हक्कुम

by | Apr 22, 2023

दक्षिण छत्तीसगढ़ के जंगल के बीच में बसा एक गाँव है।

इस गाँव का नाम ‘जगरगुंडा’ है। 

इस गाँव में लोग खेती और शिकार करके अपना जीवन यापन करते हैं। 

गाँव वाले सब मिलकर शिकार करने जाते हैं। 

उस गाँव में भीमा नाम का एक आदमी रहता था। 

भीमा उस गाँव का ताकतवर इंसान था। 

जब भी शिकार के लिए जाते सब भीमा को लेकर जाते। 

भीमा ने एक बार बड़े से भालू को सिर्फ पत्थर से मार गिराया था।

तब से भीमा गाँव का नायक बन गया था। 

एक बार गाँव के महिला-पुरुष शिकार पर निकले।

किसी के हाथ में भाला, किसी के तीर-कमान।

किसी के हाथ में कुल्हाड़ी तो किसी के हाथ सिर्फ डंडा था।

सभी गाँव से पैदल चलकर दूर घने जंगल में पहुँच गए। 

सभी जानवरों को ढूँढने छोटे-छोटे टोली में जंगल में जुट गए। 

दोपहर हो चला था अभी तक कोई जानवर नहीं मिला। 

थुंबा का पानी खत्म होने पर था। 

लोगो को भूख भी लग रही थी। 

गंगी ने कहा “अरे आज तो किस्मत ही खराब है कोई भी जानवर नहीं मिला”

सब चुप थे, सब थक भी गए थे।

सोमरु ने अपना पसीना पोंछते हुए कहा “चलो थोड़ी देर पेड़ की छांव में बैठ जाएँ।” 

सबने कहा – हाँ हाँ हाँ  

बाकी साथी पानी थुंबा से पानी पी रहे थे तो कोई लेट रहा था। 

थोड़ी दूरी पर एक ओर टोली पेड़ के नीचे बैठे हुए थे। 

दूर झाड़ियों से कुछ सरसराहट की आवाज़ आई।

जैसे ही लोगो की नज़र पहुंची, एक खरगोश भाग रहा था। 

हिड़मा ने अपने तीर कमान से बैठे -बैठे ही उसे निशाना लगा दिया। 

दूसरी टोली भी आवाज़ सुनकर दौड़े आए। 

देखा की ये तो खरगोश है सब हंसने लगे “अरे ये तो खरगोश है” 

तभी तीसरी टोली की आवाज आई। ऊउउउउउउ

दोनों टोली तैयार थे। 

देखा एक बड़ा जंगली भैंसा दौड़कर आ रहा है। 

जैसे ही भैंसा दिखा सभी ज़ोर से चिल्लाये “मारो”  

भैंसा पर तीर से निशाना साधा लेकिन तीरों का कोई असर नहीं पड़ा। 

भैंसा अपने शरीर में लगे तीर से भी आहत नहीं हुआ। 

लोगो ने भाला चलाया लेकिन भैंसा बच गया। 

भैंसा लोगो को देखकर दूसरी तरफ भागना शुरू किया। 

सोमरु ने आवाज लगाई “भीमा भैंसा तुम्हारे तरफ आ रहा है।” 

भीमा ने जैसे आवाज सुनी उसने अपने साथियों से कहा,

“भैंसा आ रहा है तीर – कमान और भाला उठा लो” 

उसके साथी अपने हथियार के साथ तैयार हो गए। 

भैंसा को दूर से दौड़ते आता देख भीमा अपने साथियों से कहा “तीर चलाओ”

सब ने तीर चलाया लेकिन भैंसा को फर्क नही पड़ा। 

भीमा ने ज़ोर से चिल्लाया “अरे भाला भी मारो”  

किसी का निशान नहीं लगा। 

भैंसा उनके सामने से भाग कर घने जंगल में घुस रहा था। 

भीमा ने अपना भाला उठाया और भैंसा के पीछे दौड़ते हुए अपना भाला ज़ोर से मारा।

भाला सीधा भैंसा को जा लगा। 

बेचारा भैंसा ज़मीन पर गिर गया। 

सभी गाँव वालों ने मिलकर दावत उड़ाई। खुब रस पिए, नाचे-गाए।

दूसरे दिन भैंसा के सींग को किसी ऊंचे जगह पर सूखा दिया। 

दो महीने बाद सींग के अंदर का मांस सुख गया। 

इस सींग को भीमा ने अपने पास रखा। 

एक दिन भीमा सींग को साफ कर रह रहा था।

उसके हाथ से सींग नीचे गिर गया। 

सींग का एक सिरा टूट गया।

अब सींग एक तरफ से बड़ा छेद और दूसरे तरफ से छेद बन गया था।  

भीमा ने छोटे तरफ से फूँक कर देखा ‘पों’ की आवाज़ निकली। 

भीमा के लिए ये मज़ेदार था।

उसने फिर ज़ोर की आवाज़ लगाई।

उसने इस बार ज़ोर से फूंका। 

उस छोटे से गाँव में पों …… की आवाज़ गुंज उठी। 

समय के साथ उसका नाम हक्कुम। 

अब जब भी लोग शिकार करने जाते हैं।

लोग एक दूसरे को पुकारने के लिए हक्कुम से आवाज़ लगते हैं। 

शिकार समाप्त होने के बाद हक्कुम को तीन बार बजाकर किसी जानवर को उठाकर घर लाने का रिवाज हक्कुम होने से बन गया।

यह हक्कुम इतना महत्वपूर्ण कि गाँव में ‘विज्जा पंडुम’ (त्यौहार) की शुरुआत हक्कुम से शुरू होने लगी।

Image Courtesy CGNet Swara

Feature image courtesy www.traveldiaryparnashree.com

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