कुछ हुआ तो ज़रूर है, पर वह कहीं गुम सा है
होश संभल तो रहा है, पर कहीं गुम सा है|
काबीलियत विलुप्त तो नहीं है, पर गुम सी है
मैं चल तो रही हूँ, पर गुम सी हूँ ||
कुछ यूँ शुरू हुआ था एक सफ़र, एक लम्हा जिसके आज नौ महीने गुज़र जाने का एहसास कुछ मायूस सा कर देता है| शायद इस सफ़र को मैं संजोये रखना चाहती हूँ, शायद इस सफ़र को मैं ख़त्म होते नहीं देखना चाहती|
चंद महीने पहले, पंख फड़फड़ाती पिंजरे में बंद एक चिड़िया के समान उड़ान भरने के लिए मेरे नेत्र राह खोज रहे थे| काम तो जारी था, पर हर रोज़ एक सा दिन कुछ मायूस कर देता था| रूह की झन्नाहट और कदमों की थरथराहट के लिए कुछ करना चाहती थी मैं| हर शाम ढलते ये ख्याल मन को झंझोड़ कर रख देता था कि “एक महत्त्व भरी ज़िन्दगी कैसी दिखती होगी?”, क्योंकि जो मैं जी रही थी उसका अस्तित्व डगमगाने सा लगा था| खुद को एक मशीन की तरह समझने लगी थी जो हर रोज़ एक सा ही काम करती और फिर बंद हो जाती| कुछ था जो अधूरा था, कुछ था जिसकी मुझे तलाश थी, पर वो धुंधला सा दिखाई पड़ता था|
आंख पड़ी एक रोज़, एक भिन्न सी दुनिया में
कंप्यूटर पर वह गाँव, वह खेत और कुछ मुस्कुराते चेहरे|
एक महत्व भरे जीवन की झलक सी आँखों को पिरो गई
मैंने दरवाज़े खटखटाए और एक नयी ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गयी||
एक रोज़ उसी दिनचर्या में ढलते-ढलते मेरे आँखों के सामने एक नयी दुनिया से जुड़ने का मौका आया| नाम था- इंडिया फेलो| वह तस्वीरें देख़ मानो उन में बस कर एहसास लेने को जी किया| क्षण भर के लिए मैं अपने कंप्यूटर की उस स्क्रीन में एक सम्पूर्ण जहान का अनुभव ले रही थी, जहाँ दुनिया बदल देने के प्रयास में कुछ युवा एक सफ़र की शुरुआत करने को चले थे|
तीन साल, विश्व में विकास के लिए पैसा देने वाली संस्थाओं के बारे में जांच करने और लिखने के बाद मुझे इस बात का अंदाज़ा तो हो गया था कि बदलाव विकास का एक महत्व्यपूर्ण अंग है और यह केवल जज़्बे से ही हासिल हो सकता है|हर रोज़ विश्व में उपस्तिथ व उत्पन्न होने वाली शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, महिला सशक्तिकरण व पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं के बारे में पढ़ती और सोचती कि इन सभी से जूझ रहे लोगों की तकलीफ का क्या अंदाज़ा लगा पाना भी मेरे लिए संभव है| यह एक मौका था उन परिस्तिथियों को निकट से देखने का और उनमें रह रहे लोगों की ज़िन्दगी बेहतर करने की कोशिश में अपने जीवन के अस्तित्व को एक नयी राह देने का|
जब कदम बढ़े एक नयी दुनिया कि ओर
मानो ख़ूबसूरत टुकड़ा, थाली में परोसा गया|
पनप गया एक नया परिवार, वे नए लोग और उम्मीद भरे चेहरे,
दुनिया बदलने कि चाह और आँखों में सपने सुनहरे||
उस जीवन की शुरुआत महत्त्वाकांक्षी निगाहों के साथ हुई|अचानक मेरी ज़िन्दगी में एक साथ इतने सारे लोग जुड़ गए थे|वो मार्गदर्शन और खुल कर अपनी बात को रखने के प्रयास ने चंद दिन तो कुछ अजीब एहसास से वाकिफ़ कराया पर जैसे-जैसे वक़्त बीतता गया, मैंने खुद को एक ऐसी दुनिया में पाया जहाँ आप अपने काम, मेहनत और दुनिया की बेहतर समझ बनाने के लिए कोई समझौता नही कर सकते| अभी चलना शुरू ही किया था कि उस राह में चलकर एक उच्च मुकाम हासिल करने वाले कुछ लोगों से मुलाकात हुई और धीरे-धीरे मुझे अपने जीवन को बदलने के लिए उठाए गए कदमों का अस्तित्व समझ आने लगा| मानो लहू में एक उबाल सा आ गया हो कि इस जीवन में कई और जीवन बेहतर बनाने के बाद ही दम लूंगी|
मीलों दूर एक नयी दुनिया में घर बसाने निकल पड़ी थी मैं,
बेख़ौफ़, बेपरवाह, किनारे से अंजान|
एक कश्ती में सवार साहिल की तरह अपनी राह खोजते,
फ़र्क था तो उस इल्म का, जिसकी सीख अभी बाकी थी||
ट्रेनिंग के बाद मैं खुद को तैयार कर रही थी कि कैसे अपने काम को अपनी पहचान बनाऊँ और खुद की इस ख़ोज में अपने कदमों को और आगे बढ़ाऊं| इस बात से बेपरवाह थी कि अंजाम क्या होगा, अंजान थी कि क्या मैं कुछ भी बदलाव ला पाऊँगी पर एक आत्मविश्वास संजोए हुई थी कि अपनी राह खुद बना लूंगी|
पांव पड़े उस ज़मीन पर,
जहाँ जीवन तो था, पर दिशा भटकी हुई|
मानो पुकार रही थी वो सरजमीं
सवाल करती मेरे होने पर, ह्रदय को छूती हुई||
जब मैंने करीब से उन ज़रुरतमंदो के जीवन के पहलुओं को जाना तो खुद की ज़िन्दगी एक वरदान सी लगी| साथ ही अंतर्मन में एक पीड़ा हुई जो आज तक मुझे झंझोरे हुए है| मै बार-बार खुद से ये सवाल करती हूँ कि क्या इस सफ़र में इतना दे पाउंगी कि किसी की भी परेशानी को जड़ से ख़त्म कर इस समाज को उसके रहने के काबिल बना दूँ| मै हर दिन कुछ नया सीखती, सिखाती हूँ और हर रोज़ एक नए ख़ुद से वाकिफ़ होती हूँ| आज ये एहसास होता है की मैं ख़ुद के कुछ और करीब हो गयी हूँ, और साथ ही उस धुंधले अस्तित्व के बिन्दुओं से जुड़ रही हूँ| यहाँ बहुत प्यार है और एक भरोसा है जो मुझे हर रोज़ और बेहतर करने के लिए प्रेरित करता है| चंद महीने और, फिर शायद यह सफ़र ख़त्म हो जाएगा और मै जानती हूँ कि मैं फिर कुछ कहूँगी पर शायद इस बार आवाज़ कुछ यूँ होगी:
एक अस्तित्व है मेरा और एक वजूद भी,
ना थामूँ कदम इस राह पर, बेपरवाह चलते-चलते|
जो खुद चुनी है और खुद बनायीं है मैंने,
पल-पल पनपते, धीमे -धीमे सुलगते||
Such beautiful poetry ♥️
Thank you Simran! 🙂
बहुत खूबसूरत कविता।
जिस तरह आपने अपने विचार इस ब्लॉग में पिरोए है, बहुत ही शानदार।
शुक्रिया उमंग जी! ;p