प्रिय मित्र
काशीपुर से में भोपाल के लिए रवाना हो गया हूं। वही पुराना घर! अब तो घर क्या है कहां है इसकी समझ कमजोर पड़ गई है। खुले आसमान ने हमें इतना अपना लिया है कि दीवारें पराई लगने लगी है। यह तीसरा और आखिरी खत काशीपुर के सबसे अप्रतिम भाग के बारे में है। यह ना होता तो प्रेम की काया पता ही ना पड़ती। यह ना होता तो अकेला पन काट पड़ता। और यह ना होता तो अंधेरे में घंटो बैठने की आदत ही ना पड़ती।
प्रेम कई प्रकार का होता है। इंसान-इंसान के बीच, इंसान-पर्यावरण के बीच और इंसान-जीव के बीच। अगर मित्र तुम इस जिंदगी की खूबसूरती को महसूस करना चाहते हो तो तीनों ही प्यार मुकम्मल होना जरूरी है। अब तुम तो जानते ही हो – एक होता है क्रश और दूसरी होती है मोहब्बत। “क्रश” याने ऊपरी सुंदरता को सराहना, मन ही मन उसको पाने की उत्तेजना। क्रश अगर तितली है तो प्यार गर्मी के महीने की ठंडी हवा का झोंका। अब आप पूछेंगे झोंका क्यों? क्योंकि उसका स्पर्श अविस्मरणीय है, संयुक्त है पर चंचल-अचल भी।
अक्सर अकेलापन जब आपको घेर लेता है, तब आप प्रेम अनेकों विकल्प में खोजने लगते हैं। जैसे कुछ महीनों पहले एक मित्र मिला था। बचपन में इन्होंने पौधों से ही मित्रता कर ली थी। अक्सर उसी की ओट में बैठे अपने दिल का हाल बयां करते थे। ऐसे प्रेम के लिए बहुत ममता चाहिए जो अक्सर किशोर व किशोरियों में ही पाया जाता है। काशीपुर में शहरी शोर से दूर, अनजान भाशियों के बीच, मैंने भी प्रेम को ढूंढा जैसे रेगिस्तान में ढूंढते हैं चमचमाता कुंड।
रसोई के बाजू वाले कमरे में, जहां लकड़ी चूल्हे के लिए इकट्ठी कर रखी थी, वही रहता था भालू। ना कोई दूसरा जानवर वहां जाता और ना ही भालू घर के बाहर ज्यादा निकलता। उसके बीमार होने के कारण ना कोई उसे हाथ लगाता ना वह इंसानों से स्नेह करता। पहली बार जब मैंने उसे छुआ; मैं सहम गया। मेरा हाथ उसकी चमड़ी पर पढ़ते ही उसने जोर से भौका। पर वही उस पर उसने हमें जोड़ दिया, एक बना दिया। कुछ ही दिनों में ऐसा लगने लगा कि उसे मेरा इंतजार था और बचपन से मुझे उसका। वो जो छोटा सा घर मैंने किसी पशु की चाहत में बना दिया था बाल-अवस्था में, शायद वह उसी के इंतजार में था।
फिर क्या भाई! अकेले छोड़ता ही नहीं। शुरू के दिनों में ही मैंने अकेलेपन में दम तोड़ दिया होता गर वो ना होता। तारे देखना, जुगनू देखना, लंबी दूरी बस चलते रहना, उसका मेरी राह तकना और मेरा बार-बार उसको पीछे मुड़कर देखना। सुबह का सूरज और वह दरवाजे पर साथ में ही आते थे। उसका पेट गुदगुदाना और छत पर साथ में धूप सेकना। पेड़ों के बीच चित्र भी हम साथ में बैठकर ही बनाया करते थे। वह शांति से मेरी बात सुनता और जब बात ना होती तब हम एक टुक एक दूसरे की आंखों में देखते रहते। भाई मेरे, हमने तो खुद के खेल भी इजाद कर लिए थे। कमरे की सीढ़ियां उतरने के पहले वह मेरी सीटी बजाने का इंतजार करता। हमेशा पीछे चलता और अगर पीछे ना जाने दूं तो गोल-गोल घूमता रहता। दरवाजे के बाहर अपने जख्मों को खरोदता और रात भर उसकी आह मेरे कानों में गूंजती रहती। इस मित्र की बदसलूकी देखिए सुबह फिर मेरी खुशी में अपनी खुशी ढूंढता।
एक बार हुआ यूं की, शाम हुई और भालू और मैं स्कूल से वापस कैंपस आ गए। फिर मैं फटफटी से मार्केट निकल गया। मार्केट से वापस पैदल आना था। पैदल आते हुए बार-बार पीछे देखता रहा की काश भालू होता। तरस रहा था उसके लिए। फिर लैपटॉप उठाने जब स्कूल पहुंचा। क्या देखा मैंने? भालू मुझे खोजते हुए वहीं दरवाजे के बाहर मेरा इंतजार कर रहा था। दिल भर आया और उसके निस्वार्थ प्रेम ने मुझे हरा दिया। उसमें मैंने अपने पिता, अपने दोस्त और कई बड़े बूढ़ों की छवि देखी है। अगर प्रेम एक विद्या है तो वह मेरा गुरू।
कवि लहर बनकर नदी को पाना चाहते हैं। प्रेमी प्रेमिका की बाहों में विलीन होना चाहते हैं। वृद्ध, मां की गोद में खो जाना चाहते हैं। और अगर चाहत कबूल हो तो? करिश्मा नहीं होगा वो? मैं और भालू भी एक दूसरे से विराह नहीं होना चाहते थे। और भालू ने एक तरकीब निकाली। वह काला था, घोर काला, ब्रह्मांड जैसा काला। उसने मेरा हर अंधेरे में पीछा किया और घुल गया उसी अंधेरे में। उसने अपनी रुह मुझे उपहार करदी। अब मैं कभी अकेला नहीं। हर रात में उसका साया है और हर उजाले में उसकी परछाई।
बहुत मजा आया मित्र तुम्हें खत लिख कर। आशा करता हूं तुम्हें भी मेरा पत्र कभी अकेले ना रहने दे और भरपूर खुशहाली से भर दे। चलता हूं। फिर मिलेंगे किसी दूसरे मोड़ पर।
सिर्फ तुम्हारा
शैलेश किन्टसुगी
:’) it has taken
me to Kashipur!
I’m glad Mona 🙂