एक नर्स की भूमिका

by | Aug 9, 2023

नर्सेज़ का वेतन अलग-अलग जगह पर अलग होता है। प्राइवेट हॉस्पिटल मे नर्सेज़ का वेतन सरकारी हॉस्पिटल से कम होता है। सरकारी नौकरी में कुछ पहलू बेहतर हैं जैसे जो सुविधाएँ दी जाती हैं – हेल्थ इंश्योरेंस, छुट्टियां, रेसीडेंसी, मृत्यु होने पर परिवार के सदस्य को नौकरी, और इस नौकरी के होने की वजह से घरवालों की संतुष्टि। लेकिन बहुत बार सरकारी हॉस्पिटल मे भी कुछ प्रोजेक्ट के तहत नर्स को लगाया जाता है जिसमें उनका वेतन बहुत कम होता है और काम मे उनको कोई विशेष छूट नही होती है। साथ ही जो सुविधाओं के वो हकदार है, वो भी नहीं मिलती। सरकार द्वारा जो ढांचा तय किया गया है, उसको मानकर काम करने वाले वास्तव में कम ही नर्सेज़ हैं।

तो स्वाभाविक है की इस ‘गैरसरकारी-सरकारी’ नौकरी को लोग अब शौक या इच्छा के लिए नहीं बल्कि मजबूरी में करते है।

एक अंदाज़ के लिए मैं यहां बता रहा हूँ कि सातवे पे कमीशन के अंतर्गत नर्स की सैलरी सरकारी हॉस्पिटल में कितनी है

काम के अनियमित समय को लेकर भी नर्सेज़ परेशान रहते हैं। शिफ्ट तय होने के बावजूद हमेशा काम घड़ के काँटों के मुताबिक़ नहीं चलता है । ओवर वर्क होना आम है, साथ ही अच्छे काम की सराहना न के बराबर है। इन दोनों को साथ मिला लें तो ये समझ आता है कि आज सिवाय खुद के मनोबल के, कोई और कारण नहीं है नर्स के पास प्रोत्साहित होने का।

कोविड-१९ मे नर्स की भूमिका बहुत अलग-अलग रूपों मे रही। पहली लहर में ग्रामीण क्षेत्र मे देखें तो जो प्रवासी श्रमिक गांव लौट आ रहे थे उनकी स्क्रीनिंग, क्वारंटाइन, और सहानुभूति के साथ लगातार फॉलो-अप करते रहना एक मुख्य ज़िम्मेदारी थी। अगर कम लोग भी एडमिट हुए तो जो मरीज़ भय और शंका के चलते हॉस्पिटलों में क़तार लगा रहे थे, उन्हें भी हौसला और भरोसा देना नर्स के जिम्मे आया। इस बीच खुद बीमार पड़ने का डर, परिवार की चिंता, थकान – इस सब के बारे में उन्होंने किस्से बात की होगी!

मनीष अपने सहकर्मियों के साथ

कोविड की दूसरी लहर पूरे देश के लिए ज़्यादा खतरनाक थी। इस दौरान नर्सेज़ को लगातार आपातकालीन स्थिति की तरह तैयार रहना पड़ा। आपने कोविड संक्रमण से नर्सेज़ की मृत्यु के बारे में सुना-पढ़ा होगा। जिस तरह के उपाय सावधानी के लिए उपलब्ध थे, जैसे की पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (PPE) – उसमें भी सावधानी रखने का भार नर्स पे ही था। लम्बे घंटों तक PPE पहने रहना मुश्किल काम है। इस क्षेत्र से स्वयं काम करने के कारण जानता हूँ की कुछ टाइम तक तो बीमार होने पर खुद का टेस्ट नही करने के भी आदेश थे। जिस मानसिक तनाव से नर्सेज़ गुजरते है, ख़ास तौर पर ऐसे आपातकालीन समय में, मेन्टल हेल्थ की दृष्टि से उन्हें काउंसलिंग मिलना भी ज़रूरी है। इस तरह की सुविधाओं से हम बहुत दूर हैं।

मनीष कोविड की दूसरी लहर के दौरान पुलिस कर्मचारियों के साथ

हाल ही में आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) ने महिला नर्स के लिए ८०% दाखिला आरक्षित किया है। इस पर पुरुष नर्सेज़ की तरफ से नाराज़गी जताई गयी और इस पर विवाद जारी है। मैं खुद एक पुरुष नर्स होने के प्रति इसको समझता हूँ। नर्सिंग को हमारे समाज में हमेशा से ही महिला का काम समझा गया है। पर नौकरी की किल्लत अब इस तालमेल को उलझाने लगी है।

इससे निपटने के लिए ये कुछ उपाय मुझे सूझते हैं:

  • नर्सेज़ को निश्चित शिफ्ट के अंतर्गत बस अपने काम में रहने दिया जाए – न कि और सरकारी कामों में खींचा तानी हो
  • समय पर कौशल बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण हो
  • उनकी समस्याओं को सुनकर गम्भीरता से लिया जाए और हल ढूंढा जाए
  • वेतन वृद्धि गाइडलाइन्स के तहत नियमित रूप से हो
  • नर्सेज़ को हॉस्पिटल मे दवाई लिखने का अधिकार हो – कुछ कोर्स हो जिसमें उनको अच्छे से दवाई लिखने के बारे मे सिखाया जाए क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में कई हॉस्पिटल नर्सेज़ ही सम्भालते हैं
  • प्राइवेट हॉस्पिटल के वेतन सम्बन्धी गाइडलाइन्स लागू हो और इन्हें न मानने पर दंड लगाया जाये
  • पेशेंट-नर्स रेशियो निर्धारित किया जाए
  • नर्सेज़ की मानसिक स्थिति की देखभाल हेतु काउंसलिंग हो

नर्सिंग का मतलब है मरीज की केयर करना, साथ ही उन्हें समझाना और उनके साथ रहकर उनको सपोर्ट करना। एक डॉक्टर २४ घंटे मरीज के साथ नही रह सकता लेकिन नर्स २४ घंटे मरीज के साथ रहते हैं। उनके सभी प्रकार के रेकॉर्ड रखना, समय पर दवाई देना, समस्या होने पर तुरंत डॉक्टर को सूचित करना, हॉस्पिटल की साफ सफाई देखना। यह कहना मुश्किल होगा कि हॉस्पिटल स्टाफ और मरीज के परिवार के बीच एक नर्स की भूमिका किसके प्रति ज़यादा है। या क्या नर्स के बिना मरीज का परिवार और डॉक्टर काम कर पाएंगे? तो फिर क्यों नर्सेज़ के प्रति हमारी ये उदासीनता?

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