भोपा समुदाय
भोपा समुदाय राजस्थान भारत में लोक देवताओं का गायन करने वाला एक समुदाय है। यह मुख्य रूप से राजस्थान में ही है। भोपा शब्द पुरुषों के लिए प्रयोग करते हैं तथा भोपा स्त्रियों के लिए प्रयोग किया जाता है। भोपा राजस्थान में पाबूजी की फड़ और देवनारायण की फड़ में चित्रों को देखकर गायन करते हैं। ये लोग मंदिरों में भी गायन करते हैं।
कुछ समय पूर्व तक यही कार्य इनकी आजीविका का प्रमुख रोजगार था। परन्तु अब धीरे-धीरे इनका यह पारम्परिक रोजगार समाप्त होता जा रहा है। वर्तमान में सवाई माधोपुर के खंडार ब्लॉक में भोपा समुदाय के लगभग 50 परिवार निवास करते हैं। ये लोग लगभग 40 वर्षों से रायखेडा गांव में निवास करते हैं। लेकिन बस्ती लोग खत्म होते चले जा रहे है| उसके बाद इन लोगों ने जो रावण हत्था से पाबूजी की फड़ पड़ी जाती थी उसका इस्तेमाल भिक्षावृत्ति में करना शुरू किया हैं।
ये लोग गाँव-गांव में जाते हैं और उनका मनोरंजन करते हुए आटा मांगते हैं। आज की युवा पीढ़ी ने इस व्यवसाय को बदलते हुए भैंस पाड़ा खरीदने का व्यवसाय शुरू कर दिया है। रायखेड़ा में आधी से ज्यादा जनसंख्या रोजगार के लिए अन्य दुसरे कार्य करने लग गयी है। इनके बच्चे पहले गांव में सरकारी विद्यालय में पढ़ा करते थे| परन्तु वह विद्यालय बड़ी स्कूल में मर्ज हो गए| ग्रामीण शिक्षा केंद्र (GSK) के द्वारा सन 2009 में उदय सामुदायिक पाठशाला खोली गई जिसमे भोपा समुदाय के लगभग 50 बच्चे शिक्षण कार्य कर रहे हैं| और इनमें से 5 से 7 बच्चों का अन्य खेलों में स्टेट लेवल पर सिलेक्शन भी हुआ है।
इस समुदाय मैं आज भी लड़कियों को आगे बढ़ाने की प्रवृत्ति कम दिखाई देती है। इनके अंदर पौराणिक प्रांतियां फैली हुई है कि अगर लड़कियां ज्यादा पड़ेगी तो वे घर छोड़कर भाग जाएगी। इस बात को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण शिक्षा केंद्र के द्वारा बालिका शिक्षा को आगे बढाया।
लेकिन वर्तमान में मंजू जैसी लड़कियाँ इस भोपा बस्ती से पहली बार कोई अपर प्राइमरी स्कूल में पढ़ने गई है| बस्ती के लोग अब GSK के प्रत्येक गतिविधियों में सहयोग कर रहे हैं। संस्था से जुड़े शिक्षक व कार्यकर्ता के द्वारा उनके जो पहचान संबंधी दस्तावेज है उनको बनाने का कार्य भी चल रहा है|भोपा समुदाय के रावण हत्था से बजाते हुए जो गायन वाली प्रवृत्ति है उसको चलाने का प्रयास कर रहे हैं।
इस समुदाय में से अभी की युवा पीढ़ी खेलों में प्रतिभा दिखा रही है। वह चित्र बनाने पहले यहां के कुछ होटलों में जाकर पाबूजी की फड़ गाया करते थे। आज वह पाबूजी की फड़ ना गाकर सारंगी पर फिल्मी गानो व भजनों के माध्यम से लोगों का मनोरंजन करते हुए भिक्षावृत्ति का कार्य कर रहे हैं। उनको अन्य समाज में आत्मसम्मान दिलाने के लिए आज GSK उनके दस्तावेजों को पूरा करने का कार्य कर रही है। हम चाहते हैं की इन लोगों को सरकारी योजनाओं का पूर्ण रूप से फायदा मिल सके। प्रत्येक बच्चा शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़े जिसके लिए ग्रामीण शिक्षा केंद्र द्वारा हर तरह के प्रयास किये जा रहे हैं।
गाड़िया लोहार समुदाय
गाड़िया लोहार 16 वी शताब्दी के आसपास चित्तौड़गढ़ के राजा महाराणा प्रताप की सेना में लोहार का काम करते थे। राजस्थान की घुमंतू जनजाति गाड़िया लोहार को उनके अनोखे और कठोर प्रण के लिए जाना जाता है। इस समुदाय का संबंध कभी राजस्थान की शाही भूमि से था।
गाड़िया लोहार समुदाय के सवाई माधोपुर जिले में लगभग 300 परिवार निवास करते हैं जिसमें अभी वर्तमान में ग्रामीण शिक्षा समिति सवाई माधोपुर लगभग 100 परिवारों के साथ काम कर रही है। संस्था प्रमुख रूप से इनके साथ बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण आदि पर कार्य कर रही है।
गड़िया लोहार समुदाय का व्यवसाय लोहे का ओजार बनाना और लोगे के बर्तन बनाकर बेचना इत्यादि है। गाड़िया लोहार समुदाय घुमन्तु समुदाय के अंतर्गत आता है। इस समुदाय के लोग शिक्षा से काफी वंचित है जिसका प्रमुख कारण है इस समुदाय के लोगों का पलायन करते रहना। ये लोग स्थाई रूप से एक स्थान पर निवास नहीं कर पाते हैं। रोजगार की तलाश में एक स्थान से दुसरे स्थान पर पलायन करते रथे हैं। जहाँ इन्हें रोजगार मिल जाता है वही पर रुक जाते हैं।
संपत्ति के नाम पर इनके पास कुछ बर्तन, बेलगाडी, कुछ जानवर, अस्थाई झोपडी की सामग्री आदि होती है। ग्रामीण शिक्षा केंद्र द्वारा सन 2019 से इनके साथ कार्य करना शुरू किया। कार्य की शुरुआत और रूपरेखा बनाते समय देखा गया कि इस समुदाय के बच्चे शिक्षा से काफी वंचित है। शिक्षा के आभाव के कारन ही ये लोग समाज की मुख्य धरा से पिछड़े हुए हैं। शिक्षा के अभाव के कारण ही इन लोगों को सरकारी योजनाओं को लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसलिए ग्रामीण शिक्षा केंद्र द्वारा इनके साथ प्रमुख रूप से शिक्षा पर काम करने की योजना बनाई गयी।
गाड़िया लोहार समुदाय के बच्चों को पढ़ने के लिए शिक्षण केंद्र चालू किया गया जिसमें लगभग अभी वर्तमान में 31 बच्चों के साथ में काम हो रहा हैं। इसके साथ ही समुदाय के लोगो और परिवारों के दस्तावेजीकरण पर भी कार्य कर रहे हैं। इनके रोजगार को लेकर भी कार्य किया जा रहा है। सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाए जाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
गड़िया लोहार समुदाय के लोगों का पलायन का मुख्य कारण रोजगार है। वर्तमान में मशीनीकरण का बढ़ावा होने के कारण इनका पारम्परिक रोजगार समाप्त होता जा रहा है। मजदूरी और रोजगार की तलाश में यह लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं हालांकि कुछ परिवार अब स्थाई रूप से भी बस में लग गए हैं। धीरे धीरे बच्चों में सुधार दिखाई देने लगा है। समुदाय में भी शिक्षा की अलख जगी है और बच्चे शिक्षा से जुड़ पा रहे हैं। लड़कियां भी अब पढ़ने लगी हैं। लड़कियों को हॉस्टल सुविधा भी मिल पा रही है।
संस्था द्वारा इनके साथ शिक्षण कार्य करने को लेकर सबसे बड़ी बात यह ध्यान में रखी गई कि गाड़िया लोहार समुदाय के बच्चों को पढ़ाने के लिए समुदाय में से ही व्यक्ति का चयन किया गया। संस्था को लगा कि इन समुदाय के बीच में रहने वाला व्यक्ति ही इनके साथ सही रूप से कार्य कर सकेगा और उसका प्रभाव ज्यादा रहेगा।
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