यह कहानी राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित एक गांव में बावरी बस्ती समुदाय में रहने वाली लड़की सोनी बावरी की है। यह अभी नवरंग प्रोग्राम में शिक्षा साथी के रूप में कार्य कर रही है। नवरंग प्रोग्राम ग्रामीण शिक्षा केंद्र द्वारा संचालित किया जा रहा एक प्रोग्राम है जिसमें चयन की गई विमुक्त एवं घुमन्तु जनजातियों (de-notified tribes) के समुदायों के साथ शिक्षा, रोजगार, दस्तावेज एवं कानूनी सहायता को लेकर कार्य किया जा रहा है। जिससे की वह भी अन्य समाजों की तरह मुख्यधारा से जुड़ सके।
बावरी समुदाय में 12 से 15 वर्ष की लड़कियों की शादी कर दी जाती है। इस वर्ष सोनी के घर वाले उसकी भी शादी कर रहे थे। उसकी उम्र अभी लगभग 14-15 वर्ष है। सोनी ने मुझे इस बारे में पहले ही अवगत करवा दिया था। मैंने सोनी से पूछा कि आपकी इच्छा क्या है तो उसने बोला कि मैं अभी पढ़ना चाहती हूँ, शादी नहीं करना चाहती। मैंने उसे अपने घर वालों से बात करने के लिए कहा कि एक बार आराम से बात हो जाए फिर देखते हैं कि वो क्या कहते हैं।
सोनी ने उसी दिन घर जाकर अपने भाइयों से बात की और बताया कि वह अभी शादी नहीं करना चाहती। उसके भाइयों ने कहा कि शादी तय हो चुकी है, तो लड़के वालों से बात करनी पड़ेगी। उन्हें चिंता थी कि क्या पता वे क्या कहेंगे, मानेंगे भी या नहीं। घर में यह भी बात हुई कि रिश्तेदार क्या कहेंगे। भाइयों का बातचीत करने का तरीका एकदम नरम और शांतिपूर्ण था। उन्हें इस बात को लेकर नाराज़गी नहीं थी, न ही उन्होंने गुस्सा जाहिर किया बल्कि संयम रखते हुए लड़के वालों से शादी के लिए मना कर दिया। उन्हें भी इस बात का ज़्यादा बुरा नहीं लगा, बस उन्होंने इतना ही कहा कि हम कोई दूसरा रिश्ता ढूंढ लेंगे। मुझे सोनी के भाइयों के नज़रिये और जिस तरह वे इस पूरी स्थिति से निपटे, उसमें एक बदलाव की झलक नज़र आई।
जब यह खबर सोनी को पता चली तो वह बहुत खुश हुई और उसने सबसे पहले अपनी शादी कैंसिल होने की बात मुझे बताई। ऐसा लगा मानो उसकी मनोकामना पूर्ण हो गई हो।
मैं जब कुछ साल पहले सोनी से मिला था तब उसकी स्थिति बिलकुल अलग थी। वह न तो ज़्यादा बोलती थी और न ही किसी के साथ घुल-मिल पाती थी। वह कचरा बीनने का काम करती थी। पढ़ने में ध्यान नहीं था। अब वह पढ़ने लगी है। पहले अकेले घर से बाहर जाने में डरती थी परन्तु अब आस-पास की जगहों की यात्रा अकेले करने लगी है। अब कुछ निर्णय खुद से लेने लगी है।
मुझे ऐसा लगता है कि संस्था द्वारा विगत वर्षों से किये जा रहे अथक प्रयास के परिणाम अब धीरे-धीरे नज़र आने लगे हैं। लड़कियाँ जो शादी जैसे बड़े मामले तो क्या, छोटे-छोटे मामलों में भी अपनी राय देने से डरती थी या जिन बातों से उन्हें दूर रखा जाता था, अब वे उन सब मामलों में भी अपनी बात खुलकर रखने लगी हैं। वे अपने हक एवं भविष्य को लेकर सोचने लगी हैं।
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