आज सोच रही हूँ वह कौन से ऐसे पल हैं जिन्होंने मुझे कठिन परिस्थितियों से निकलना सिखाया तथा आज मैं जो भी करने का प्रयास कर रही हूँ, उसमें न केवल मेरी हौसला अफ़ज़ाई की वरन साकारात्मकता के साथ उन कार्यों को करने की प्रेरणा भी दी | बहुत गहन विचार विमर्श करने के बाद सोचा की मेरी पहली उड़ान, जो निश्चित उनमें से एक पल है, उसका विस्तार से वर्णन करूँ | इसके दो फायदे होंगे, पहले तो यह की कुछ पुरानी हवाई यादें ताज़ा हो जाएंगी, और दूसरा और सबसे ज़रूरी ये, की मेरे लेख में पाठकों की दिलचस्पी भी होगी | आह! मन वही सब सोचने लगा | तो प्रारम्भ करती हूँ मैं अपनी शानदार यात्रा |
20 नवंबर, 2014
एक साल के इंतज़ार के बाद और अत्यधिक मुश्किलों को पार करने के बाद डीजीसीए से मेरा स्टूडेंट पायलट लाइसेंस आया था | मेरी तो मानो जैसे नज़र ही नहीं हट रही थी उससे | बार बार उसी को देखती, अपनी तस्वीर को देखती, उसकी तस्वीर खींचती … ऐसे करके मैंने अपना पूरा दिन बिता दिया | अब इंतज़ार था उस लिस्ट का जिसमें मेरा नाम होत और मुझे किसी निर्धारित तिथि पर अपनी पहली प्रशिक्षण उड़ान के लिए बुलाया जाता | आये दिन किसी लड़की का नाम आता, पर मेरे नाम का कोई अता पता ही नहीं | अंत में थकहार के मैंने निर्णय लिया की इस बारे में अब नहीं सोचूंगी और अपने आप को और परेशान नहीं करुँगी | बस फिर क्या था, जिस दिन सोचना छोड़ा उसके अगले दिन (25-11-2013) ही एक लिस्ट आई, उसमें लिखा था तूलिका जोशी बी टेक की छात्रा, 11.30 बजे फ्लाइंग ग्राउंड पहुंचे अपनी प्रशिक्षण उड़ान के लिए | क्या दिन था वह, मतलब पूरे कमरे में एक ख़ुशी की लहर दौड़ गयी, सब दोस्त बहुत खुश, पर मेरे अंदर ख़ुशी के अलावा एक और विचार आने लगा | एक अजीब सा डर, पेट में कुछ तितलियों वाला, वह दिन आ गया था जिसका मैं तीन साल से इंतज़ार कर रही थी, पर वह अपने साथ एक अजीब तरह की घबराहट लाया था | खैर अब तो इंतज़ार था अगली सुबह का | अपने आप को प्लेन में उड़ते सोच सोच के मैं सोने चली गयी और रात भर स्वप्न में ना जाने मैं कितनी देर प्लेन उड़ाती रही | स्वप्न में ऐसा लगता की प्लेन पर से मैं नियंत्रण खो रही हूँ, प्लेन की मर्ज़ी के अनुसार एक गहरे से समन्दर की ओर जा रही हूँ और छपाक ! डर के साथ मेरी नींद टूट जाती | तकरीबन रात 4 बजे के पश्चात मेरी आँख लग गयी और सुबह 7.30 बजे तक पूरा फ्रेश होकर उठी मैं |
26 नवंबर, 2014
एक नया दिन था पूरी तरह उत्तेजना एवं खुशियों से भरा हुआ |नहा धोखर मैं तैयार हुई | यूनिवर्सिटी जाने की ख़ुशी आज ज़्यादा ही थी और अपनी औपचारिकताएं पूर्ण करते ही मैं समय से पहले ही रनवे पर पहुँच गयी | मैं वहीँ खड़े खड़े तीन चार जहाज़ों को बच्चों की तरह छू रही थी और आकाश की ओर देख रही थी | सामने पायलट मैम आ रही थी| उन्होंने मुझसे अंतरंगता पूर्ण वार्ता कर मुझे सामान्य महसूस करने में पर्याप्त मदद की और उड़ान के लिए तैयार होने को कहा | सर्वप्रथम मेरी ही बारी थी | संपूर्ण पहनावे तथा एविएशन हेडसेट के साथ मैंने प्लेन में प्रवेश किया| ये सेसना 152 4 सीटर प्लेन था | हालाँकि सिटींग चेयर ज़्यादा आरामदायक नहीं थी किन्तु हेडसेट पेहेन कर, उस पर बैठ कर मैं स्वयं को पायलट महसूस कर रही थी | मुझे पूर्ण प्रदत्त चेक लिस्ट के अनुसार प्लेन की पूरी चेकिंग करनी थी जो मैंने मेंटर मैम के साथ पूरी की | यह सब कार्य मेरी हड़बड़ाहट के कारण मैंने समय से पहले ही पूर्ण कर दिए | मैम मुझे बार बार अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने के लिए कहती और मैं कुछ अनमने ढंग से उनकी बात का पालन करने का प्रयास करती रही | मैम शायद मेरे मन में जो जोश और जूनून हिलोरे मार रहा था, उसे समझती थी | समस्त चेकिंग करने के पश्च्यात मैंने मैम की मदद से रनवे पर प्लेन दौड़ाना प्रारम्भ किआ और एक निर्धारित दूरी तक दौड़कर, प्लेन को पर्याप्त रफ़्तार दिलाकर, टेकऑफ का कार्य प्रारम्भ किया | मुझे मेरी ट्रेनिंग के दौरान बताया गया था की जहाज़ उड़ने में टेकऑफ और लैंडिंग अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं तथा इसमें गलती की कोई गुंजाईश नहीं होती है | आज मैं वास्तव में ये महसूस कर रही थी की ये कार्य न केवल महत्वपूर्ण वरन रोमांच से भरपूर भी होते हैं | टेकऑफ के पश्च्यात मेरी प्रथम दिन की ज़िम्मेदारी में नियंत्रित उड़ान के अतिरिक्त दिशाओं का अंदाज़ लगाना भी था | जहाज़ एक इन्क्लिनेशन के पश्च्यात सीधे उड़ने लगा था | मैंने साइड विंडो से ज़मीन की ओर देखा, उस क्षण को बयां करना संभव नहीं है | मेरा आनंद अपने चरम पर था | एक हल्का सा डर मेरे अंदर लगातार बना हुआ था और ये भी सोच रही थी की काश मेरा परिवार इस समय मेरे साथ होता तो अपनी बेटी को जहाज़ उड़ाते देख बहुत प्रसन्न होता |
इसी दौरान एक मज़ेदार किस्सा हुआ | दिशाएं बताते बताते पायलट मैम मुझे एक मंदिर दिखाने की कोशिश कर रही थी, काफी समय से, परन्तु वह मुझे दिख ही नहीं रहा था | मुझे दिखाने के चक्कर में मैम प्लेन को मेरी दिशा में झुकाती रही और ना मंदिर मुझे दिखता, ऊपर से डर मेरा बढ़ता जा रहा था क्योंकि मैं नीचे को होती जा रही थी | एक समय ऐसा आया की मुझे लगा मानो मैं नीचे हूँ और मैम ऊपर और टेढ़ा प्लेन, उस वक़्त मेरी हालत खराब और मेरे मुह से तुरंत निकला, दिख गया दिख गया मैम, उस वक़्त झूट न बोलती तो पता नहीं मेरा अपने डर के कारण क्या हाल होता | वह दिन अलग ही था | प्लेन से उतरने के बाद हलकी हलकी नींद आने लगी थी | उस रात मैं बहुत अच्छी नींद सोयी |
ऐसे ही दिन पे दिन बीतते गए | अब मैं थोड़ा थोड़ा सीखने लगी थी | हमेशा मैम प्लेन हिलाते रहने की कोशिश करती और मेरा काम होता प्लेन का बैलेंस बिगड़ाये बिना उसे एक दिशा में ले जाऊं | कभी कभी बिलकुल समझ नहीं आता था कैसे करूँ तो कभी कभी आसानी से मुमकिन होता है | मैं और मैम हवा में बहुत बातें करते | मैम के मज़ेदार किस्सो में कब टाइम बीत जाता कभी कभी पता ही नहीं चलता | पर सबसे जादा डर तब लगता जब मैम तेज़ी से अचानक जहाज़ को नीचे नीचे ले जाती |
इसी बीच एक और मज़ेदार किस्सा हुआ |1700 मीटर की उचाई पर एक बार मेरा दरवाज़ा हल्का सा खुल गया | मेरे तो हाथ पैर फूल गए, उस दिन मुझे मौत के बहुत करीब होने का ऐसा ख्याल पहली बार आया | मैं उस दिशा में देख भी नहीं पा रही थी | मैंने तुरंत मैम को दिखाया तो मैम ने बड़े आराम से, जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो, मुझे कहा क्या हुआ, बंद कर दो | जब मैम को समझ आया की मेरी क्या हालत है तब मैम ने बड़ी आसानी से, जैसे कार का दरवाज़ा बंद करते हैं, वैसे बंद कर दिया| उस दिन थोड़ी देर तक मैं सुन्न रही | कुछ समझ ही ना आया | दसवें दिन के अंत तक मुझे ऐसा लगा की मैं एक जहाज़ उड़ा सकती हूँ | तकरीबन हर चीज़ पे मेरा कंट्रोल था |
जब लोग कहते थे की उनको कुछ अलग ही अनुभूति हुई, मैं कभी उनको समझ ही नहीं पायी उस दिन तक | वास्तव में उस दिन पता चला की डर मिश्रित रोमांच का एहसास ही अलग है | वह एहसास की मैं एक जहाज़ उड़ाया है | वह एहसास को मैं दुनिया में किसी भी चीज़ के लिए नहीं बदलना चाहूं | एक उड़ान सफलतापूर्वक करने के बाद, आसमान में उड़ते हुए तथा ज़मीन पर आकर आत्मविश्वास में हुई वृद्धि का बयान कर पाना शायद संभव नहीं हैं |
Happy birthday again! Was waiting to read about this experience for a while. Good you chose to blog 🙂
😀 🙂
I think I want to learn how to fly a plane after reading this. 🙂
fictitous blog … finally everybody got knew this story 🙂
fly on ….
Very well penned! Could feel every word of it!