आज फिर कोई मस्त चिकन खाएगा!

by | Jan 26, 2018

खुला आसमान, इतना सुन्दर लग रहा था कि मन किया बस आराम से घंटों वहीँ बैठी रहूँ और कहीं ख्यालों में खो जाऊं| बड़ा मैदान, चारों ओर हरी-हरी घास, चेह्चाहती हुई चिड़ियाएँ, सूरज की हलकी सी रौशनी जैसे सूरज मियां सुबह-सुबह एकदम बढ़िया से नहा-धो कर आये हों और मस्त चमचमा रहे हों| सौंधी मिट्टी की खुशबू – शायद रात को यहाँ बारिश हुई थी| हलकी सरसराती हुई हवा में मेरे प्यारे-रेशमी बाल लहराते हुए, एकदम गज़ब एहसास था| सामने एक छोटा सा तालाब जिसमें से एक मेंढक चुपके से फुदक कर आया, इधर-उधर देखा और थोड़ी ही देर में अपने बाकी दोस्तों को भी बुला लाया| वह सब ऊपर देख कर खुश हो रहे थे| मैंने भी देखा, तो एक सुन्दर इन्द्रधनुष दिखाई दिया| चेहरे पर अपने आप ही मुस्कान आ गई| आसमान में इतने सारे रंग, पहले नहीं देखे थे| बस किताबों में तसवीरें देखी थी| मन किया कि वो पल वहीँ थम जाए|

“छुटकी, अरे ओ छुटकी”, ज़ोर से आवाज़ आई| अचानक सारा नज़ारा धुंधला होने लगा और मेरी आँखें खुली| सामने मम्मी खड़ी थी और रोज़ की तरह उनका रेडियो चालू हो गया था| रेडियो पर तो कम से कम चैनल बदल सकते हैं लेकिन मम्मी रोज़ सुबह एक ही धुन गुनगुनाती है, “तुमसे सुबह उठा भी नहीं जाता| शीला के बच्चों को देखो ज़रा, रोज़ सुबह उठ कर व्यायाम करते हैं और घर के कामों में शीला की मदद भी करते हैं| यहाँ एक तुम हो कि नै-दस बजे से पहले उठती नहीं|”

मन में था कि मम्मी की सुनूं या सपने के बारे में सोचूं| मैं यह सोचकर फिर सोने वाली थी के शायद उसी दुनिया में वापस जा सकूं लेकिन उससे पहले ही मुंह पर ठंडे-ठंडे पानी की छीटें पड़ गई| सारी की सारी नींद ने टाटा बोल दिया| मैं धीमी चाल में बाथरूम की तरफ जा ही रही थी कि इतने में फिर से ज़ोर की आवाज़ आई, “जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाओ|” गुस्से में मैं सीधे बाथरूम में घुस गई| थोड़ी देर बाद जब मैं बाहर आई तो देखा सभी मुर्गियां आपस में कुछ फुसफुसा रही थीं| सभी के चेहरे उतरे हुए थे| मामला कुछ गड़बड़ थाऔर मेरी नजरें मम्मी को खोज रही थीं| चारों तरफ नज़र घुमाई तो देखा मम्मी एक कोने में सर झुका कर बैठी थी| उनके चेहरे के रंग उड़े हुए थे और आँखों से आंसूं निकल रहे थे| मैं हडबडा कर मम्मी के पास गई, उनके आंसू पोछे और पुछा, “हुआ क्या है? आप रो क्यों रहे हो?”

मम्मी ने मेरी तरफ देखा और मुझे ज़ोर से गले लगाकर फिर रोने लगी| मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा है| मम्मी ने मेरे माथे को चूमा और बोला,

“बेटा शीला आंटी और उनकी बेटी को ले गए कल| आजकल शादियाँ बहुत चल रही है ना, चिकन की डिमांड ज़्यादा है| इसीलिए, कल कुछ लोग आये थे और शीला व बाकी कुछ मुर्गियां अपने साथ ले गए| आज सुबह हमने अपने मालिक को बात करते हुए भी सुना कि एक-दो दिन में कभी भी वो लोग वापस आ सकते हैं| हमारे मालिक भी हमको बेच देंगे|”

यह सुनते ही एकदम दिल बैठ सा गया| एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे हमे फांसी की सज़ा सुना दी गई हो| कितना अजीब है ना, जहाँ एकतरफ ये माहौल था वहीं दूसरी तरफ कल किसी ने शीला आंटी और उनकी बेटी को मारकर, चटकारे ले-लेकर, ख़ुशी-ख़ुशी खाया होगा| सब जश्न मना रहे होंगे| इतने में ही हमारे कमरे का दरवाज़ा खुला और सारी मुर्गियां सावधान हो गयीं| एक आदमी आया हुआ था| उसने चुनना शुरू किया कि इस बार किसे ले जाएगा| मम्मी ने मेरा हाथ ज़ोर से पकड़ रखा था| उन्होंने मुझे अपने आँचल में छुपाने की कोशिश करी क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं इस बार उनकी छुटकी का नंबर न हो| वो आदमी हमारे मालिक के साथ अन्दर आया और अपनी पैनी नज़र से इधर-उधर देखने लगा| उसने सामने से दो मुर्गियां चुनी, फिर पीछे से तीन| वो इधर-उधर इशारे कर ही रहा था कि मैंने देखा अगला इशारा मेरी तरफ था| उसके इशारा करते ही तुरंत मेरा मालिक मेरी तरफ आया| मै फुर्र से इधर उधर भागने लगी| मै आगे, मालिक पीछे पर आखिरकार वह जीत ही गया|

हम कहाँ इन इंसानों के आगे जीतने वाले थे|

उन्होंने हम सबको पकड़ा और गाड़ी में डाला| सभी को अपने घर-परिवार से बिछड़ने का गम था| सभी आक्रोश में अपने पंख फड़फड़ा रहे थे| मेरी नजरें मम्मी से हट ही नहीं रही थी| मम्मी का वो रोता हुआ बेबस चेहरा, मानो मुझसे पहले उनकी जान चली गई हो| थर्र्र्रर से गाड़ी शुरू हुई| मेरी नजरें एकटक मम्मी को ही देख रही थी पर उनका चेहरा धीरे-धीरे धुंधला होता गया| रोते हुए मैंने आस-पास नज़र घुमाई तो देखा कि और भी कुछ मुर्गियां रो रही थी| उनमें से एक मुर्गी मेरे पास आई, मेरे आंसूं पूछे और बोली, “रो मत पगली, ये तो चलता रहता है| हम शहीद होते हैं किसी और की खुशियों के लिए”| मैंने उसकी तरफ देखा और मै कुछ बोलती इससे पहले ही गाड़ी धम्मम से रुक गई| सामने एक बड़े से गेट में शादी का माहौल था| हमें पिंजरे में बंद कर के ले जाया जा रहा था| रास्ते में मैंने देखा कि कुछ लोग सजावट में लगे हुए थे, कुछ स्टेज लगा रहे थे, कुछ माइक पर चेक-चेक बोल रहे थे और एक आदमी फ़ोन पर कह रहा था कि ”अरे भाई अब तक यह सामान नहीं आया है| कैसे चलेगा? बड़ी पार्टी है – बुरा मान गई तो समझ जाओ बस| कोई भी कमी नहीं होनी चाहिए|”

फिर अचानक खून दिखा| आगे देखा तो कुछ मुर्गियां पहले से ही पकने के लिए तैयार थी| हमारी तरफ इशारा करते हुए एक आदमी ने बोला “लीजिये जनाब, आपके लिए ताज़ा माल, खाना एकदम लाजवाब बनेगा|” दूसरे आदमी ने एकटक हमें देखा और फिर अपनी छुरी को ओर देखते हुए बोला, “बिलकुल” उसने पिंजरा खोलकर सबसे पहले मेरी गर्दन अपने हाथ में ली, ख़ुशी और लालच भरी नजरों से देखते हुए चाकू मेरे पंख पर मार दिया| मैं फड़फडाई, चिल्लाई पर इससे पहले कि कुछ और कर पाती, अगला निशाना सीधे मेरी गर्दन पर था| रात को शादी में मैंने एक जनाब को कहते हुए सुना कि “मज़ा आ गया यार, चिकन बढ़िया बना है एकदम” …

मेरी ही तरह मेरी बाकी साथी मुर्गियों के जाने कितने ख्वाब होंगे लेकिन उनके लिए भी उजाला शायद सिर्फ उनके सपनो में ही होता होगा|

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