‘उम्मीद’ एक ऐसा शब्द है जो मुझे ले चलता है वर्ष 2009 की तरफ, जब मैं 12 वर्ष का था| उन दिनों में मेरी पढ़ाई गोरखपुर के एक सरकारी विद्यालय में हो रही थी| मेरा मन पढ़ाई से ऊब चुका था और ज़िन्दगी में आगे के लिए कोई लक्ष्य भी नहीं सोचा था| उसी समय मेरी माँ ने अपने एक छात्र अमित को मुझे गणित पढ़ाने को कहा| अमित भैया ने ज़िन्दगी में पहली बार शायद ढंग से पढ़ना सिखाया और शायद यह एहसास भी दिलाया कि मैं भी कुछ बेहतर कर सकता हूँ| उनके व कुछ और लोगों के प्रयास ने ही मेरी ज़िन्दगी में ‘उम्मीद’ की शुरुआत दी| ऐसी उम्मीद के लिए आपको भी प्रेरणा लेकर परिश्रम करना होगा और एक मार्गदर्शक (जैसे आपके अध्यापक) का सहारा लेना होगा जो आपको उचित मार्गदर्शन दे|
आज मेरे दोस्त जब भी अपने बचपन और विद्यालय के समय की शैतानियों का जिक्र करते हैं तो मेरे पास कहने को कुछ नहीं होता है| बचपन और विद्यालय का समय ज़िन्दगी में सिर्फ एक बार ही आता है| पढ़ाई के अलावा हर तरह के खेल, पहेलियाँ और वो सभी रोचक चीज़ें जिससे आपके अन्दर एक संतुष्टि का भाव आता है, आपको अवश्य करना चाहिये वरना मेरी तरह आप भी मन मसोस कर रह जायेंगे| पर ध्यान रहे कि आप अपने समय का सदुपयोग करें और पढाई को भी बेहतर तरीके से करें|
मेरे हिसाब से विद्यालय में अच्छे अंक लाना ही सफलता नहीं बल्कि अपने व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास हेतु खुली सोच विकसित करना भी सफलता है| इस तरह के विकास के लिए आपको अपने पूर्वाग्रह छोड़ने होंगे जैसे ऐसी सोच जिसमें जातिगत, धार्मिक, लैंगिक भेदभाव की बात हो|
मैंने कई बार सुना है कि लड़कियों के लिए अलग नियम और लड़कों के लिए अलग नियम होने चाहिये; छोटी जाति के साथ बर्तन में खाना नहीं खा सकते| यह ठीक है कि यह नियम समाज के हैं और उनको तोड़ना आपके अकेले की नादानी हो सकती है पर यह भी ध्यान रहे आप भविष्य के समाज की रचना करेंगे| अगर आप ये सभी पूर्वाग्रह छोड़कर नये नये विचारों को बढ़ावा देंगे और उसमें हिस्सा लेंगे तो आपके व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास और समाज में बराबरी के दिशा में यह एक अच्छा कदम होगा| भले आज आप समाज के नियम को मान लें पर जब आपको मौका मिले तो आपके ज़िन्दगी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली औरतों को पुरुषों के बराबर समान दर्जा दीजियेगा, किसी के साथ जातिगत भेदभाव मत रखियेगा|
मुझे ज़िन्दगी में अलग-अलग शहरों, देशों में रहने का मौका मिला है जिसके वजह से शायद मेरी सोच का विकास हुआ है, आपको भी कोशिश करनी चाहिये कि अलग अलग जगह जाएँ, देखें और वहां की सोच को समझे व परखें| विश्व के सबसे पुराने आधुनिक लोकतंत्रो में से एक संयुक्त राज्य अमेरिका और अपने भारत का वजूद आज भी इसीलिए बरकरार है क्योंकि इन दोनों देशों ने अलग-अलग विचारों को सहिष्णुता के साथ जगह दी है| जो भी समाज के लोग अपने आपको बदलने में असफल रहे हैं वे ख़त्म हो गये हैं| मेसापोटामिया की सभ्यता का पतन, जातिगत भेदभाव में फंसे भारतीय राज्यों का विदेशी ताकतों द्वारा हराया जाना; इसका ज्वलंत उदाहरण है|
अगर हम भी मेहनत से कार्य करें तो हम भी आगे बढ़ सकते हैं| साथ ही में यह याद रखें कि सफलता मिलने में समय, धैर्य और संघर्ष की ज़रुरत होती है| अतः घबराएं नहीं और शंका की स्थिति में किसी भी अध्यापक का मार्गदर्शन लें, उन पर अपना भरोसा जताते हुए अपनी समस्या खुल कर समझायें| हो सकता है कि प्रथम प्रयास में आप चूक जाएँ पर अवलोकन की सहायता से अगली बार और मेहनत से अपने लक्ष्य के लिए प्रयास करें| उदाहरण के लिए 12वीं से उत्तीर्ण स्वाति फार्मेसी का परीक्षा फिर से देगी| मेरे हिसाब से सफलता के लिए तीन चीज़ बहत महत्वपूर्ण होती है:
1) मेहनत, 2) अवलोकन और 3) संघर्ष करने का इरादा|
अपनी मेहनत में कमी और अच्छाई को समझने हेतु अवलोकन करने के लिए किसी अध्यापक/बुजुर्ग/मार्गदर्शक की सहायता लेनी चाहिये| जब आप उक्त तीन चीज़ों को बार बार दोहराएंगे तो अपने आप सफलता आपके कदम चूमेगी|
मेरा पिछ्ला एक वर्ष आप बच्चों के साथ बेहद अच्छा गुज़रा| हंसी मजाक के माहौल के बीच आपने मेरी बात मानी भी और समझी भी| खासकर वर्तमान कक्षा 7 और 9 के बीच जिनको पढ़ाने में मुझे काफी कुछ सीखने और सिखाने को मिला| मैं जानता हूँ कि मेरा पढ़ाया आपको उतना कुछ समझ नहीं आया है पर विषय के इतर जो मैंने आपसे साझा किया है वह एक अनुभव से अर्जित ज्ञान है और मुझे यह उम्मीद व पूर्ण विश्वास है कि आप उसे अवश्य ध्यान में रखेंगे| अंत में मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि आपके अन्दर लोगों का सम्मान करना, मेहनत करना और दूसरों की समय पर मदद करने का जज़्बा होगा| ज़रूर चाहूंगा कि कुछ साल पश्चात हम सब फिर से उसी माहौल में मिले| तब तक के लिए मेरा आप लोगो को बहुत सारा प्यार और धन्यवाद!
*** This Article was written by the author as a farewell message to students of Swarachna School run by Milaan Foundation in the July edition of the school’s newsletter (of which the author was founding editor as well)
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