जैविक खेती और कुछ पुरानी पद्दति का विश्लेषण

by | Nov 10, 2023

जब हम अपने आस पास खेतों में लहलहाती फसलों को देखते हैं तो लगता है कि हमारा देश कितना अनाज उत्पादन कर रहा है और मान लेते हैं कि हर घर में लोगों के लिए पर्याप्त आहार है। लेकिन हम कभी यह नही सोचते कि जो अनाज उग कर हमारे पास आ रहा है उनमें से लगभग सभी फसलों में रसायन का उपयोग किया जाता है। सब्ज़ियों के साथ भी यही हो रहा है।

हरित क्रांति के समय हाइब्रिड बीज और रासायनिक खाद जैसी चीज़ों का प्रचलन बढ़ने से किसानों की उपज भी बढ़ी। कई तरह की कृषि तकनीक में बदलाव आय और नए-नए कृषि यंत्रों का उपयोग हुआ जिससे शारीरिक श्रम कम किया जा सके व कई लोगों का कम मशीन एक बार में ही कर दे। समय की मांग के चलते हम इन चीज़ों का उपयोग करते रहे और इसके दुष्परिणाम के बारे में नही सोचा। सामाजिक स्तर पर हमें यह ख़्याल नहीं आया कि कैसे रासायनिक खेती हमारी ज़मीन को बंजर करती जा रही है और उससे उपजी फसल से हमारा स्वास्थ्य भी बुरे रूप से प्रभावित हो रहा है।

आज के समय में जब लोग व सरकारें इस हानि को समझ रहे हैं, उनका प्रयास जैविक खेती की तरफ बढ़ रहा है। यही सब सोचते हुए मेरी बात ओमप्रकाश जी से हुई जिनका जैविक खेती, प्राक्रतिक खेती, देसी बीज और कई सारी पारंपरिक कृषि तकनीकों के साथ २३ साल का अनुभव है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी स्कूल में हुई और १२वीं के बाद उन्होंने नर्सिंग की प्रैक्टिस शुरू की। वो कहते हैं कि, “मेरा परिवार किसान परिवार है. पिता जी भिलाई के स्टील प्लांट में काम करते थे और साथ ही शहीद हॉस्पिटल में निःशुल्क सेवा देते थे. उन्हीं की प्रेरणा से मेडिकल के क्षेत्र में काम करने का मन बनाया।

सन 2000 में उन्होंने डॉ विनायक सिंह के संस्थान रूपान्तर को ज्वाइन किया। इसी माह में छत्तीसगढ़ राज्य बना। रूपान्तर का काम गाँव में स्वास्थ्य और शिक्षा पर था। वहा ज्वाइन करने के बाद ओमप्रकाश जी को पता चला कि यहाँ अभी मेडिकल स्टाफ की ज़रूरत नही है। डॉ विनायक ने उनको खेती के काम के बारे में बताया और उसी में शामिल होने के लिए कहा। ओमप्रकाश जी ने यह काम करने का मन न होते हुए भी इसे किया। कुछ महीने बाद भी जब मेडिकल का काम नहीं था, उन्होंने समझा कि अब तो उनको खेती के काम में रूचि होने लगी थी। वह फसल की नयी-नयी किस्मों के साथ प्रयोग करके नयी उन्नति तकनीकों का इस्तेमाल करने में लीन हो गए थे।

2007 में ओमप्रकाश जी ने जन स्वास्थ्य सहयोग (JSS) को ज्वाइन किया जहाँ पर कृषि के काम को आगे बढ़ाया जिसमें देशी बीज संरक्षण SRI तकनीक को अपनाकर मिलेट (रागी) की खेती का प्रयोग किया। इसमें पारम्परिक तकनीक के मुकाबले दो गुना से ज़्यादा उपज प्राप्त हुई और हर साल इस उपज में बढ़ावा ही हो रहा है। उन्होंने प्रयोगिक तौर पर जैविक खेती, प्राकृतिक खेती और देशी बीजों के उपचार पर काम शुरू किया। उनका कहना है कि ज़्यादातर किसान ऐसे हैं जो आधुनिक रसायन खरीद कर खेती करने में सक्षम नही हैं लेकिन फिर भी कोई और विकल्प न होने के कारण ऋण लेकर खेती करते हैं और फिर उन्हीं रसायनित अनाजों का उपयोग भी करते है। वे कहते हैं कि,

ग्रामीण अर्थव्यवस्था पहले किसानों के हाथ में थी लेकिन बाज़ारीकरण के बाद सब कुछ उनके हाथ से निकल गया। समय के साथ तकनीक आई तो उत्पाद बढ़ा। रोपा खेती, हाइब्रिड बीज, रसायनित खाद आदि का उपयोग भी बढ़ा जिससे कई फायदे हुए। लेकिन उससे हमारी जमीन और पर्यावरण प्रदूषित भी हुआ। उस समय परिस्थिति ऐसी थी की किसी ने इन बातों पर विचार नही किया और हर चीज़ को अपनाते चले गये लेकिन आज की परिस्थिति पूरी तरह बदल गयी है। लोग अब जागरूक हो रहे हैं और जो चीज़ रसायन रहित है, उसे अपने जीवन में अपना रहे हैं। इससे किसानों को भी जैविक खेती व प्राकृतिक खेती करने के लिए प्रोत्साहन मिल रहा है लेकिन फिर भी ऐसे किसानों की संख्या बहुत कम है।

मुझे ओमप्रकाश जी से यह भी पता चला कि देशी बीज वह होता है जिसका निर्माण प्रकृति खुद जलवायु के अनुसार करती है – जैसे कि जब दुनिया में सबसे पहला बीज बोया गया होगा तब उसमें कोई मिलावट या अलग से किसी खाद का प्रयोग नहीं किया गया होगा। फसल काटने के बाद किसान उसमें से कुछ अपने पास बचा लेते थे ताकि अगली फसल में उसका उपयोग बीज के तौर पर कर पाए।

मैंने यह भी समझा कि बेवर खेती वह होती है जिसमें ज़मीन तैयार करने की ज़रूरत नही होती, बस ज़मीन पर बीज छिड़क दिया जाता है और फसल उग आती है। यहाँ छत्तीसगढ़ में ज़्यादातर बैगा समुदाय के लोग इसे करते हैं। बोटा खेती में ज़मीन तैयार करके बीज डाला जाता है और फिर खेत की जोताई की जाती है। रोपा खेती में पहले नर्सरी तैयार की जाती है और फिर ज़मीन। उसके बाद रोपाई होती है। SRI तकनीक में बीज के किस्मों के अनुसार पौधों के बीच निश्चित दूरी रखी जाती है ताकि बीज प्रकृति से अच्छी तरह पोषण ग्रहण कर पाए। यह तकनीक चावल की खेती के लिए उपयोग की जाती है और छत्तीसगढ़ में इसका मुख्यतः प्रयोग होता है क्योंकि यहाँ की मुख्य फसल धान ही है।

JSS में SRI पद्दति का प्रयोग गर्मी के समय मिलेट की खेती करने के लिए भी किया गया और उसका परिणाम भी अच्छा निकला। अब सरकार भी छत्तीसगढ़ में ग्रीष्म कालीन मिलेट खेती पर जोर दे रही है। खेतों में पैदावार बढ़ने के लिए रसायन के अलावा हम घर पर बनी हुई खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं जैसे साधारण कम्पोस्ट खाद जो कि हर किसान के लिए बनाना आसान होता है; जीवामृत – जो कि जमीन में जीवाणु को जीवित करता है जिससे जमीन और उपजाऊ बनती है; हरी खाद – इसमें किसान को अपने खेत में फसल चक्र को बदलते रहना पड़ता है जिससे खेत को फोटोसिंथेसिस के माध्यम से खाद मिलती रहे, जमीन में कैल्शियम, ज़िंक, आयरन आदि जाता रहे, और अलग से किसी चीज़ की ज़रूरत न पड़े बल्कि प्रकृति खुद ही फसल को बढ़ने में मदद करती रहे।

आज ओमप्रकाश जी द्वारा चलाये जा रहे अभियान में 1000 से ज्यादा किसान जुड़ कर प्राकृतिक और जैविक खेती कर रहे हैं, और उनकी उपज भी अच्छी-खासी हो रही है। उनका और उनके साथ के किसानों का मानना है कि बिना केमिकल के भी अच्छी खेती और उपज संभव है। उन्होंने कहा कि आप जब जंगल से गुज़रते हुए गांव जाते हो तो क्या कभी कोई जंगल में खाद-पानी डाल रहा होता है। हमारी धरती के पास इतनी ताकत है कि वो बहुत कुछ करने में सक्षम है।

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