बस्तर के आदिवासी समाज के लिए महुआ का पेड़ विशेष महत्व रखता है। महुआ के मौसम में गाँव की गलियाँ खाली होती है। सभी परिवार के सदस्य व्यस्त रहते हैं। हिंदी में मोवरा, इंग्लिश में इंडियन बटर ट्री, संस्कृत में मधुका, गुड पुष्पा इत्यादि यह नाम है। महुआ को संस्कृत में ‘मधूक’ कहते हैं, जिसका अर्थ है मीठा।
महुआ का पेड़ प्रकृति का दिया हुआ बहुमूल्य पेड़ है। भारत में कुछ समाज इसे कल्पवृक्ष भी मानते है। यह पेड़ आदिवासियों के लिए आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक रूप से महत्व रखता है। इस मौसम में महुआ अच्छा हो इसके लिए लोग पेड़ की पुजा कर प्रकृति से गुहार/विनती करते है।
आर्थिक महत्व
गर्मी का मौसम शुरू होते ही और वसंत खत्म हो रहा होता है तब महुआ के फूल का गिरना शुरू हो जाता है। जब फूल थोड़ा-थोड़ा गिरना शुरू होता है तब गाँव के सभी बच्चे सूरज निकलने से पूर्व जंगलों में पेड़ के नीचे पहुँच जाते हैं। छोटी- छोटी टोकरियों में फूल को लेकर आना शुरू कर देते है। जब ज्यादा महुआ गिरना शुरू होता है तब परिवार के सभी सदस्य महुआ बीनने (इकट्ठा) करने में लग जाते हैं। बस्तर के आदिवासियों के लिए महुआ का मौसम विशेष महत्व रखता है। महुआ के पेड़ से फूल और फल दोनों ही वो वन्य उपज है। जो सिर्फ आर्थिक रूप से सहयता के साथ-साथ उनके खान-पान में भी उपयोग होता है।
धार्मिक महत्व
आदिवासी समाज में फरवरी से मई तक महुआ के पेड़ की अहम भूमिका है। इन महीनों में आदिवासियों को महुआ के पेड़ से फूल और टोरा (फल) प्राप्त होता है। महुआ का मौसम जैसे ही शुरू हो जाता है तो जनवरी के महीने में एक त्योहार आता है ‘इंडूम पंडुम‘। इंडूम पंडु का अर्थ है महुआ का त्यौहार। इस त्यौहार में आदिवासी समुदायों में महुआ के पेड़ की पूजा करते हैं ।
यह त्यौहार में गोंड, धुरवा, दोरली, हलबी आदि समुदाय शामिल होते हैं। इस त्यौहार की तिथि कोई एक दिन नहीं होता है। हर गाँव में अलग – अलग दिन त्यौहार तय होता है। त्यौहार का दिन पेद्दा (पटेल या गाँव का मुखिया) या वेड्डे (पुजारी) गाँव वालों के साथ मिलकर तय करते हैं। इस त्यौहार को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि देवी महुआ के मौसम में बहुत सारा फल और टोरा देगी।
लोगों का भरोसा है कि ‘इड़ू पंडुम’ नहीं मनाने से महुआ कम गिरता है। यह एक सामूहिक रूप से मनाया जाने वाला त्यौहार है। सभी अपने घर से अनाज एक जगह जमा करते हैं। गाँव के हर परिवार से अनाज, सब्जी, पैसा, महुआ दारू, लाँदा (चावल से बना हुआ शराब) आदि चंदा के रूप में जमा करते हैं। पूजा करने से पूर्व उस पेड़ को सजाते हैं। उसके बाद सभी लोग मिलकर महुआ के पेड़ की पूजा करते हैं। महुआ के पेड़ से आग्रह करते हैं की इस वर्ष महुआ और टोरा अच्छे से गिरे ताकि गाँव वालों की जरूरतों को पूरा कर पाएँ। पूजा करने के बाद सभी गाँव वाले मिलकर पेड़ के नीचे नाचते हैं। लोगों के मन में पेड़ के प्रति बहुत श्रद्धा है।
सामाजिक महत्व
आदिवासी समाज आपने आसपास मौजूद जीव-जंतुओ को अपने समाज का हिस्सा मानते हैं। सभी जीव-जंतुओं का सम्मान करते हैं। आदिवासियों को अपने दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए इन्ही जीव-जंतुओं की आवश्यकता होती है। इन जीव-जन्तु की आवश्यकता खान-पान, धार्मिक कार्य, दैनिक गतिविधियों (खेती,घर बनाने में आदि), वन्य उपज (आर्थिक पूर्ति) आदि में आदिवासी को सहायता मिलती है।
खान-पान
महुआ के फूल से यहाँ के आदिवासी विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर ग्रहण करते हैं।जिसमें महुआ फूल से महुआ शराब, लड्डू आदि ग्रहण करते हैं। जैसे – जैसे लोग ओर जानकारी एकत्र कर रहें हैं वैसे – वैसे महुआ से और भी नए उत्पादन बनाना सीख रहें हैंहरी, एक इंडिया फेलो है। इस लेख में उन्होंने बस्तर के आदिवासी समाज के लिए महुआ के पेड़ के महत्त्व के बारेमें बताया हैं। जैसे – महुआ का आचार, बिस्किट आदि। टोरा (फल) से तेल निकालते हैं जो पूड़ी सब्जियाँ तलने में इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा महुआ के पत्तों से डोप्पा (दोना) और पत्तल बनाकर भोजन करने में इस्तेमाल करते हैं। यहाँ के आदिवासी महुआ शराब पीने के लिए डोप्पा का बहुत इस्तेमाल करते हैं। महुआ शराब त्यौहारों में विशेष रूप से सेवन करने वाला मुख्य तरल पदार्थ है। यहाँ के आदिवासी महुआ से शराब बनाना बहूत अच्छे से जानते जानते हैं।
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