि लेकर जाने के बारे में कहते हैं।
0 Comments