भुज की महिलाएं और कमला बेन की कहानी

by | Sep 22, 2023

भुज भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में रहस्य की भूमि कच्छ जिले में स्थित हैं। कच्छ जिले का कुल क्षेत्रफल कुछ भारतीय राज्यों से भी अधिक है। यहाँ कई महत्वपूर्ण शहर और कस्बे हैं और उन में से सबसे महत्वपूर्ण तालुका भुज को माना जाता है। पुराना भुज छोटा सा है और यहाँ के लोग इसे राजा महाराजा के समय से ही कोट विस्तार कहते हैं।

इतिहास

18वीं शताब्दी की शुरुआत में मुगल साम्राज्य के पतन के बाद और भुज पर लगातार आक्रमणों की प्रतिक्रिया के रूप में, कच्छ के तत्कालीन शासक राव गोदीजी ने कथित तौर पर 1723 में शहर को मज़बूत करना शुरू कर दिया था। इसने एक अनियमित बहुभुज के रूप में आकार लिया। इसमें शहर की सीमा के साथ 35 फीट ऊँची और 4 फीट मोटी ठोस पत्थर की दीवारें हैं, जिनमें अनियमित अंतराल पर मीनारें हैं। दीवारों के साथ रणनीतिक बिंदुओं पर इक्यावन बंदूकें रखने की भी व्यवस्था की गई थी।

सीमा पांच नाका (पांच द्वार) – भीड, सरपत, महादेव, दरबारगढ़, पतवाड़ी, और छठी बाड़ी (छठी खिड़की) से फैली हुई थी। ये चारदीवारी वाले शहर के 6 प्रवेश द्वार थे जो सूर्यास्त के समय बंद करके भोर में खोले जाते थे। ऐसा कहा जाता है कि राव खेंगारजी (1876-1947) के शासन काल के दौरान, उनकी राजधानी भुज के पाँचों द्वारों की चाबियाँ उन्हें हर रात सौंपी जाती थीं और हर सुबह वापस दे दी जाती थीं। हालाँकि 1948 में, जब उनके उत्तराधिकारी, महाराज मदन सिंहजी, भारतीय संघ में शामिल हो गए तो यह व्यवस्था समाप्त हो गई।

अच्छी और बुरी महिला

इतना पुराना इतिहास होने पर भी हर शहर की तरह यहाँ भी कई जगह अच्छी जगह नहीं कहलाती हैं। जब मैंने अपनी एक टीम की सदस्य से पूछा कि ऐसा क्यों है तो उन्होंने जवाब में कहा कि जब हम बचपन में इन जगहों से गुज़रते थे तो हमसे बस यह बोला जाता था कि “यहाँ अच्छी महिलाएं नहीं रहती“। जैसे शायद दिल्ली में GTB नगर, मुंबई में कमाठीपुरा, और कोलकाता में सोनागाछी के लिए कहते हैं। हर शहर में ऐसा एक इलाका होता हैं। मेंने उनसे फिर सवाल किया कि आप की क्या समझे हैं अच्छी महिला से और आप कैसे फर्क करते हो अच्छी और बुरी महिला में।

जवाब में उन्होंने कहा कि हमें जो बोला जाता था वह हम मान लेते थे, न कोई सवाल न जवाब। जब बड़े हुए, महिलाओं के साथ काम शुरू किया, तब पता चला की उन इलाकों की औरतों को क्यों अच्छा नहीं माना जाता है। अक्सर वहाँ वह महिलाएं रहती हैं जिन्हें समाज में वैश्य या रखैल कहते हैं, और वहां जाने वाले लोग भी चाहते हैं कि उनके बच्चे इन इलाकों से दूर रहें। इसलिए वे कहते हैं कि वे अच्छी महिलाएं नहीं हैं।

कमला बेन
यह एआई द्वारा तैयार किया गया चित्र है

कमला बेन की कहानी

मेरी सहकर्मी ने मुझे कमला बेन* के बारे में बताया। वे भुज में रहती हैं और उनकी कम उम्र में ही दी हो गयी थी। कुछ ही समय में उनके पति की मृत्यु हो गयी और तब उनकी एक छोटी बेटी भी थी। ऐसे वक़्त मैं उनका साथ देने वाला कोई नहीं था। वह अकेली पड़ गयी थी। उसी दौरान वह एक दूसरी महिला के संपर्क में आयी और उन्होंने मजबूरी के चलते सेक्स वर्क का काम शुरू कर दिया। एक उम्र तक उन्हें इस व्यवसाय से अच्छी कमाई हुई जिससे उन्होंने प्रॉपर्टी भी खरीदी जिसमें आज चार मकान शामिल हैं।

जब २०२० में कोविड की आपदा आयी, तब उनका यह व्यवसाय बंद पड़ गया। इसके चलते उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ गयी। जैसे-जैसे उनकी बेटी बड़ी हुई और उसकी सामाजिक समझ बनी, उसने अपनी माँ को स्वीकार नहीं किया और कोविड के दौरान उसका व्यवहार उनकी तरफ और भी ख़राब हो गया। इस वजह से उनके दिल को काफी ठेस पहुंची, यहाँ तक कि उन्हें डॉक्टर से दवाई लेनी पड़ रही है जिसका कुल खर्च 15000 रूपये महीने आता है।

उनका परिवार उनके व्यवसाय को स्वीकार नहीं कर पाए हैं पर उसी व्यवसाय की कमाई से ख़रीदी प्रॉपर्टी लेने की होड़ में हैं। ऐसे में कमला बेन कहती हैं कि मैं कैसे समाज से उम्मीद करूँ कि वो मुझे समझे व अपनाये।

उनकी बेटी ने उनसे दो घर अपने नाम करवा लिए लेकिन वह अपनी माँ की परिस्थिति तथा वह इस व्यवसाय से क्यों जुड़ी, यह समझने को तैयार नहीं है कमला बेन की एक बहन भी हैं लेकिन वह भी उनके साथ कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहती। फिलहाल वह अपनी एक दूर की सम्बन्धी के साथ रहती हैं जो कमला बेन का ख्याल रखती हैं।

संवेदना प्रोजेक्ट

संवेदना प्रोजेक्ट को कच्छ महिला विकास संगठन ने 2018 में महिलाओं को संगठित करने के उद्देश्य से शुरू किया था। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत सेक्स वर्कर्स के बुनियादी अधिकारों की मांग, उनकी आजीविका, स्वास्थ्य, हिंसा, भेदभाव और शोषण जैसी चुनौतियों व विशेष रूप से उनके बच्चों की शिक्षा और कल्याण से संबंधित मुद्दों पर काम किया जाता है।

अनेक महिलाएं इस व्यवसाय में मजबूरी में आती हैं, कुछ अपनी इच्छा या शौक से भी शामिल होती हैं। आर्थिक संकट के साथ-साथ आपदा के समय में भी महिलाएं इस काम में जुड़ती हैं, जैसे 1984 का सूखा और 2002 का भूकंप, क्योंकि उस समय में काफी परिवार गरीबी की एक ऐसी रेखा पर आ जाते हैं जहाँ उनकी परिस्थिति न तो कोई सरकार और न ही समाज ठीक कर पाते हैं।

यह सारे कारण महिलाओं से सिर्फ उनकी रोज़ी-रोटी ही नहीं छीनता बल्कि उनकी पहचान भी ले लेता हैं। कमला बेन जैसी कई महिलाएं अपने परिवार या समाज से ज़्यादा कुछ नहीं बस उनका सहयोग चाहती हैं। जैसे एक ज्ञानी व्यक्ति अपना ज्ञान बाँट कर और कलाकार अपनी कला बेच कर अपना जीवन व्यतीत करता है तो उसे नापा तोला नहीं जाता, उसी तरह इस व्यवसाय को भी किसी सही या गलत की परिभाषा में न तोल कर इसे एक काम की तरह लिया जाए।


*गोपनीयता बनाए रखने के लिए बदला गया नाम

Stay in the loop…

Latest stories and insights from India Fellow delivered in your inbox.

0 Comments

Submit a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *