राजस्थान का दक्षिणी क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. यहाँ कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याऐं हैं. मैं यहाँ बेसिक हेल्थकेयर सर्विसेज़ (BHS) नाम की संस्था के साथ काम करता हूँ और उदयपुर जिले के सलूम्बर ब्लॉक, जो कि उदयपुर से 70 किलोमीटर दूर स्थित है, वहां समुदाय में प्राइमरी हैल्थ को मजबूत बनाने के लिए सेवा प्रदान कर रहा हूँ. BHS द्वारा संचालित क्लीनिक सलूम्बर से भी 30-35 किलोमीटर आगे है.
इस दूर दराज़ इलाके में स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचा पाना मुश्किल है. प्राइमरी हैल्थ मज़बूत होने से यहाँ के एरिया मे लोगों को गंभीर बीमारियों से बचाया जा सकता है. इसी उद्देश्य से BHS अमृत क्लीनिक चलाता है. यह संस्था द्वारा संचालित क्लीनिक हैं जहाँ आसपास के गांव से लोग कम से कम खर्च में बेहतरीन इलाज करवा सकते हैं.
अमृत क्लीनिक अपनी क्लिनिकल सर्विसेज़ के साथ ही समुदाय में कार्य के ज़रिये लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करता है. व्यस्क व बुज़ुर्ग लोगों की उनके व उनके परिवार के स्वास्थ्य पर समझ बनाने के साथ-साथ, हम बच्चों मे होने वाले कुपोषण का भी पता लगाते हैं. उनके साथ मिलकर काम करते हैं जिससे उनका पोषण सुनिश्चित हो सके और बच्चों में होने वाली गंभीर समस्याओं से बचा जा सके.
हालाँकि सभी बीमारियों का पता लगाना एक चुनौतीपूर्ण काम है लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि इस क्षेत्र में मधुमेह (डायबिटीज) अभी तक एक छुपी हुई बीमारी है. यहाँ ग्रामीण क्षेत्र में इसका पता लगाना मुश्किल होता है क्योंकि लोग अक्सर किसी अन्य समस्या को लेकर क्लीनिक आते हैं और ब्लड शुगर टेस्ट करने पर पता लगता है कि उन्हें डायबिटीज टाइप 1 है जो कि युवा उम्र में होती है. कई बार इसमें किसी भी प्रकार के कोई लक्षण नही होते हैं.
यहाँ जानकारी के अभाव से कई बार मरीज़ होने वाली समस्या को भी काम की व्यस्तता के कारण चेक नही करवाते हैं. इसीलिए मधुमेह का लंबे समय तक पता नहीं लगता है.
कुछ समय पहले की ही बात है. एक 16 वर्षीय पुरुष, रमेश, अपने भाई के साथ हमारे मानपुर गांव के क्लीनिक पर आया. रमेश 9th क्लास तक पढ़ा हुआ है. अभी वह कंप्यूटर पर काम करता है और उसे अमृत क्लीनिक के बारे में उसके एक रिश्तेदार से पता चला जो कि पहले मानपुर क्लीनिक पर सेवायें लेने आए थे. रमेश के पहली बार आने पर उसकी केसशीट भरी गयी, महत्वपूर्ण चीज़ें चेक की गयीं जैसे पल्स, बी.पी. , शुगर लेवल चेक किया गया जो कि उस समय नियंत्रित नहीं था.
जांच करने पर पता चला कि रमेश पहले से ही डायबिटीज की दवाई खा रहा था लेकिन उसे खाने का तरीका सही नही था जिससे उसका शुगर लेवल ठीक नहीं हो रहा था. जब अमृत क्लीनिक में रमेश की दवाई शुरू की गयी तो दवाई के साथ-साथ उसे शरीर मे शुगर लेवल बढ़ने और घटने के बारे में विस्तार से जानकारी भी दी गयी. उसे दवाई के प्रभाव के बारे में, दवाई कब लेनी है, उसके साथ अच्छी डाइट क्या होगी, यह सब समझाया गया.
7 दिन की दवाई देकर रमेश को 7 दिन बाद फिर से आने के लिए कहा गया और यह भी बताया कि वापस आना क्यों ज़रूरी है. इस बीच में उसके साथ क्लीनिक टीम द्वारा फोन पर भी बातचीत जारी रही, जिससे लगातार काउन्सलिंग की मदद से यह सब हो जाये:
- समय पर दवाइयां लेना
- शुगर कम होने पर शरीर में होने वाले खतरों से परिचित रहना
- सही डाइट लेना
- अगली बार सही दिन क्लिनिक में आना
आज की तारीख में मानपुर का अमृत क्लीनिक टाइप 1 डायबिटीज के लगभग 20 से 25 मरीजों का इलाज कर रहा है. ऐसा नहीं है कि सभी इससे आसानी से जूझ लेते हैं. आये दिन कई चुनौतियाँ भी आती हैं. जैसे:
- मरीज का क्लिनिक पर न आना जिससे उनकी हालत और बिगड़ जाती है
- दवाइयों का बताए गए तरीके के अनुसार उपयोग नही करना
- दवाइयो का स्टोरेज सही नही होना जिससे उनका प्रभाव कम हो जाता है
- खाने की सही मात्रा में उपलब्धता न होना
इन चुनौतियों से उभरने के लिए हम कई सारे कदम उठा सकते हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं:
- समुदाय में नॉन-कम्युनिकेबल बीमारियों की जागरूकता को बढ़ाया जाये जिससे उसकी जांच सही समय पर हो जाये
- स्क्रीनिंग को बढ़ाया जाए
- समय समय पर हैल्थ कैंप किए जाएं
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