असामान्य गर्भाशय

by | Nov 29, 2020

मैं आपसे बात करना चाहती हूँ उस जगह की जहाँ हमने ज़िन्दगी की शुरुआत की| यह किसी घर या मकान की बात नही हैं, बल्कि बात है उस जगह की जहाँ हर किसी को जीवन मिलता है, जहा जीवन का सृजन होता है। माँ के शरीर का वो भाग जहाँ हम 9 माह रहें है, जिसे हम गर्भाशय कहते हैं। प्रकृति ने मनुष्य, पशु,जीव-जन्तुओं, वनस्पति सभी में दो लिगों का निमार्ण किया है। पुल्लिंग एंव स्त्रीलिंग जिसमे से जन्म देने की ताकत सिर्फ स्त्रीलिंग (Female) को ही है| मानव समाज में जन्म की प्रक्रिया को बढ़ाने वाली शारीरिक रचना में गर्भाशय (uterus) या आम बोल चाल में कहें तो बच्चेदानी की अहम भूमिका है|

गर्भाशय महिलाओं का एक अंदरूनी अंग है, जो मोटी मांसपेषीयों की दीवारों से घिरा हुआ है। इसकी बनावट दिखने में सामान्यतः नाशपाति के आकार जैसी होती है, परन्तु सभी महिलाओं मे गर्भाशय का आकार सामान्य नही होता है। इसे गर्भाशय की असामान्यता (abnormal uterus) कहा जाता है। रानी बहु* का किस्सा भी यहीं से शुरू होता है|

रानी बहु पन्ना के कूड़न गांव में रहती हैं। हर महीने के दूसरे मंगलवार को इस गांव में ग्राम स्वास्थ्य पोषण दिवस (Village Health Nutrition Day – VHND) का आयोजन होता है। इस आयोजन में गांव की गर्भवती महिलाओं, धात्री महिलाओं एंव बच्चों को शामिल किया जाता है| ऐसी ही एक VHND में तीन माह की गर्भवती रानी बहु भी शामिल हुई। हर गर्भवती महिला से पूछा जाता है कि उन्हे कोई परेशानी तो नही हो रही हैं या किसी प्रकार का कोई दर्द तो नही है| तब रानी बहु ने बताया की उनके पेट और कमर में हमेशा दर्द होता रहता हैं।

रानी बहु के 2 नवजात शिशुओं की मृत्यु हो चुकी है। वे बताती है, “मेरी पहली बच्ची शादी के एक साल बाद हुई थी| बच्ची का जन्म छठे महिने में ही हो गया था। प्रसव (delivery) घर मे हुआ था| बच्ची बहुत कमज़ोर थी, उसे लेकर हम अस्पताल भी गये जहां बच्ची का वज़न हुआ| वो केवल 900 ग्राम की थी| डॉक्टर ने उसे तुरन्त भर्ती करवा लिया था। वहां हम बच्ची को लेकर तीन महीने तक भर्ती रहे, 3-4 बार खून भी चढ़ा| जब तीन महीने बाद छुट्टी हुई तब बच्ची का वज़न 1.5 किलो हो गया था। डॉक्टर के सुझाव अनुसार जब हम 12 दिन बाद फॉलो-अप के लिए वापस गए तो बच्ची का वज़न गिर के 1.2 किलो हो गया था| उसे फिर से भर्ती कराना पड़ा| दो दिन बाद, वजन और खून की कमी के कारण, अस्पताल में ही बच्ची की मृत्यु हो गई। उसके सिर पर बाल भी नही थे|

इसके छः महीने बाद रानी बहु फिर से गर्भवती हुई । गर्भ काल के छठे महीने में पिछले बार की तरह उसे फिर से परेशानी होने लगी थी| सातवें महीने में कम वज़न का बच्चा हुआ, जो दो बार ही रोया था और उसकी भी मृत्यु हो गई।

असामान्य गर्भाशय (Abnormal uterus)

शिशु का विकास माँ के गर्भावस्था के दौरान चलता रहता है| जिस प्रकार उसके दूसरे अंग विकसित हो रहे होते हैं, उसी प्रकार प्रजनन अंग (reproductive organs) भी विकसित होते हैं। गर्भावास्था के समय गर्भावती महिला में शारीरिक कमियों की वजह से शिशु के विकास में अवरोध उत्पन्न होता है। कोई भी अंग जब सही रूप से नहीं बढ़ता है तो उसे जन्मजात असामान्यता कहते हैं। महिलाओं में गर्भाशय की असमानता का पता तब तक नही चलता है जब तक उनका मासिक चक्र (menstrual cycle) न शुरू हो जाए, या फिर वे गर्भ धारण करने का प्रयास नही कर रही हों।

असामान्य गर्भाशय के कारण महिलाओं को मासिक चक्र के दौरान गंभीर पेट-दर्द हो सकता है। महावारी का रक्त गर्भाशय में एकत्रित होना ,एंव समय पर उपचार नही मिलने से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता हैं। इसी वजह से गर्भधारण करने में भी परेशानी होती है, गर्भपात (miscarriage) की सम्भावना बढ़ जाती है और कभी-कभी नौ महीने से पहले ही प्रसव हो जाता है।

असामान्य गर्भाशय के प्रकार
Picture from Mom Junction

असामान्य गर्भाशय के इलाज के लिये बहुत सारी प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है जिनसे गर्भाशय के आकार को ठीक किया जा सकता है, जैसे सोनोग्राफी, अल्ट्रासाउंड, एम.आर.आई., लैप्रौस्कोपी, हिस्टेरॉसाल्पिंगोग्राफी, हिस्टेरोस्कोपी व मेट्रोप्लास्टी| किन्तु चुनौती यह है कि पन्ना जैसे छोटे शहरों में ये सभी सुविधाएं नही होती हैं। प्राइवेट संस्थानो में अगर कुछ सुविधाएं हों भी तो जांच महंगी होती है या कई बार इलाज के लिऐ किसी दूसरे शहर भी जाना पड़ता है। अगर ग्रामीण क्षेत्रों की बात की जाऐ तो दिक्कतें और बढ़ जाती हैं| जानकारी के आभाव में इस असमानता का पूरा दोष महिलाओं को दे दिया जाता है। ऐसा ही कुछ रानी बहु के साथ हुआ।

रानी बहु बताती है कि जैसे ही बच्चा गर्भ में बढ़ने लगता था, उसी समय से दर्द भी लगातार होता रहता। घर का काम फिर भी नहीं रुकता। कभी काम नही कर पाती, तो बाकी लोगों को लगता था कि वो बहाना कर रही है और घर में झगड़ा होता था| घर के साथ-साथ खेत का काम; और जंगल से महुआ, चिरौंजी, आंवला लाना कभी बंद नहीं हुआ।

दूसरे बच्चे के समय गांव के सिद्ध बाबा से बन्धेज भी करा दिया गया था। बन्धेज बुन्देलखण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में एक प्रथा है जिसके अंतर्गत धार्मिक मान्यताओं के आधार पर कुछ समय के लिए महिलाओं के घर से बाहर निकलने, किसी से मिलने आदि पर पाबंदी लगा दी जाती है| गर्भावस्था में बंधेज बच्चे के जन्म तक रखा जाता है। इस बार तो बाबा ने डाॅक्टर के यहाँ जाने तक को मना कर दिया था।


रानी बहु ने बताया कि उन्हें हमेशा से माहवारी के समय पेट में दर्द होता था, दो दिन भी ठीक से खून नही आता और खून का रंग भी थोडा भूरा-भूरा सा रहता था। यह सब बोलने के लिए घर में कोई नहीं था – माँ बचपन मे ही गुज़र गई थी, बहनों की शादी हो गई थी और दादी ने यह सब बातें करने से साफ मना कर दिया था| इसे खराब मानते हैं।

इस बार जब वह गर्भआती हुई तो VHND के दिन रानी बहु को महिला रोग विशेषज्ञ को दिखाने की सलाह दी| सोनोग्राफी करने के बाद रिपोर्ट देखकर डॉक्टर ने बताया कि रानी बहु के गर्भाशय का आकार असमान्य है। जिसे Bicornuate uterus कहते हैं। ऐसा गर्भाशय दो भागो मे बंट जाता है, और बच्चा किसी एक ही भाग मे रहता है| गर्भ का समय बढ़ने के साथ गर्भाशय में बच्चे को बढ़ने के लिऐ पूरी जगह नही मिलती, जिसके कारण परेशानी होती है|

डॉक्टर ने बताया कि घबराने की ज़रूरत नही है, इस परिस्थति में कुछ सावधानियां बरतने की आवशकता है। कोई भी भारी वजन का काम न करें, ज़्यादा पैदल न चलें, और शौच के समय पेट पर दबाव न बनाएं। सोते समय पैरों के नीचे तकिया लगाएं, पूरा आराम करें, व दवाईयों में किसी प्रकार की लापरवाही न होने दें। प्रसव के समय ऑप्रेशन करना पड़ सकता है। यह भी संभव है की ये बच्चा भी नौ महीने से पहले जन्म ले| सारे सुझाव और दवाई लेकर रानी बहु और उनके पति गांव चले गए।

यह सभी बातें परिवार को समझायी गयीं| दवाइयों पर होने वाले खर्चे के लिए रानी बहु के पति, नवीन* को संस्था एवं  स्वयं सहायता समूह से पैसे उधार लेने पड़े। सातवें महीने के अन्त में अस्पताल में बच्चे का जन्म हुआ| जन्म के समय बच्चे का वजन 1.8 किलो था। उसे एस.एन.सी.यू. (Special Newborn Care Unit) में भर्ती किया गया| नवीन ने अकेले ही अस्पताल में माँ और बच्चे की दिन-रात देखभाल की, जबकी इन गांवों में ऐसा होता नही है कि कोई पुरूष बच्चे और माँ की देखभाल करें। 14 दिन बाद जब अस्पताल से छुट्टी हुई, तो डॉक्टर ने माता-पिता को बता दिया था कि बच्चा अभी भी कमज़ोर है, उसका ख्याल रखना होगा|

पहले फॉलोअप में बच्चे का वजन 2 किलो हो गया था, अच्छी देखभाल की वजह से वह ठीक था। नवीन बताते हैं कि दवाई के लिऐ उन्होंने प्रति माह 3% के ब्याज पर पैसा लिया है। अब समय पर पैसे लौटाने की चिंता है, जो खेती और मजदूरी करके चुकाना होगा। नवीन ने कहा, वो सब तो हो जाएगा| इससे पहले गर्भाशय की असमानता के बारे में कुछ पता ही नही था। अगर डॉक्टर के पास नहीं जाते तो मैं इस बच्चे को भी नही देख पाता|


*बदला हुआ नाम
 परिवार की अनुमति लेकर ही फोटो लिया है एवं उनके बारे में लिखा है।

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3 Comments

  1. Rakesh Kumar Pandey

    बहुत ही बढ़िया कहानी, लेख व् जानकारी

    Reply
    • Neeta Yadav

      Thanks rakesh ji

      Reply

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