सवाई माधोपुर से सरवन की कहानी

by | Apr 19, 2023

सरवन बावरी बस्ती, सवाई माधोपुर, राजस्थान में निवास करता है। वह पहले कबाड़ा बीनने का काम करता था। जब भी रुपयों की आवश्यकता होती, कबाड़ा बीनकर, उसे बेचकर पैसे ले आता और ज़्यादातर रुपए शराब पीने में ही खर्च कर देता था। उसकी सारी कमाई ऐसे ही खर्च हो जाती थी और वह हमेशा रुपयों को लेकर चिंतित रहता था क्योंकि उसके पास आजीविका का कोई स्थाई समाधान नहीं था। उसकी बस्ती में बाकी लोग भी कबाड़ा बीनने, कचरा बीनने, मेहनत मजदूरी करने का काम ही करते हैं। कुछ लोग भिक्षावृत्ति (भीख मांगने) का काम भी करते हैं। और कुछ चोरी-चकारी करके अपना गुज़ारा चलाते हैं। इस वजह से पूरा बावरी समाज ही इस दृष्टि से देखा जाता है कि वहां के लोग चोरी-चकारी और भिक्षावृत्ति करते हैं व झगड़ालू प्रवृत्ति के होते हैं।

समुदाय के बारे में

आर्थिक रूप से यह लोग इतने कमजोर हैं कि इनके समुदाय में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके क्रिया-कर्म करने तक के रुपए इनके पास नहीं होते हैं। यह एक-दूसरे से उधार लेकर या दूसरे समाज के लोगों से उधार लेकर किसी ना किसी तरह दाह संस्कार कर पाते हैं। एक साधारण सी 20*20 की झोपड़ी में रहते हैं जिसमें गर्मी के समय गर्मी पड़ती है, बरसात में पानी और सर्दी में सर्द हवा बनी रहती है। राजनीतिक रूप से भी इनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। वार्ड पार्षद, विधायक या कोई सरकारी अधिकारी इन लोगों की बात नहीं सुनते हैं। इस समुदाय को केवल एक साधारण टोला माना जाता है और बस वोट के समय इन्हें याद किया जाता है। उसके बाद किसी को इन समस्याओं से कुछ लेना-देना नहीं होता।

मेरा जुड़ाव

कुछ वर्ष पूर्व से यहाँ के लोगों के साथ शिक्षा, रोजगार और दस्तावेजीकरण को लेकर कार्य करने के लिए हमेशा मेरा यहाँ जाना-आना रहता है। यहाँ के एक सुरेश जी के साथ मिलकर मैं बच्चों को पढ़ाने का काम भी करता था। इस दौरान अक्सर सरवन को देखता। वह अकेले बैठा रहता, इधर-उधर घूमा करता, कभी शराब पीकर रहता। सरवन को देख कर मुझे ऐसा लगता कि यहाँ के लोगों के साथ बेहतर एवं योजनाबद्ध तरीके से काम करने की आवश्यकता है क्योंकि यह लोग सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सभी तरह से पिछड़े हुए हैं।

मैंने और मेरी टीम के सदस्यों ने कई बार बातचीत भी की कि लोग स्थाई रोजगार के लिए अपना काम धंधा शुरू करें जिससे पैसों की कमी दूर हो सके और वह एक बेहतर तरीके से जीवन यापन कर सके। उसी समय हमारी संस्था, ग्रामीण शिक्षा केंद्र, में बस्ती के लोगों के साथ काम करने के लिए एक व्यक्ति की आवश्यकता हुई। इसके लिए मैंने बस्ती में संपर्क किया तो मैं सरवन से मिला। वह बाकियों की तुलना में थोड़ा पढ़ा-लिखा है और हस्ताक्षर कर लेता है। उसके अलावा यहाँ कुछ ही लोग हैं जो पढ़ सकते हैं। करीब 95 प्रतिशत लोग अनपढ़ की श्रेणी में आते हैं और कुछ नई पीढ़ी के छोटे बच्चे हैं जिन्होंने पिछले कुछ सालों में ही स्कूल जाना शुरू किया है।

सरवन के साथ काम और उस पर उसका प्रभाव

सरवन का चयन कानून साथी के रूप में कार्य करने हेतु किया गया। कानून साथी के रूप में उसका प्रमुख कार्य था लोगों को कानून संबंधित जानकारी देना, कानूनी मदद उपलब्ध कराना, लोगों के दस्तावेज जैसे आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, राशन कार्ड, पैन कार्ड, बैंक खाता आदि पूरे करवाना, सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाना, और अगर किसी को पुलिस बेवजह पकड़ कर ले जाये तो उस समय उनको छुड़वाना। इन कार्यों को करने के लिए सरवन को सभी ज़रूरी जानकारी दी गई और उसे प्रशिक्षण के लिए देवास, मध्य प्रदेश भी भेजा गया।

प्रशिक्षण और कुछ महीने कार्य करने के पश्चात जब सरवन से बात हुई तो उसने बताया कि पहले वह पुलिस से बहुत डरता था, और अब वह डर कम हुआ है। बस्ती के लोग भी श्रवण का पूरा सहयोग करते हैं। उसका कहना है,

“अब मैं आराम से पुलिस या अन्य सरकारी अधिकारियों से बात कर लेता हूं। अगर आप निर्दोष हैं तो आपको किसी से डरने की आवश्यकता नहीं है। बिना सबूत के पुलिस आपसे पूछताछ कर सकती है, आपको गिरफ्तार नहीं कर सकती।”

आज जब भी मैं सरवन से मिलता हूं तो मुझे बहुत खुशी होती है। ऐसा लगता है कि उसका जीवन पूर्ण रूप से न सही, किसी न किसी रूप से तो बदला है। वह अब साफ-सफाई से रहता है, अपनी पढ़ाई-लिखाई भी करता है और अपने कार्य को पूरे आत्मविश्वास के साथ करता है। उसके व्यवहार और बातचीत करने के तौर-तरीकों में भी मुझे परिवर्तन दिखता है। वह खूब मेहनत करता है और अपने कार्य को लेकर हमेशा सक्रिय रहता है।

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