सामुदायिक रेडियो सिर्फ रेडियो नहीं बल्कि लोगों की एकीकृत आवाज़ है

by | Sep 23, 2018

मैं पुरुलिआ, पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गाँव में स्थित सामुदायिक रेडियो स्टेशन में काम करता हूँ | मुझसे बहुत सारे लोगों ने यह प्रश्न किया है कि सामुदायिक रेडियो स्टेशन क्या होता है | रेड एफ.एम, रेडियो मिर्ची और आकाशवाणी तो सुना है किन्तु यह सामुदायिक रेडियो स्टेशन क्या है? यह ब्लॉग खास उन्हीं लोगों के लिए है |

सामुदायिक रेडियो आंदोलन भारत में १९९५ (1995) के समय शुरू हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने वायु तरंगों को सार्वजनिक संपत्ति घोषित किया | लेकिन वायु तरंगों को पूरी तरह सार्वजनिक होने में काफी वर्षकाल लग गए | अनेकों आंदोलनकारी, विभिन्न समुदाय के लोग शामिल थे और अभिव्यक्ति की पूर्णतः आज़ादी के लिए लड़ते लड़ते २००६ (2006)में भारत सरकार ने एन.जी.ओ और सिविल सोसाइटी को सामुदायिक रेडियो शुरू करने की हरी झंडी दिखाई | तब से लेकर आजतक भारत में करीब १८० से २०० (180-200) सामुदायिक रेडियो स्टेशन हैं |

हर एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन अपने-अपने समुदाय की भाषाओँ को प्राथमिकता देती है | जो भाषा आम टी.वी. चैनलों में अथवा अखबारों में नहीं मिलती वह सामुदायिक रेडियो स्टेशन में आपको मिलेगी | एक समुदाय का तात्पर्य सिर्फ भौगोलिक समुदाय से नहीं है बल्कि वे एक गाँव के कुछ लोग भी हो सकते हैं जिनकी अपनी उपभाषा हो या अलग-अलग शहरों से आए प्रवासी हों | विद्यालय अथवा कॉलेज में विद्यार्थियों और शिक्षकों को भी हम समुदाय बोल सकते हैं |

एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन अपना प्रसारण १५ (15)कि.मी. के रेडियस में कर सकती है | मैं जिस रेडियो स्टेशन में काम करता हूँ- नित्यानंद जनवाणी वह संथाली और पुरुलिआ की बंगाली उपभाषा में प्रसारण करती है | ऐसे हीं कानपुर में वक्त की आवाज़ अवधी में; चम्बा, उत्तराखंड में हेवलवानी गढ़वाली में; गुड़गाँव की आवाज़ प्रवासियों के लिए हिंदी, हरयाणवी, भोजपुरी, बंगाली और ओड़िया में प्रसारण करती है |

आइये आपको बताता हूँ कि एक जगह पर सामुदायिक रेडियो स्टेशन होने का महत्व क्या है ?

  • भारत में अनेकों भाषाएँ हैं और उससे भी ज्यादा उपभाषाएँ है किन्तु हर भाषा में संचार माध्यम उपलब्ध नहीं है | संथाली भाषा जोकि भारत के अधिकृत भाषाओँ कि सूची में तो है किन्तु इस भाषा में कोई संचार माध्यम नहीं है | कारणवश न चाहते हुए भी लोगों को बंगाली और हिंदी भाषाओँ से हीं काम चलाना पड़ता है | समय दर समय न जाने कितनी छोटी छोटी भाषाएँ अपना अस्तित्व खो दे रहीं हैं और एक भाषा का अस्तित्व खोना मतलब समुदाय का अस्तित्व खो जाना | सामुदायिक रेडियो स्टेशन लोगों को उनकी भाषा में संचार करती है जोकि अंततः भाषा बचाव में भी योगदान देती है और आगे की पीढ़ी तक उसका विस्तार करती है |

  • हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में किसान अनेक जतन से कृषि करते है | हर एक जगह कि अपनी अपनी जटिल समस्याएँ होती है, कहीं पानी कम तो कहीं पानी अधिक, कहीं सूखा तो कहीं बंजर ज़मीन, कहीं पौधों में कीड़े लगना तो कहीं मिटटी में क्षारीयता वा अम्लता बढ़ना | ऐसी कई समस्याएं है जो क्षेत्र दर क्षेत्र पर निर्भर करती हैं | सामुदायिक रेडियो उन किसानों को उनके क्षेत्रों और ज़रूरतों के अनुसार समाधान और परामर्श देता है जोकि उनकी भाषा में हीं होता है | शोध से भी पता लगा है कि दूसरी भाषाओँ की तुलना में आप अपनी भाषा में जानकारी या तथ्यों को ज़्यादा और अच्छे तरह से ग्रहण करते हैं | कृषि दर्शन, डीडी किसान भले हीं काफी प्रयास करती है किन्तु इतने सटीक और छोटे-छोटे क्षेत्रों के अनुसार और इतनी भाषाओं में अबतक संभव नहीं हो पाया है | साथ हीं साथ सामुदायिक रेडियो उनके स्थानीय बाज़ार, मंडी का भाव, कृषि सम्बन्धी स्कीम, बीजों की जानकारी भी देती है |

– दिवाली, होली, दुर्गापूजा और क्रिसमस जैसे बड़े बड़े त्योहार हम सब बहुत धूम से मनाते है | हमारी जो मेनस्ट्रीम मीडिया है वह तो हमसे भी ज्यादा धूम से इन त्योहारों को महीनो तक प्रसारण करती है | किन्तु हम और मीडिया यह भूल जाते है की हमारे देश में कई छोटे-छोटे पर्व त्योहार है जो अलग अलग समुदायों के लिए महत्व रखते हैं और हम उनको नज़रअंदाज़ कर देते हैं | किन्तु सामुदायिक रेडियो स्टेशन उनके साथ उनके त्योहारों में हिस्सा लेती है, उनका प्रसारण करती है, उनकी कहानियां, उनके स्थानीय गाने, आस पास के माहौल को लोगो तक पहुँचाकर उमंग और उत्साह उत्पन्न करती है |

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  • एक समुदाय में अनेक तरह के लोग होते हैं जैसे महिला, वृद्ध, किसान, धोबी, मौलवी, पंडित, सरपंच, आशाकर्मी, विद्यार्थी और इत्यादि | सभी को सामुदायिक रेडियो स्टेशन में आने की अनुमति होती है और सदैव आमंत्रित है | वे अपने-अपने हिस्से की जानकारी एक दूसरे से बाँट सकते हैं, लोगों तक पहुँचा सकते हैं| महिलाओं को अपनी कहानी, अपनी आशाएँ, अपनी सफलता प्रकाशित करने का मौका मिलता है | जो पिछड़े वर्ग के लोग है उनको पूरी आज़ादी होती है बोलने की, अपनी बात व्यक्त करने की| बहुत कम हीं देखा होगा आपने मीडिया में आम आदमी, ग्रामीण और आदिवासी लोगों को मौका मिलते | यह वाकई में उनकी सशक्तिकरण नहीं है तो क्या है ?

  • समुदाय में समस्यायें होना तो आम बात है | जैसे गाँव का रास्ता ख़राब होना, मवेशियों का खो जाना, फसल की समस्या, गाँव में जंगली जानवर घुस जाना, प्रवासियों को नए शहर की अधूरी जानकारी और अन्धविश्वास | यह सब बाहरी लोग, संस्थाएँ और सरकार कितनी भी कोशिश कर ले हल निकालना बहुत मुश्किल है | जब तक लोग खुद आगे नहीं आएँगे, विचार विमर्श नहीं करेंगे, समस्या है भी की नहीं यह महसूस करेंगे समाधान नहीं निकल सकता | इस काम में एक सामुदायिक रेडियो हीं मदद कर सकती है लोगों को आगे लाने में, मुद्दा उठाने में, विचार करने में, अलग अलग विचार धाराओं से समस्या को देखने में |

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  • सरकार पोस्टर, पैम्फलेट, पुस्तिका और घोषणाओं में न जाने कितने करोड़ों रुपए खर्च कर देती है अपनी नई स्कीम्स की जानकारी देने में और व्यावहारिक बदलाव वाले संदेशों में | आधे से ज्यादा तो इतने कठिन और शुद्ध भाषाओँ में होती है की आम लोगों को उसका मतलब पता हीं नहीं लग पता | ज़रूरी है की यह सन्देश उनकी सरल और आसान भाषाओँ में हीं उनतक पहुँचाया जाए ताकि लोग जानकारियों को अच्छी तरह से ग्रहण कर इस्तेमाल कर सके |

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ऐसी हीं कई महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है एक सामुदायिक रेडियो फिर चाहे वह समुदाय को सशक्त करना हो, लोगों और सरकार के बीच माध्यम बनना हो, समाज में पारदर्शिता लाना हो, निरंतर जानकारी पहुंचाना हो या छोटी अथवा बड़ी समस्या का हल निकालना हो | सामुदायिक रेडियो सिर्फ रेडियो नहीं बल्कि लोगों की एकीकृत आवाज़ है |

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3 Comments

  1. Rina

    Itni behter trike se btane Ke dhnywaad

    Reply
  2. Dr Deependra Sharma

    सुरेश जी धन्यवाद
    आने समुदाय जनवाणी को लोकस्वर बनाने की योजना को स्पष्ट किया है। आप निसंदेह जमीनी व प्रभावी कार्यकर्ता है। शुभकामनाएं

    Reply
  3. Dr Deependra Sharma

    सुरेश जी धन्यवाद
    आने समुदाय जनवाणी को लोकस्वर बनाने की योजना को स्पष्ट किया है। आप निसंदेह जमीनी व प्रभावी कार्यकर्ता है। शुभकामनाएं

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