From left … Amma, Aditi, Manoj ji, Praveen ji and Golden
हम सभी अपने जीवन में अनेक प्रकार के लोगों से मिलते हैँ और कुछ लोग हमें प्रभावित भी करते हैँ। वैसे ही लोग में से एक प्रवीण जी के बड़े भैया मनोज जी हैं और भैया के साथ जो बातचित हुई उसे आप सभी के साथ साझा कर रही हूँ। प्रवीन जी, बिहार के जमुई जिले में लखनपुर गाव में रहने वाले एक युवा है जो इ-सक्षम में प्रशिक्षण के लिए आते है| हमेशा से सेशन में उनके तर्क, भागीदारी, उनके सीखने की उत्सुकता और उनकी लगन देख उनसे प्रेरित हुई हूँ और इसके पीछे का कारण उनके भैया से मिलके पता चला।
आज पहली बार लखनपुर आने का मौका मिला। प्रवीन जी ने यहाँ अपना एक स्कुल खोला है। हम प्रवीण जी और उनके भैया बैठे और हमने उनसे पूछा कि उन्हें यह स्कूल खोलने की प्रेरणा कहा से मिली? ऐसा विचार पहली बार कब मन में आया की स्कूल खोलना हैँ?
प्रवीण जी ने बताया की जब वह कक्षा 9 में थे तभी से बच्चों को पढ़ा रहे हैँ और उन्हें तब महसूस हुआ कि शिक्षा की अवस्था कुछ ठीक नहीं हैँ। बड़े बच्चे (कक्षा 9) जिन्हे पढ़ाते थे, उनका स्तर कक्षा के अनुसार नहीं था, तो उन्हें तब से लगा कि कुछ सुधार की ज़रूरत हैँ। यह जब वो बता रहे थे, तब हमें लगा अधिकतर लोग यहां बाहर जा कर जॉब करना चाहते हैँ फिर इनका मन नहीं हुआ, तो हमने पूछा कि आप बाहर जा कर जॉब करने का विचार नहीं?
उनके स्कूल में और जो साथ पढ़ाने जाते हैँ उनको भी जीविका में सहारा मिलता हैं और वहां बच्चों को भी पढने का मौका मिलता हैं। उनकी सोच हमें बहुत प्रेरित की। प्रवीण जी अपना अनुभव साझा कर रहे थे कि बगल में बैठे भैया ने कहा “हम बताते हैं आपको” कुछ इस तरह भैया को सुनने और उनसे सीखने का मौका मिला। मनोज जी, (प्रवीण जी के भैया) ने अपने बचपन के दिन के बारे में बताया और शुरुआत की। उन दिनों सभी लोग एक सयुक्त परिवार में रहते थे, तब उनके पिताजी बाहर काम करते थे, घर के बहुत काम और साथ ही ज़िम्मेदारी होने के कारण मनोज जी ने अपनी पढ़ाई बहुत कठनाई से की हैं। वो पुराने दिनों को याद करके बोले की हम दो मिनट में सत्तू पीके बस जल्दी स्कूल को भागते थे। एक दिन उनको अपने दो भाइयो को खेत में काम करते देख ये विचार आया की अपने भाइयों की गुडवत्ता शिक्षा सुनिक्षित करने के लिए उन्हें पढ़ाई के लिए वक़्त निकलना होगा। अगर वो बाकि काम में व्यस्त रह जायेंगे तो पढने के लिए कम समय मिलेगा और उन्होंने कहा “मैंने संकल्प लिया की अपने भाई-बहन को पढ़ाना हैं।“ इस सोच के साथ खुद अपने भाई बहन की पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया। उनके एक भाई जमुई CRPF में नौकरी करते है, प्रवीण जी स्कूल में पढ़ा है रहे हैं। उन्होंने अपनी बहन को भी पढ़ाया और प्रयास किया की वो नौकरी कर सके लेकिन हालत कुछ ऐसे थे की वह नौकरी नहीं कर पाई।
हम सभी बात कर रहे थे की उनका बेटा आया, हमने पूछा what is your name? उसे परेशान करने फिर पूछा where is your father? What’s his name? उसने मनोज जी को देख हस्ते हुए कहा my name is Ayush and my father’s name is Manoj … फिर मैंने उत्सुकता से पूछा what is your hobby? what do you want to become? आयुष ने कहा “फ़ौजी बनना हैं”। कक्षा एक के बच्चे से यह सुन कर हम बड़े आश्चर्यचकित हुए और पूछे फ़ौजी कौन होता हैं? पहली बार कब सुना फ़ौजी के बारे मे? फ़ौजी बनने का क्यों मन हैं? आयुष ने कहा बुक में पढ़ा पहली बार और “देश की सेवा करना हैं” इसलिए फ़ौजी बनना हैं। हम जब बाते कर रहे थे, तो भैया मुस्कुरा रहे थे, और हस्ते हुए उन्होंने कहा किताब हमारी गुरु हैं, आज इसने जब कहा की किताब में पढ़ा हैं अच्छा लगा, हमने जो कुछ हैं किताबों से प्राप्त किया हैं । यह बताते हुए फिर पुराने दिन याद करते हुए बताया की “कॉलेज इज नॉलेज, जब हम जाते थे कॉलेज तभी पता चल गया अंग्रेजी सीखना ज़रूरी हैं। सारा पेपर का काम अंग्रेजी में होता हैं, आजकल कोई गणित विज्ञानं गलत कर दे लेकिन दो शब्द अंग्रेजी में बोल दे समाज अलग तरीके से देखता हैं। हम इस बात से अवगत हो गये थे की अंग्रेज़ी सीखना हैं, हमारी हिंदी और संस्कृत अच्छी थी जो 15 रूपए की प्रदान की बुक लिए थे उसे दे कर अंग्रेज़ी की ले लिए और पढने लगे।” हमेशा से मनोज जी एक मेहनती व्यक्ति रहे हैं, हर कदम उन्होंने अपने आप को चैलेंज किया हैं और सीखने की जिज्ञासा से सीखते रहे। स्कूल खोल बच्चों को शिक्षित करना उनकी समाज में बदलाव लाने का एक उदहारण हैं। वे बच्चों को उन्हें समझते हुए पढ़ाने में विशवास रखते हैं।
एक बार एक 18 साल का बच्चा पढ़ना चाहता था, उन्होंने कहा आओ स्लेट चौक लेके, कुछ तीन दिन बच्चा सभी के साथ बैठा। उस बच्चे को अक्षर भी नहीं लिखना आता था, उन्होंने यह जानते हुए की बाकी बच्चों के साथ पढ़ाई नहीं होंगी उसे अलग पढ़ाना शुरू किया और बोले बच्चे की जीवनी समझना बहुत ज़रूरी हैं। अपने कक्षा में बच्चों को स्तर के अनुसार, उन्हें बच्चे के तरीके से आगे के विषय पढ़ाते हैं। इनका विचार हैं की एक बच्चे के विकास में धैर्य के साथ आगे बढ़ना चाइए। समय पर पढ़ाई ना मिलने के कारण ये एक चुनौती रही हैं लेकिन फिर भी आज तक वे शिक्षित करने में लगे हैं। ये उनका मानना हैं कि जीविका के लिए टीचर को वक़्त से पैसे देना बहुत ज़रूरी है। तभी हमने उनसे हमारे मेंटर राहुल नैनवाल जी की याद आयी एक बात कही “आप वो नहीं दे सकते जो आपके पास नहीं है।”
समाज में किसी भी माध्यम से सेवा देना के किए और कुछ करने के लिए सक्षम होना ज़रूरी हैं, और इस बात में हम दोनों हस पड़े, फिर कुछ बाते हुइ और मनोज जी ने कहा सरस्वती पूजा के दिन वे बच्चों के साथ पूजा कर उन्हें जाने देंगे की बच्चे छुट्टी में कुछ मज़े कर सके, उनका यह मानना हैं की पढ़ाई के साथ खेल खुद भी ज़रूरी हैं। आज के दिन हमे ऐसे विचार के व्यक्ति कम मिलते हैं जो बच्चे के विकास के लिए इतनी गहराई से सोचते हैं। फिर आगे हमने उनसे जब पूछा की यहां लोग क्या काम करते है जीविका के लिए? और बच्चे क्या धान के समय पढने आते थे? क्युकी पिछले कुछ समय जब धन काटने का वक़्त था बहुत से बच्चे घर के काम और खेत के काम में व्यस्त होने के कारण स्कूल नहीं जा पाते थे। तब प्रवीण जी ने बताया की एक टोला के लोग जागरूक हैं शिक्षित हैं वो बच्चों से उन दिनों काम नहीं करवाते और उसी गाँव में एक टोला के बच्चे धान के समय काम करते हैं। इस बात में भैया ने कहा “वे लोग शिक्षित नहीं विकसित हैं।”
मनोज जी को सीखने-सीखाने और किताब पढने में विश्वास रखते है … प्रवीण जी की अम्मा, भाभी और घर परिवार के बच्चों से मिलकर बहूत कुछ सीखने मिला और एक सकारात्मक ऊर्जा महसूस हुइ। आगे मनोज जी अपने स्कूल में बच्चों को कंप्यूटर सीखाना चाहते हैं, अभी किताब से पढ़ा रहे हैं लेकिन उनका यह मानना हैं की प्रैक्टिकल प्रक्षिशण ज़रूरी हैं। कुछ ऐसे अनुभव, कुछ ऐसे लोग कुछ करने के लिए एक प्रेरणा है, कुछ ऐसे लोग जो समाज में रहके समाज के साथ अपने गाव में बदलाव ला रहे है वह आप से, हम से और मिडिया से कोसो दूर हैं| जब हमने पूछा “आपको यह करने की प्रेरणा कहा से मिलती हैं ?” उनके चेहरे में संतोष और बचपन के संघर्ष की एक झलक ने कहा “हम किसी से कोई उम्मीद नहीं करते, बस सब आगे बढ़ते रहे।”
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