राम को चौदह बरस का वन-वास मिला था| जिन्हें हिन्दू धर्म में बड़ा किया गया था, वे टीवी पर रामानन्द सागर के रामायण में राम को जाते हुए देखकर रोये भी थे| राम के कई नाम रहे और हर नाम के साथ वे घूमते रहे| राम कबीर के रहे और नानक के, तुलसी के भी राम थे और रहीम के भी| राम गांधी के भी रहे| इन सबके अलावा राम ने ‘जय श्री राम’ में स्टार की भूमिका भी निभाई है| राम नाथू के साथ भी रहे और बाबरी तक गए| आज राम जामिया में हैं| गोली चला रहे हैं| राम इन्स्टाग्राम पर होते तो ये सब देखकर अपने बायो में ‘वांडरलस्ट’ लिखे होते| डीपी होती किष्किन्धा में किसी पहाड़ के ऊपर से कोई घाटी देखने का साइड पोज़| राम के नाम आनंद पटवर्धन की फ़िल्म भी है| इतना कुछ है राम का, ऊपर से नारा भी है, ‘बच्चा बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का’| हिंदुस्तान में कई जगहों के नाम में भी राम है| ऐसी ही एक जगह कच्छ, गुजरात में है जहाँ हफ्ते में दो दिन पानी आता है, वो भी सिर्फ़ 2-3 घंटों के लिए|
इस जगह सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत टॉयलेट बनवाये थे| लेकिन लोग उसका इस्तेमाल नहीं करते| ऐसा इसलिए नहीं कि वे टॉयलेटद्रोही हैं, बल्कि इसलिए कि इन टॉयलेट में पानी और मल-मूत्र निकलने का कोई रास्ता नहीं है| ये सारे टॉयलेट बिना पाइपों के लगे हैं| लोग आज भी पास के पहाड़ की ओट में जाते हैं और सरकारी कामकाज की असंवेदनशीलता को रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा मानते हैं| इसी जगह एक लड़की है सौम्या (बदला हुआ नाम) जो हाईस्कूल का फॊर्म भर रही है, पाँचवीं बार| वो चार बार फेल हो चुकी है| ऐसा इसलिए नहीं है कि वो पढ़ाई में कमज़ोर है, दरअसल वो जब होस्टल से सरकारी स्कूल में आई तब उसकी पढ़ाई ठीक ठाक चल रही थी, उसके क्लास में ठीक नंबर भी आते थे, उसे सभी टीचर मानते भी थे, लेकिन एक दिन एक टीचर को पता चला कि वो नीच जात की है, उसकी टीचर ने कहा तुम नीच जात की हो के आगे कैसे बैठ सकती हो, जाओ जाकर सबसे पीछे की सीट पर बैठो| उस दिन से स्कूल के कई टीचर उससे अलग व्यवहार करने लगे, बात इतनी बढ़ गई कि प्रैक्टिकल में उसे 4-5 नंबर दिए गए और वो फेल हो गई| उसकी टीचर ने उसके पापा को बुलाकर उसकी पढ़ाई छुड़वा दी|
अभी संस्था के सहयोग से उसने दोबारा पढ़ाई शुरु की है| लेकिन स्कूल ना जाने की वजह से उसकी पढ़ाई पर असर पड़ता है| हाल ही में सौम्या ने और लड़कियों के साथ मिलकर एक ट्युशन टीचर खोजा है जो इनकी पढ़ाई में इनकी मदद कर सके| पढ़ने के लिए उन्होंने संस्था की उभरती महिला नेतृत्व राजवी और शबाना के साथ एक प्राइमरी स्कूल में बात कर एक क्लास भी मुकरर्र कर ली है| पूछ्ने पर सौम्या कहती है कि चाहे उसे दस बार भी परीक्षा देनी पड़ी तो वो देगी| सौम्या अकेली नहीं है, उसके साथ उसकी दो और सहेलियाँ हैं जिन्हें ये सब देखना पड़ रहा है| हिन्दुस्तान भर में ऐसे ना जाने कितने ही दलित, बहुजन, आदिवासी बच्चे हैं जिनके साथ संस्थागत तौर पर जाति आधारित भेदभाव होता है जबकि सवर्ण ‘मेरिट’ की दुहाई देते नहीं थकते|
सौम्या से मिलने के कुछ दिनों बाद मुझे अनवर (बदला हुआ नाम) और उनके दोस्तों से मिलने का मौका मिला| अनवर बारहवीं तक पढ़े हैं और उसके बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़कर छकड़ा (ऒटो रिक्शा) चलाना शुरु किया| वे महीने में 15 हज़ार तक कमा लेते हैं| छुट्टी के समय वो अधिकतर अपने दोस्त उमर (बदला हुआ नाम) के घर बैठे रहते हैं और पबजी खेलते हैं| उमर की अम्मी मज़ाकिया लहज़े में कहती हैं कि वो अब अनवर से किराया लिया करेंगी| वो बताती हैं कि अनवर पढ़ने में तेज़ थे, और कॉलेज जाना चाहते थे| लेकिन घर की हालत ऐसी नहीं थी कि वे आगे पढ़ सकते, उन्होंने वजीफे के लिए फ़ॊर्म भी भरा था, लेकिन सरकारी बाबू इतना अधिक दौड़ाता था कि अनवर ने परेशान होकर आगे पढ़ने का ख्याल छोड़ दिया| अनवर वैसे एक बेहद संवेदनशील इंसान हैं| उन्हें देश में हो रही राजनीति की अच्छी समझ है और वो बताते हैं कि हिंदु मुस्लिम के झगड़ों में सबसे ज़्यादा नुकसान गरीबों का ही होता है|
ये सब कुछ गुजरात में हो रहा है, जिसे आदर्श राज्य के तौर पर दिखाया गया है| इसी आदर्श राज्य में उना भी है और गोधरा भी| इसी आदर्श राज्य में एक मीटिंग के दौरान एक सरकारी स्कूल के शिक्षक ने बड़े आत्मविश्वास से कहा कि मुस्लिम महिलाओं के साथ यौन हिंसा नहीं होती क्योंकि वे बुर्का पहनती हैं, ‘हमने’ अपनी औरतों को ज़्यादा ही आज़ादी दे रखी है इसलिए ये सब होता है, यदि महिलाओं के खिलाफ़ हो रही यौन हिंसा रोकनी है तो उन्हें ढंग के कपड़े पहनने होंगे| ऐसे शिक्षक अपने छात्रों को किस तरह की शिक्षा देते हैं ये समझना मुश्किल नहीं है| जामिया में गोली चलने के बाद प्रगतिशील वर्ग में एक ‘पैरोडी’ नारा ज़ोर पकड़ रहा है, ‘देश के गँवारों को, स्कूल भेजो सारों को’| क्या हमारे देश के स्कूलों की स्थिति ऐसी है कि वे सबको समान शिक्षा दे सकें? क्या शिक्षित लोग गुनाह नहीं करते या किसी नफरती विचारधारा का हिस्सा नहीं बनते? वैसे भी अब तो शिक्षक बाबरी विध्वंस के नाटक भी करा रहे हैं | अनुराग ठाकुर जैसे नेता जिन्होंने जालंधर के दोआबा कॊलेज से बीए किया है जो अपनी रैलियों में गोली मारने के नारे लगवाते हैं क्या वे अशिक्षित हैं? ऐसे में जो लोग ये कहते हैं कि राजनीति में सिर्फ पढ़े लिखे लोगों को होना चाहिए उन्हें सोचना होगा कि क्या सिर्फ पढ़ा लिखा होना काफ़ी होता है या इसके अलावा और कुछ भी चाहिए|
शिक्षा हमें संवेदंशीलता नहीं सिखा सकती लेकिन हमें लोगों से मिलने, दुनिया समझने, और काम तलाशने में मदद कर सकती है| ये सब अंततः हमें बेहतर इंसान बनाने और गरीबी और हाशिए के कुचक्र से निकालने में सहायक हो सकती है| इसके लिए शिक्षा का अधिकार जैसे कानून, और मिड डे मिल जैसी सुविधाएं भी हैं| शिक्षा तक पहुँच तय करने में ये कारगर साबित हुए हैं लेकिन हमारे देश में आज भी शिक्षा सबकी पहुँच से कोसो दूर है| अगर आप एक सवर्ण, गैर-विकलांग, सिसजेंडर हेट्रोसेक्शुअल मध्यमवर्गीय पुरुष नहीं हैं तो आपके लिए शिक्षा प्राप्त करना चुनौती भरा हो सकता है| लेकिन हाशियाकृत समुदायों के लोग समझते हैं कि शिक्षा ही उन्हें हाशिये से बाहर निकाल सकती है| रोहिथ, नज़ीब, पायल, मानोबी के क़िस्से हमें इस देश की शिक्षा नीति के बारे में बहुत कुछ बता सकते हैं| ऐसे ही किसी समय रामराज्य में भी शिक्षा सबके लिए सुलभ नहीं थी| जब शंबूक ने शिक्षा प्राप्त की तो राम ने ही उनकी हत्या कर दी| क्या हम आज ऐसे ही रामराज्य की ओर जा रहे हैं जहाँ ना शंबूक को शिक्षा अधिकार है और सीता को कागज़ ना दिखा पाने के लिए राज्य से जाना होगा?
*** फ़ीचर्ड तस्वीर समग्र शिक्षा की वेबसाइट से है
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