देश को आज़ाद हुए 76 साल हो चुके हैं। आज भी हमारे देश में कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां आधारभूत आवश्यकताओं के लिए भी काफी मुश्किलें हो रही है। चूंकि मैं शिक्षा के क्षेत्र में काम करता हूँ तो मेरे लिए शिक्षा से सम्बंधित मूलभूत सुविधाएं बहुत मायने रखती हैं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि शिक्षा वह साधन है जिसमें हर मुश्किल प्रश्न का जवाब है। यह सभी बच्चों का अधिकार है परंतु आज भी बहुत से स्कूल ऐसे हैं जहां पर बच्चे हैं पर स्थायी शिक्षक नहीं हैं।अस्थाई शिक्षक हैं और मजबूत भवन नहीं है। शिक्षक कि अनियमितता बच्चों को शिक्षा से दूर करती जाती है।
कोंटा के स्कूलों का भ्रमण
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में 3 ब्लॉक है जिसमें से एक है कोंटा। मुझे वहां के गांवों में जाने का अवसर मिला। यह पहली बार था जब मैं वहां जा रहा था। जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर अंदर के गांवों में पहले हम कर्मचारी के यहाँ गए और फिर उनके साथ अलग- अलग गांव के स्कूलों का भ्रमण किया। जब ग्रामीण क्षेत्र में प्रवेश करते हैं तब हर पांच किलोमीटर में चेक-पोस्ट से होकर गुज़रना होता है। यह अनुभव मुझे किसी प्रकार की ग़ुलामी से कम नही लगता है। एक गाँव से दूसरे गाँव जाने के लिए जांच नाका में अपनी बुनियादी जानकारी देनी होती है।
नाम? क्या करते हो? कहाँ से आ रहे हो? कहाँ जाना है? क्या काम है? बैग में क्या है? यह सब पूछा जाता है।
एक तरफ मुझे अपनी सुरक्षा कि चिंता थी लेकिन साथ ही इन गांवों के स्कूलों में जाने की उत्सुकता भी थी।
स्कूलों की दशा
सुकमा के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्कूलों की दशा ऐसी है जैसे देश अभी आज़ाद हुआ है। और ज़्यादातर काम इसी पर है कि देश में सभी बच्चों को शिक्षा के अवसर मिलें, इसके लिए बुनियादी ज़रूरतों को कैसे उपलब्ध किया जा सके। पहला चरण क्या होगा? क्या संसाधन होंगे? इन सवालों के जवाब ढूँढ़ने की जद्दोजहद आज भी आसानी से देखने को मिल जाएगी।
जिला मुख्यालय या हाइवे के आसपास नियमितता या शैक्षणिक स्तर की चुनौती है तो अंदरूनी क्षेत्रों में आधारभूत संरचना ही नहीं है। एक भवन जहां बच्चे ठीक से सुरक्षित बैठ पाएँ, उन्हें तन ढकने के लिए पोशाक मिल पाएँ, खाना मिले ताकि चिंता न हो और किताबें मिलें जिससे वे पढ़ पाएँ। यह चीज़ें सभी स्कूलों में नहीं पहुँच पाई हैं। बच्चे पढ़ाई पर ध्यान न देकर इन सब दिक्कतों से जूझ रहे हैं। वे कैसे भविष्य में मुख्य धारा के बच्चों से प्रतियोगिता कर पाएंगे? क्या ऐसे ही उनकी उम्र बीत जाएगी? बुनियादी साक्षारता और संख्या ज्ञान के आगे क्या पूर्ण कर पाएंगे?
यह सच है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र हैं परंतु जिन जगहों पर स्कूल शुरू हो गया है वहां तो इन जरूरतों को उपलब्ध कर सकते हैं। यह गहन चिंता का विषय है कि आखिर कौन ज़िम्मेदार है। नक्सल? या सरकार? या पालक? आखिर कौन?
मेरी चिंता उन बच्चों और पालकों के प्रति बहुत ज़्यादा है जो मुझे स्कूल भ्रमण के दौरान मिले। वे इस उम्मीद में बैठे हैं कि शिक्षक आकर पढ़ाएगा। पालक की उम्मीद है कि शिक्षक अपनी बैठकों से फ्री होने के बाद अवश्य पढ़ाएगा।
मेरे भ्रमण के दौरान मुझे तीन स्कूल ऐसे मिले जहां पर बच्चे थे लेकिन शिक्षक नहीं थे। बिना शिक्षक के बच्चे स्कूल में व्यवस्थित बैठे पढ़ रहे थे। कोई मध्यान भोजन कि व्यवस्था नहीं थी फिर भी बच्चे तीन बजे स्कूल में रुके हुए थे। खुशी हुई कि वे एक झोपड़ीनुमा स्कूल में शांति से बैठकर पढ़ रहे थे और चर्चा कर रहे थे। जानकारी लेने पर पता चला कि यह यह झोपड़ी गाँव वालों ने मिलकर सहयोगी भावना से बनाई है। वे स्कूल प्रबंधन समिति से उम्मीद करते हैं कि एक बेहतर जगह बनायी जाएगी लेकिन तब तक वे अपनी भूमिका निभा रहे हैं।
सुकमा का साक्षारता दर 29% है। यह आंकड़ा कितना सच है इस पर न भी जाएँ तो भी यह तो तय हो जाता है कि स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। साक्षारता दर कैसे बढ़ेगा, इस प्रश्न को लेकर अधिक से अधिक बुनियादी ज़रूरतों को पूरा किया जाए।अगर नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने की वजह से शिक्षा का स्तर इतना दयनीय है तो जिन जगहों पर स्कूल खुला है वह भी नहीं खुलना था। तो कारण और भी हैं और अच्छी शिक्षा मिलना एक बच्चे का अधिकार है।
गाँव
जिन स्कूलों में बच्चे और शिक्षक नहीं मिले उन गांवो में भ्रमण करने गए थे तो पाया कि पूरा गाँव का गाँव खाली पड़ा है। पालक खेत और जंगल चले जाते हैं। एक पालक मिला भी परंतु उन्हें पता नहीं है कि स्कूल में शिक्षक क्यों नहीं आए। “आप लोग शिक्षक से पूछ्ते नहीं हो कि वो स्कूल क्यों नहीं लगाते?“, मैंने सवाल किया तो उन्होंने कहा, “बोलते हैं बैठक के लिए सुकमा गए थे“। उनका काम होता होगा इसलिए हम ज़्यादा नहीं पूछते और सही बताएं तो ये सब हमें ज़्यादा समझ भी नहीं आता।“
और भी पालकों से पूछने पर समझ आया कि उनकी स्कूल के प्रति बिलकुल भी जवाबदेही नहीं है। शिक्षक हर बार गाँव वालों को बैठक के लिए चले जाने की बाते बताते हैं और उसके बाद पालकों के पास कोई विकल्प नहीं रह जाता है कि वे स्कूल से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करें।
Thank you for explaining the educational setting in Ko(n)ta.