मैं, जाबिद खान, मखौली गाँव का रहने वाला हूँ जो राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में है। आज से दस साल पहले तक मैं घर पर रहकर ही घरेलू और खेती-बाड़ी सम्बंधित काम करता था। खेत के रख-रखाव और जानवरों की देखभाल में ही मेरा दिन बीत जाता था। वर्ष 2014 में मैं काम करने के लिए विदेश (सऊदी अरब) चला गया। वहाँ मैंने 14 महीने रहकर केटरिंग का काम किया। फिर जिस कम्पनी में मैं काम करता था जब वह किसी कारण से बंद हो गई तो हम सब लोगों को वापस भारत भेज दिया गया। मैं वापस गाँव आकर वही पुरानी खेती-बाड़ी और जानवरों की सार-संभाल का काम करने लगा।
उस समय हमारे गाँव में ग्रामीण शिक्षा केन्द्र समिति के संदर्भ शिक्षक श्री विजय सिंह जी संस्था के काम से आते रहते थे। वे गाँव में आकर विभिन्न सामुदायिक/ शैक्षणिक गतिविधियाँ ( सामुदायिक बैठक, बालमंच गतिविधि, सरकारी विद्यालय में संपर्क, शिक्षा को लेकर गाँव में बातचीत, महिला बैठकें, आदि) करवाते रहते थे। मेरी मुलाकात श्री विजयसिंह जी से हुई और वे अपने काम में मेरा सहयोग लेने लगे, जैसे लोगों को बुलाना, महिलाओं को सूचना देना, अभिभावक बैठक हेतु आवश्यक व्यवस्था करना, आदि। इस तरह धीरे-धीरे मेरी विजयसिंह जी से अच्छी-खासी पहचान हो गई। इस दौरान मैंने कई बार विजयसिंह जी से संस्था में कोई काम लगवाने के लिए भी बात की तो उन्होंने बताया कि यदि संस्था में आपकी योग्यता लायक कोई काम होगा तो आपको जरूर मौका दिया जायेगा।
वर्ष 2017 में संस्था में समुदाय कार्यकर्ता की वैकेंसी निकली जिसके लिए मैंने आवेदन किया। इसी दौरान मुझे दुबारा विदेश जाने का मौका मिला जिसके लिए मैंने पूरी तैयारी भी कर ली थी और इधर ग्रामीण शिक्षा केन्द्र में समुदाय कार्यकर्ता पद पर काम करने के लिए इन्टरव्यू भी दे चुका था। एक दिन मेरे पास संस्था के कार्यालय से फोन आया कि समुदाय कार्यकर्ता के रूप में काम करने हेतु आपका चयन हो गया है। यह खबर सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई।
मैंने विदेश जाने का प्लान कैंसिल कर दिया और संस्था से जुड़ गया। जुड़ते ही मुझे लगभग 25 गाँवों में (एसएससी, समुदाय, अभिभावक, पंचायत, प्रशासन) काम करने की जिम्मेदारी दी गई। मैंने इन गाँवों में जाकर उनकी एसएमसी के साथ काम शुरू किया। इस दौरान मैंने जाना कि अधिकतर एसएमसी सदस्यों को यह तक पता नहीं था कि वे एसएमसी समिति के सदस्य भी हैं। मैंने गाँव-गाँव जाकर एसएमसी सदस्यों से मुलाकात कर एसएमसी सदस्यों की बैठकें की।
एसएमसी सदस्यों को उनके कार्याें एवं अधिकारों के प्रति जागरूक किया। गाँवों में महिला बैठकों का आयोजन किया जिसमें महिलाओं को अपने अधिकार बताना, समय पर विद्यालय की अवलोकन विजिट करना, अपने बच्चों की प्रगति के बारे में शिक्षकों से चर्चा करना आदि कार्यों हेतु महिलाओं को जागरूक किया।
मैंने लगभग 3 साल तक इन 25 गाँवों के एसएमसी, समुदायों, अभिभावकों व महिलाओं के साथ काम किया। इसके पश्चात मुझे संस्था द्वारा नवीन प्रोजेक्ट ‘नवरंग कार्यक्रम‘ की जिम्मेदारी दे दी गई। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत घुमन्तु एवं पिछली जनजातियों (गडिया लुहार, बावरी, भोपा, मोग्या, कंजर आदि) के समुदायों के साथ शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा, दस्तावेजीकरण एवं कानूनी सलाह संबंधी कार्य करना था। वर्ष 2020 में कोविड-19 लोकडाउन के समय इस कार्यक्रम की अनौपचारिक शुरूआत की गई। इन घुमन्तु समुदायों को संस्था की ओर से राशन सामग्री के किटों का वितरण किया गया जिसमें वितरण कार्य की प्रमुख जिम्मेदारी मुझे ही दी गई थी। उस समय तक हमारी इन समुदायों के साथ अच्छी खासी जान पहचान हो गई थी। इन समुदायों को भी लगा कि ये लोग हमारी मदद कर सकते हैं।
कोविड-19 लोकडाऊन का समय बहुत ही कठिन परिस्थितियों वाला था जिसके बीच हम लोगों ने अपनी जान की परवाह किए बगैर समुदायों में राशन किट वितरण का कार्य किया। कभी-कभी तो पीने के लिए पानी तक नहीं मिल पाता था तो कभी दिनभर बिना भोजन के गुजारना पड़ता था। सभी दुकानें-बाजार वग़ैरा बंद थे, दूसरे लोगों से पानी मांगकर भी नहीं पी सकते थे और न ही कोई पिलाने को तैयार होता था। खाने-पीने की सामग्री भी बाजार में नहीं मिल रही थी। हमें किट वितरण का कार्य भी करना था, लोगों से दूर भी रहना था और अपनी सुरक्षा भी रखनी थी।
ऐसे में मन में एक डर सा बना रहता था कि पता नहीं कब किस व्यक्ति के संपर्क से हम भी वायरस की जकड़ में आ जाएं। हम लोग सुबह जल्दी ही किट वितरण के लिए निकलते थे और वापस आते-आते हमें रात हो जाती थी। फिर दूसरे दिन हम अलग-अलग गाँवों में जाते थे।। लगभग दो माह तक अलग-अलग चरणों में किट वितरण का कार्य किया गया।
संस्था में काम करते समय ही मुझे संस्था द्वारा इंडिया फ़ेलो नाम की एक फेलोशिप के लिए आवेदन करवाया गया। मैंने इंडिया फ़ेलो के लिए इन्टरव्यू दिया जिसमें मेरा चयन भी हो गया। इसके बाद अगस्त, 2022 में मेरी प्रथम ट्रेनिंग उदयपुर में हुई। यहाँ मुझे बहुत कुछ नया सीखने को मिला जिसके बाद मुझे संस्था में भी नवरंग कार्यक्रम के काॅर्डिनेटर के पद पर प्रमोट कर नवीन जिम्मेदारियाँ दे दी गईं। फेलोशिप के दौरान मिले प्रशिक्षण एवं जानकारी से अब मैं संस्था में भी अपना कार्य आसानी से कर पा रहा हूँ। मार्च, 2023 में मिड पाॅइन्ट ट्रेनिंग दिल्ली में की गई जिसमें अलग-अलग समुदायों के बारे में बताया गया और सभी ने अपनी-अपनी संस्थाओं का परिचय व अपने कार्यक्रमों की जानकारी दी।
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संस्था में काम करने और इंडिया फ़ेलो के रूप में जुड़ने के बाद मेरा लोगों से बातचीत करने का नजरिया ही बदल गया है। पहले मुझे उच्च पदों के अधिकारियों, विधायक, सांसद आदि व्यक्तियों के समक्ष अपनी बात रखने, उन्हें समस्याओं से अवगत करवाने में झिझक होती थी। लेकिन अब काम करते-करते मुझे काफी अनुभव हो गया है जिसकी वजह से मैं सरलता से इन उच्च अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को मेरे कार्यक्रम से जुड़े समुदायों की समस्याओं से अवगत करवाना, उनका निराकरण करवाना आदि कर लेता हूँ।
मुझे अपने काम में संस्था में जुड़ने से पहले और आज की स्थिति में बहुत परिवर्तन दिखाई देता है। मुझमें दूसरों के सामने अपनी बात रखने की समझ बनी है। मैंने निरन्तर संस्था में कुछ न कुछ नया सीखा है। आज मैं लैपटाॅप पर अपनी रिपोर्ट तैयार कर ईमेल कर देता हूँ जबकि संस्था में जुड़ने से पहले मैं कम्प्यूटर/लैपटाॅप के बारे में जानता तक नहीं था। काम करने, सोचने, समझने की मेरी क्षमताएं बढ़ी हैं।
इंडिया फेलो से जुड़ने के बाद मुझे ऐसा लगता है कि मेरे व्यक्त्वि का भी विकास हुआ है। हाँलाकि आज भी कम पढ़ा-लिखा होने और अंग्रेजी नहीं आने के कारण मुझे विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हिन्दी भाषी क्षेत्र में रहने और हिन्दी में पढ़ने के कारण मैं केवल हिन्दी में ही लिख-पढ़ सकता हूँ। इंडिया फेलो कार्यशालाओं में जब अंग्रेजी में काम होता है तो मुझे बहुत कम बातें समझ आती हैं लेकिन कार्यशाला के बाद मुझे दूसरे लोगों से समझने में मदद मिल जाती है। मैं कभी हार नहीं मानता और दिए गए काम को अच्छे से पूरा करने का पूरा प्रयास करता हूँ।
मैं सबसे अधिक कृतज्ञ ग्रामीण शिक्षा केन्द्र समिति संस्था के लिए हूँ जिसने मुझे कम पढ़ा लिखा होने के बाद भी संस्था में काम करने का मौका दिया, मेरी क्षमताओं को पहचाना और मुझे आगे बढ़ने/बेहतर कार्य करने के मौके प्रदान किए। मुझे संस्था में काम करने वाले अन्य लोगों का भी काफी सहयोग मिला जिससे मुझे पता ही नहीं चला कि 6 वर्ष का समय मुझे संस्था में काम करते कैसे बीत गया। इस संस्था में काम करने वाले सभी लोगों में कुछ न कुछ खूबी/योग्यता है जो मुझे उनसे और उनको मुझसे जोड़े रखती है। मैं इंडिया फेलो संस्था का भी शुक्रगुज़ार हूँ जिसने मुझे फेलो के रूप में काम करने का मौका दिया है। मुझे गर्व है कि पूरे भारत से चुने गए इन कुछ लोगों में मेरा भी चयन हुआ है।
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