“झरने सी मेरी पहचान”

by | Mar 14, 2022

वेग हूँ, मैं झरना हूँ, गति पे सवार हूँ|
रुकती नहीं मैं वादियों में न रुकी कभी चट्टानों में|
न रुक सकी पैमानों में, न रुक पायी देवालयों में|
मैं बस झरती हूँ, हर बाधा से कुछ और छनती हूँ|
देखा सभी जो प्रत्यक्ष है, जहाँ तहां न रमती हूँ|
तुम्हे शायद बस मेरा आना सुनाई दे,
पर उसकी आवाज़ भी मैं खुद चुनती हूँ|
मार्ग चाहे कितना भी दूभर हो,
उसका हर पत्थर मैं खुद चुनती हूँ|
मुझे ज्ञात है, काया अपनी,
मैं अपना प्रारूप तभी चुनती हूँ|
तू रहने दे! न जान मेरा उद्गम क्या है,
मैं अपना हर स्त्रोत खुद चुनती हूँ|

यह कविता उस स्त्रोत से आती है जो मैंने अपने लिए field immersion के तौर पर चुना है | India Fellow की मेरी यात्रा अभी शुरू ही हुई है और यहाँ मै अपने आप को एक झरने की तरह पाती हूँ | लगता है कि जीवन एक fast forward mode पर चलने लगा है| हर दिन एक सीख है और हर सीख अपने आप में एक अनुभूति, हर विषय वस्तु को खुद से ऊपर उठ कर देख पाने की नज़र और नजरिया दोनों मुझे मिल रहा है|

इसी नज़रिए को लिए जब अपने आस पास देखा और महिला सशक्तिकरण के बारे में कुछ समझने का प्रयास किया, तो पाया, महिला सशक्तिकरण केवल एक शब्द या कार्यवाही नहीं| यह जीवनशैली है, जिसकी अनुभूति करके उसे आप स्वयं परिभाषित करते हैं| आपके लिए जो सशक्तिकरण हो शायद मेरे लिए केवल कुछ प्रभावी विचारों का आदान प्रदान हो सकता है| ये भी हो सकता है कि आपने कभी अपने शहर से बाहर कदम ही न रखा हो, तब भी आप सशक्त महसूस करते हों, या आप भारत भ्रमण के बाद भी ऐसा महसूस न करें| हो सकता है कि आपको नौकरीपेशा जीवनशैली में नहीं गाँव के अपने खेतों में सशक्त महसूस होता हो| या हो सकता है कहीं कोई फरारी चलाने वाले से ज़्यादा एक गडरिया भेड़ चराने में अपने आप को सशक्त महसूस करता हो| हो सकता है कि एक शोरूम ओनर से ज़्यादा एक रेड़ी वाला अपने आप को सशक्त महसूस करता हो|

जब हम बात करते हैं सशक्त होने कि तो शुरुआत होती है मुक्त होने से| मुक्त उन सभी बन्धनों से जो समाज ने हमारे चारों और एक ढांचे में पिरोता है, और उन सभी बन्धनों से जो हम भी अपने गले में एक माला जैसा पिरो लिया करते हैं| समाज के बन्धनों से शायद कोई बाहिय व्यक्ति, सोच या प्रभाव हमे मुक्त कर सकता हो पर स्वयं बनाये बंधन जिसे हम अपने जीवन की परिभाषा और पहचान बना लेते हैं, उनसे तो हमे खुद ही मुक्त होना होता है|

सशक्त होने का सबसे बड़ा पहलू खुद को पहचानना है| Kutch Mahila Vikas Sangathan (KMVS), जहाँ मैं फेलो के तौर पर काम कर रही हूँ, वहां के सभी empowerment processes और trainings में सबसे पहली शुरुआत भी यहीं से होती है, जहाँ किशोरियों को अपनी पहचान खोजने को कहा जाता है| वास्तव में हमे क्या पसंद है और क्या नापसंद है, उसपर शोध करने को कहा जाता है|

आदर्श स्त्री (સારી સ્ત્રી) का चित्रांकन करते हुए किशोरी संगठन की किशोरी

जो पसंद हम अपनी कहते आये हैं क्या वो सच में हमारी है या समाज के बन्धनों से प्रभावित है| बचपन से कपड़ों से लेकर, क्या खेल हमे खेलने हैं, क्या करियर हमे चुनना है, दोस्त कैसे बनाने है, कैसे चलना और बोलना है, कैसे रंगों का चुनाव करना है, शादी जैसे अहम निर्णय भी किसी और की पसंद से प्रभावित होते है?

शायद हमने कभी अपने आप से यह सवाल पूछा ही नहीं, कि हमे वास्तव में क्या करना है? या यह भी कहा जा सकता है, कि हमे कभी यह सवाल पूछने का मौका ही नहीं दिया गया| हमें अनावरण की छूट थी ही नहीं | कुछ चीज़े और पहचान सामाजिक ढांचों के अंतर्गत हम पर थोप दी गयी, और उसे प्रभावी तौर पर उचित सिद्ध करके हमारी मानसिकता में उतार दिया गया| हमारे बेचारे दिमाग को भी यही लगता रहा जो चुनाव सामज, परिवार द्वारा किये गए हैं, हमारे लिए उत्तम हैं|

तो अब सवाल यह उठता है कि ऐसी परिस्थिति में स्वयं की खोज कैसे की जाये? अत्यंत प्रभाव डालने वाली विश्य वस्तुओं से अपनी पहचान को विकृत होने से कैसे बचाया जाये? जब मैंने इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश की, तो यह पाया कि हमें यह सोचने की ज़रूरत है कि हम खुद को कैसे देखते हैं और अपनी पहचान स्वयं बनाने के लिए कितने सचेत हैं. कितने सजग हैं अपने अधिकारों के लिए? और कितने मुक्त हैं अपने निर्णय स्वयं ले पाने के लिए| यह काफी हद तक मददगार है| साफ़ तौर पर मैं यह तो नहीं कहूँगी कि यह दृष्टिकोण जो कि मैंने KMVS में रहते विकसित किया है, सभी के लिए समान होगा, पर इस विषय पर मेरी सीख और समझ कुछ इस प्रकार उभर कर आयी है|

जब हम यहाँ महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, मुझे शक्ति और सशक्तिकरण में अंतर समझ आने लगा है| हो सकता है कि हमारे पास किसी प्रकार का निर्णय लेने की शक्ति हो, पर आवश्यक नहीं कि हम सशक्त हों| सही मायने में हम सशक्त तभी हैं, जब हम अपने मुक्त होने का अनुभव किसी और के साथ साझा कर उसे भी मुक्त होने का मार्ग दिखाएं और अपनी पहचान स्थापित करने में मदद कर सकें| सशक्तिकरण केवल स्वयं तक सीमित नहीं है, पर हाँ इसकी शुरुआत तो स्वयं से ही की जाती है|

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