जैसा कि मैंने अपने पिछले ब्लॉग में कानपुर से भदोही आने का ज़िक्र किया था, यहाँ मेरा काम है ग्राम समृद्धि परियोजना के अंतर्गत चयनित गाँवो के विकास के लिए हो रहे कार्यों मे अपना सहयोग देना। यह परियोजना गाँव के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखकर सामाजिक व आर्थिक मुद्दों पर कार्य कर रही है जैसे आजीविका वर्धन, कृषि, शिक्षा, महिलाओं को आत्मनिर्भर एवं सशक्त बनाने के लिए स्वयं सहायता समूहों का गठन। मेरे फेलोशिप में आने के पहले तक SHG (Self help group जिसे स्वयं सहायता समूह भी कहा जाता है) मेरे लिए बिल्कुल नया विषय था, सच बताऊँ तो पहले मैंने SHG का नाम भी नहीं सुना था पर अब मैं ऐसे समूहों में महिलाओं के साथ काम कर रहा हूँ और उनके अनुभव को समझ रहा हूँ। कुछ महिलाओं के अनुभव तो आपको भी अचंभित कर देंगे परंतु वो मैं आपको आज नहीं, अपने अगले लेख में बताऊँगा। मेरा यह लेख स्वयं सहायता समूहों के लिए हाल ही में हुए एक प्रशिक्षण कार्यशाला में हुई चर्चाओं पर आधारित है|
प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन एवं उद्देश्य
भदोही जिले में श्रमिक भारती एवं HDFC बैंक के सहयोग से चलाए जा रहे ग्राम समृद्धि परियोजना के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों के पदाधिकारियों एवं सदस्यों की क्षमता वर्धन के लिए 21 एवं 22 फ़रवरी को दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें श्रमिक भारती के CEO राकेश पांडे सर प्रशिक्षक की भूमिका में, परियोजना प्रबंधक रवींद्र द्विवेदी जी, परियोजना समन्वयक सत्यप्रकाश जी, ग्राम समन्वयक रीता सिंह, पुष्पलता, विजय तिवारी, कृष्ण कुमार, उमेश कुशवाहा, 6 गाँवो से 72 महिला स्वयं सहायता समूहों की पदाधिकारी एवं कुछ सदस्य उपस्थित थे।
जब महिलाओं से समूह एवं समिति से जुड़े उनके मन में उठ रहे सवाल पूछे गए तो निम्न कुछ सवाल सामने आए:
- हम समिति में पैसा क्यों डाले एवं समिति से हमें क्या-क्या लाभ होगा?
- समूह से बाहर अन्य किसी को कर्ज देने चाहिए या नहीं?
- समूह में बाहर से कोई मदद आएगी या नहीं?
- शादी में समूह से कर्ज दे सकते हैं या नहीं?
- पैसे का उपयोग और कहाँ-कहाँ करें?

समूह के विषयों पर चर्चा
समूह किसका है एवं इसकी ज़िम्मेदारी किसकी होनी चाहिए?
महिलाओं से जबाब आया “समूह हमारा है और ज़िम्मेदारी भी हमारी है”। उन्होंने आगे कहा – एक समूह में तीन पदाधिकारी होते हैं – अध्यक्ष, सचिव, एवं कोषाध्यक्ष, व बाकी लोग सदस्य होते हैं। जिस प्रकार समूह में सबका हक बराबर है उसी प्रकार ज़िम्मेदारी भी सभी सदस्यों की बराबर होनी चाहिए तभी समूह मज़बूती के साथ चल पाएगा। ऐसा नहीं होना चाहिए की समूह से लाभ सभी ले परंतु काम सिर्फ पदाधिकारी करें| ऐसा समूह लंबे समय तक नहीं चल पाएगा। उन्होंने बताया कि समूह की स्थिरता के लिए 10 से अधिक परंतु 20 से कम सदस्य होने चाहिए और नए सदस्यों को जोड़ने की प्रक्रिया सरल होनी चाहिए। ऐसी शर्त नहीं रखनी चाहिए जिससे नए सदस्यों का जुड़ना मुश्किल हो जाए जैसे पिछली बचत जमा करने की शर्त रखना। पुराने सदस्यों का समूह से निकलना भी आसान होना चाहिए। नए सदस्यों का क़र्ज़ उनकी बचत के हिसाब से तय होना चाहिए जिससे समूह में नए और पुराने सदस्यों के बीच असमानता की स्थिति पैदा ना हो।
स्वयं सहायता समूहों का उद्देश्य क्या है?
कुछ लोगों ने कहा बचत के लिए एवं कुछ ने कहा क़र्ज़ वितरण के लिए। इस पर राकेश सर ने उन्हें बताया कि समूह का एक मुख्य उद्देश्य है विपत्ति के समय या ज़रूरत पड़ने पर सुलभ तरीके से कम ब्याज दर पर क़र्ज़ वितरण। अत्यंत ज़रूरी स्थिति में या अचानक मुसीबत पड़ने पर लोग साहूकारों से मोटे ब्याज दर पर पैसे ले लेते हैं और कर्ज के बोझ में हमेशा के लिए दब जाते हैं। कभी-कभी तो ऐसा होता है की सब कुछ बिक जाता है, पीढ़ियां निकल जाती हैं पर कर्ज खत्म नहीं होता।
“समूह का कार्यक्रम पैसों से जुड़ा अवश्य है किन्तु यह पैसों के लिए नहीं है ”।
इसका भाव होना चाहिए आपसी संबंधो को बढ़ाना, संकट के समय एक दूसरे की मदद करना। इस प्रकार हम समूह का सही मायनों में इस्तेमाल कर सकते हैं।
शादी में समूह से कर्ज दे सकते हैं या नहीं एवं पैसे का उपयोग और कहाँ-कहाँ करें?
हमें यह सोचना चाहिए कि हम क़र्ज़ कब लेते हैं और यदि हमारे पास स्वयं सहायता समूह न हो तो हम ज़रूरत पड़ने पर क़र्ज़ लेने किसके पास जाते हैं। जबाब हमें स्वयं मिल जाएगा। समूह का पैसा दो तरह के कार्यों में बटना चाहिए:
- शादी जैसे सामाजिक कार्यों में, बीमारी के लिए। हमें कर्ज वितरण के समय इन मुद्दों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
- आजीविका वर्धन के लिए, रोज़गार संबंधित कार्यों के लिए।
समूह से बाहर अन्य किसी को क़र्ज़ देना चाहिए या नहीं?
समूह के बाहर अन्य लोगों को कर्ज देने के मुद्दों पर राकेश सर ने कहा – ऐसा नहीं करना चाहिए| यदि पैसे वापस नहीं हुए तो ज़िम्मेदारी किसकी होगी। यदि किसी को पैसे की आवश्यकता है तो उसे पहले अपने समूह मे जोड़ें, उसके बाद ही उन्हें नियमानुसार कर्ज वितरित करें। बाहरी लोगों को अधिक ब्याज दर पर कर्ज देना समूह के सिद्धांतों के विरुद्ध एवं गलत है क्योंकि समूह सदस्यों की सहायता के लिए बना है महाजनी के लिए नहीं। इसके पैसों का इस्तेमाल सदस्यों के विकास एवं ज़रूरत के लिए ही किया जाना चाहिए।
समूह में बाहर से कोई आर्थिक मदद आएगी या नहीं?
समूह मे पैसे आने के सवाल पर बताया गया कि इसके तीन स्त्रोत हैं:
- समूह के सदस्यों द्वारा जमा किया गया पैसा
- सरकारी मदद (NRLM) से आया हुआ पैसा
- बैंक द्वारा समूह को दिया गया कर्ज
समूह में पदाधिकारियों का चुनाव कब और कैसे करना चाहिए?
आमतौर पर समूह में पदाधिकारियों (अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष, सचिव) का चुनाव तीन साल के अंतराल पर होता है परंतु जो लोग अच्छा कार्य नहीं कर रहे हैं क्या उन्हें हमको तीन साल तक रखना चाहिए| जबाब आया नहीं। हमें उनको तत्काल हटा देना चाहिए और जो लोग बेहतर कार्य कर रहे हैं उनको तीन साल बाद बदल देना चाहिए जिससे समूह की ज़िम्मेदारी उठाने का मौका सभी को समान रूप से मिल सके। परंतु एक बात का ध्यान रखना चाहिए की तीनों पदाधिकारियों को एक साथ नहीं बदले, उन्हें क्रमानुसार एक साल के अंतराल पर बदलें जिससे सभी का अनुभव बना रहे। यह प्रक्रिया तीनों पदों (अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष, सचिव) के लिए एक-एक करके दोहरायें। चुनाव प्रक्रिया :-
- समूह में जितने सदस्य हैं उतनी पर्चीयां बना कर उन पर क्रमानुसार संख्या लिखकर सभी सदस्यों में बाँट दें
- किसी एक पद के लिए इच्छुक तीन उम्मीदवारों को खड़ा होने को कहें
- अब एक-एक सादा पर्ची सभी सदस्यों मे बाँट कर उम्मीदवारों में से किसी एक को वोट देने (उनकी संख्या सादे पर्ची पर लिख कर) को कहे
- अब पर्चियों को गिन कर, जिसको सबसे अधिक वोट मिले हो, उसे पद के लिए अधिकारी घोषित करें

समिति के विषय पर चर्चा
परियोजना क्यों आती हैं? इनका उद्देश्य क्या होता है?
किसी भी जगह परियोजना का उद्देश्य यह होता है कि वहाँ के लोगों के बीच नई व्यवस्था को बताया जा सके ताकि वहाँ के लोग इस माध्यम से लाभ उठा सके, नए अवसरों को तलाश सके एवं उसको अपने समुदाय, अपने गाँव में आगे बढ़ा सके। परियोजना व्यक्तिगत तौर पर नहीं बल्कि सार्वजनिक विकास के दृष्टिकोण से सामजिक कार्यों को बढ़ावा देने का काम करती है । राकेश सर ने यह सवाल वहाँ बैठे लोगों से पूछा – “आप बताइए परियोजना के ख़त्म हो जाने के बाद ये समूह और ये संगठन रहना चाहिए या नहीं”? जबाब आया – रहना चाहिए, हम सब चाहते हैं कि जो संगठन हम सबने मिलकर 3-4 सालों में खड़ा किया है वह टूटना नहीं चाहिए बल्कि उसको और मजबूती से आगे बढ़ना चाहिए। जिस प्रकार एक छोटा शिशु अपने-आप बड़ा नहीं हो सकता उसी प्रकार एक समूह अपने-आप काफी समय तक व्यवस्थित तरीके से नहीं चल सकता। उसको बढ़ाने के लिए एक व्यवस्थित संगठन का होना बहुत ज़रूरी है जिसके लिए हमने दो उपाय सुझाए:
- ग्राम स्तर पर ग्राम विकास संगठन बनाना
- जिला स्तर पर शौर्य विकास समिति का गठन करना

इन दोनों संगठनों की भूमिका क्या है एवं आवश्यकता क्यों है?
ग्राम विकास संगठन ग्रामीण स्तर पर सामाजिक एवं आर्थिक मुद्दों पर कार्य करेगा और समिति सारे गाँवो के सभी समूहों के साथ मिलकर काम करेगी व अन्य संस्थाओ के साथ संबंध स्थापित करने का भी कार्य करेगी। समूहों के निरन्तर विकास एवं मजबूती के लिए इन दोनों संगठनों का होना बेहद ज़रूरी है। यह दोनों मुख़्य रूप से 5 मुद्दों पर कार्य करते हैं:
- पदाधिकारीयों एवं सदस्यों के प्रशिक्षण के लिए
- समूहों के लेखा -जोखा एवं खाते का हिसाब रखने और प्रति वर्ष ऑडिट करने के लिए
- बैंक से समन्वय स्थापित करने, समूह का खाता खुलवाने एवं लेन-देन संबंधित कार्यों में मदद के लिए
- आजीविका वर्धन एवं रोजगार संबंधित कार्यों में सहायता के लिए
- सामाजिक कार्य एवं स्वास्थ्य जैसे विषयों पर कार्य करने के लिए
ग्राम विकास संगठन एवं समिति यह सब कैसे करेगी एवं उनके पास इसके लिए पैसे कहाँ से आएंगे?
समूहों में जमा हो रहे क़र्ज़ से प्राप्त ब्याज के पैसों को 4 हिस्सों में बाँटा जाएगा जिसमे दो हिस्से समूह में रहेंगे समूह के खर्च के लिए, एक हिस्सा ग्राम विकास संगठन में जाएगा एवं एक हिस्सा समिति में जाएगा। ग्राम संगठन और समिति उसी पैसे का सदुपयोग पुनः समूह के विकास कार्यों में करेगी।
प्रशिक्षण कार्यशाला से मेरी SHG पर जितनी भी समझ बन पाई है उसको मैंने यहाँ समझाने का प्रयत्न किया है और यह स्वाभाविक है कि मुझसे कुछ छूट गया हो या फिर कोई त्रुटि हो गई हो जो मैं आप पाठकों से आशा करता हूँ कि आप मुझे नीचे कमेंट करके बताएंगे।
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