आम जनता के प्रति सरकारी बाबुओं की जवाबदेही

by | Apr 15, 2022

सूचना का अधिकार कानून के बाद राजस्थान की जनता जवाबदेही कानून की मांग कर रही है। सूचना के अधिकार के तहत हम किसी भी सरकारी व्यक्ति से उनके काम के जानकारी की मांग कर सकते है, जवाबदेही कानून से आम जनता को अपना हक मिलेगा। जवाबदेही कानून के बारे में मुख्य तीन बातें है।

  1. हर लोकसेवक के काम की नपती हो जैसे कि सरकार नरेगा में श्रमिकों की करती हैं ताकि जो कर्मचारी/अधिकारी काम नही कर रहे उनकी जानकारी मिले।
  2. तय समय मे जनता का काम पूर्ण हो, उन्हें सरकारी काम को समय पर करने के लिए जवाबदेही मिले।
  3. जो लोकसेवक समय पर काम नही करे उस पर पेनाल्टी लगे।

अगर हम सरकारी दफ्तर में कोई काम करना चाहते है और वह काम समय पर नही हो रहा है, तो उसकी जानकारी लेने के लिए हम किसी भी कर्मचारी या अधिकारी से जवाब पूछकर एक माह के समय मे अपना काम करवा सकते है। अगर हमारा काम एक माह में पूरा ना हो तो उस अधिकारी या कर्मचारी को पेनल्टी देनी पड़ेगी। सरकारी अधिकारी या कर्मचारी से जवाब मांगना जनता का हक है। इसीलिए राजस्थान की जनता ने जवाबदेही कानून पास करने के लिए एक यात्रा शुरू की। अब क्या सरकारी कर्मचारी और अधिकारी अपने समय मे काम करते है – यह सवाल जनता पूछ सकती है।

आपकी, मेरी, हम सब की सरकारें जिन्हें हम चुनते हैं, वो क्या कार्य करती हैं, हमारे खून पसीने की कमाई का क्या इस्तेमाल करते हैं – यह जानने की लड़ाई है।

इंडिया फेलोशिप के दौरान मैं राजस्थान में उदयपुर ज़िले के कोटड़ा तालुका में काम कर रहा हूँ जहाँ मुझे इस जवाबदेही कानून और यात्रा के बारे में जानकारी मिली। जब मैंने मेरे साथियों से बातचीत की तब इस कानून को मैं ठीक से समझ नही पाया था। मैंने अपने मेंटर सरफराज जी से जवाबदेही कानून की यात्रा का हिस्सा बनने के लिए इच्छा व्यक्त की, और वह राज़ी भी हो गए। मैं 10 दिन के लिए इसका हिस्सा बना।

राजस्थान में 2015 में 101 दिन की यह पहली यात्रा हुई थी। उस वक्त 33 जिलों में आंदोलन कर जवाबदेही कानून की मांग की गई थी। 2018 विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में जवाबदेही कानून के बारे में लिखा, ताकी अगर उनकी सरकार राजस्थान में आये तो वे जनता के लिए यह कानून पास करेंगे। चुनाव हो गए, कॉंग्रेस की सरकार आ गई, तीन साल बीत गए पर कानून पास नही किया गया, इसीलिए फिर से यह यात्रा शुरू करने का निर्णय हुआ।

इस बार इस लड़ाई का मैं भाग बन पाया। यह मेरे लिए सुनहरा अवसर था। इसके जरिये मुझे राजस्थान और वहाँ की जनता को जानने का बड़ा मौका मिला।

इस बार इस यात्रा को 45 दिनों में राजस्थान के हर जिले में ले जाने के लिए तय किया गया था। इसे 100 से भी अधिक संगठनों और देश की जागरूत जनता से सहयोग मिल रहा था। जिसमे लोकतंत्र शाला के फ़ेलोज, अलग-अलग शहरों से महिलाएं, लड़के-लड़कियां, बुजुर्ग और कलाकार भी थे। हर जिले में 60 से अधिक लोग जुड़ रहे थे। जैसे अगर यात्रा उदयपुर में आती है तो आस्था संस्थान इन यात्रियों का रहना और खाना देखेंगे। ऐसे ही हर जिले में अलग-अलग संस्थाए जुड़ती थी और वहाँ जनता की शिकायतें लिखकर जिले में आंदोलन होता था। जिस दौरान शहर की जनता को जवाबदेही कानून के बारे मे बताया जाता था, वे उन शिकायतों को लेकर जिला प्रशासन के साथ बैठक करते थे। इसमें शिकायतों पर बातचीत करके जवाबदेही कानून की मांग की जाती थी।

इस यात्रा को किसी भी पक्ष, संगठन या बड़े व्यक्ती का आर्थिक आधार नही था। हर दिन जहां यात्रा जाती उस जिले में आंदोलन के साथ झोली लेकर लोगों से पैसे इकट्ठा करते थे। करीब 60 लोग हर दिन जुड़ते व कुछ लोग शुरू से ही साथ थे। जिस शहर में जाते वहां समर्थक खाने का प्रबंध कर देते। वही रात गुजार के अगले दिन यात्रा दूसरे शहर के लिए निकल पड़ती थी।

खाने में जो भी मिले वह खुशी से खाना और रहने के लिए जैसी जगह मिले वहीं रात गुजारना, यह आदत बन गयी थी। आंदोलन में सबकी अपनी-अपनी भूमिका थी| हर व्यक्ति अपना काम पूरे जुनून के साथ करते थे, कोई भी काम किसी के लिए छोटा या बड़ा नही था | कोई नारे लगाते चल पड़ता तो कोई गीत गाते ढोलक बजाते हुए आंदोलन में जुड़ा था। रास्ते पर चलते समय लोग हमें आकर सवाल पूछा करते थे कि क्या है यह कानून। इस समय रुककर बड़े सम्मान के साथ मैं जवाबदेही कानून के बारे में बताया करता था।

यात्रा के दौरान कुछ नए दोस्त भी बने जिनसे काफी कुछ सीखने को मिला। सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे और शंकर सिंह जी के साथ बातचीत करने का, उनका काम देखने का अनुभव हुआ। साथ ही साथ कुछ कलाकारों से भी मिलना हुआ जिन्हें मैं कभी भूल नही सकता। उनके गीत (सब मिल आओ र आपा जवाब देही कानून बनावा र) आज भी गुनगुनाता हूँ| विनीत पंछी जी की नज़्म सुनने का भी मौका मिला। आंदोलन के दौरान गीत गाकर इस कानून के बारे में जनता को जानकारी दी जाती थी|

हम सब जानते हैं कि जब एक मज़दूर कहीं किसी काम के लिए जाता है तो उसे उसके काम की नपती के आधार पर पैसे दिए जाते है पर सरकारी अधिकारी, कर्मचारी और नेताओं के लिए कोई नपती नही है। उनका दिन में काम हो या ना हो उन्हें उनके पूरे पैसे वक्त पर मिल जाते है। जनता को कहीं न कहीं किसी सरकारी दफ्तर में ठोकरे खानी पड़ती है, उनकी शिकायत दर्ज कराने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ता है और उसके बाद भी उस पर कोई काम नही होता है। होता भी है तो लंबे समय तक राह देखनी पड़ती है।

पहले दिन में ही हमने 100 से अधिक शिकायतें दर्ज कराई। जिसमे शिक्षा, बिजली, सड़क, पेंशन, राशन, मनरेगा, सिलिकोसिस की बीमारी जैसी शिकायतें दर्ज हुयी। कोटड़ा तहसील, जहाँ मैं काम करता हूँ, वहां के 29 गांवों में अभी तक कोई आंगनवाड़ी या पाठशाला नही है। वहाँ के बच्चों को शिक्षा नही मिल रही है। रास्ते न होने के कारण इन बच्चों को दूसरे गांव की पाठशाला में जाने में कठिनाई होती है। ऐसे ही उदयपुर के आगे और 5 जिलों में मुझे अलग अलग समस्याएं देखने को मिली।

यात्रा के दौरान बांसवाड़ा शहर में सिलिकोसिस के बारे मे एक शिकायत देखने को मिली, जहा उस व्यक्ति ने डॉक्टर के पास जाकर खुद की जांच करवाई थी। उस वक्त डॉक्टर को समझ आया तह कि इस व्यक्ति को सिलिकोसिस की बीमारी है। उन्होने डॉक्टरों के बोर्ड में इस व्यक्ति की जांच कराने के लिए निवेदन किया लेकिन इसके कुछ दिनों बाद ही बोर्ड ने बताया कि शिकायत करने वाले व्यक्ति सिलिकोसिस पीड़ित नही है. यह गलत रिपोर्ट डॉक्टरों ने बिना जांच करे ही दे दी थी, आज उन्हें यह बीमारी लग चुकी है और उनके जीवन मे वक्त बहुत कम है। अगर इन्हें सर्टिफिकेट मिल जाता तो वह योजना का लाभ ले सकते थे।अब उसके लिए उन्हें चक्कर काटने पड़ रहे है|

ऐसा न हो, इसलिए जवाबदेही कानून पास होना जरूरी है। जनता अपना हक मांग सके, अपनी समस्याओं के सम्बंधित जानकारी पूछ सके, जैसे कि सुनवाई, कार्यवाही, भागीदारी, सुरक्षा और जनता का मंच जहाँ जनता और प्रशासन के बीच समस्याओं को लेकर चर्चा होगी। यह जवाबदेही कानून के मुख्य प्रावधान हैं।

अगर यह कानून पास हो जाये तो आम जनता को सरकारी दफ्तरों में चक्कर नही काटने पड़ेंगे। जनता का हर काम वक्त में हो जाएगा। मैं आशा करता हूं की यह कानून जल्द से जल्द पास हो और हम सबको अपना हक़ मिले।

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