“देश की सफाई एकमात्र सफाई-कर्मियों की जिम्मेदारी नहीं है। क्या इस में नागरिकों की कोई भूमिका नहीं ? हमें इस मानसिकता को बदलना होगा।”
ये मैं नहीं कह रहा। ये कथन हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के हैं जो उन्होंने महात्मा गाँधी जी की 145वीं जयंती पर 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान के उद्घाटन के अवसर पर कहा था। उन्होंने राजपथ पर जनसमूहों को संबोधित करते हुए देश के नागरिकों से स्वच्छ भारत अभियान में भाग लेने और इसे सफल बनाने को कहा और मैं उनसे इस विषय पर पूरी तरह सहमत हूँ। स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार द्वारा आरंभ किया गया राष्ट्रीय स्तर का अभियान है जिसका उद्देश्य गलियों, सड़कों तथा अधोसंरचना को साफ-सुथरा करना, कूड़ा साफ रखना, व्यक्ति, क्लस्टर और सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से खुले में शौच की समस्या को कम करना या समाप्त करना है।
स्वच्छ भारत से जुड़ा महात्मा गाँधी जी का सपना
जब हम स्वच्छ भारत की बात कर रहे हैं तो यहाँ महात्मा गांधी जी के उदेश्य और स्वप्न की बात न हो तो ये इस लेख के साथ अन्याय होगा। महात्मा गाँधी जी ने भारत को एक निर्मल और स्वच्छ देश बनाने का सपना देखा था। अपने सपने के संदर्भ में गाँधी जी ने कहा था कि स्वच्छता स्वतंत्रता से भी ज़्यादा जरूरी है, क्योंकि स्वच्छता ही स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन का एक अनिवार्य भाग है। महात्मा गाँधी जी अपने समय में देश की गरीबी और गंदगी से अच्छी तरह अवगत थे। इसीलिए उन्होंने अपने सपने को पूरा करने के लिए बहुत से प्रयास किये लेकिन वो उसमें सफल न हो सके। दुर्भाग्य तो यह है कि भारत आजादी के 72 साल बाद भी इन दोनों लक्ष्यों से काफी पीछे है। भारत सरकार अपने प्रयासों से बापू की इस सोच को हकीकत का रुप देने के लिये देश के सभी लोगों को स्वच्छ भारत मिशन से जोड़ने का प्रयास कर रही है, जिससे देश भर में ये सफल हो सके। इस मिशन को अपने प्रारंभ की तिथि से बापू की 150वीं पूण्यतिथि (2 अक्टूबर 2019) तक 1.2 करोड़ शौचालयों का निर्माण करके खुले में शौच मुक्त भारत (Open Defecation Free) को हासिल करने का लक्ष्य रखा गया था।
एक नजर भारत सरकार के आंकड़ों पर
भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 2 अक्टूबर 2014 से लेकर अब तक कुल 10 करोड़ से ज्यादा शौचालय बनाए जा चुके हैं। देश मे कुल 5,99,963 गांव, 2,58,657 ग्राम पंचायत और 699 जिले खुले मे शौच मुक्त (ODF) हो चुके हैं। आंकड़ों के मुताबिक देश के सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश 91-100% खुले में शौच मुक्त (ODF) हो चुके हैं।
यह देखकर हम कह सकते हैं की भारत सरकार अपने द्वारा तय किए गए लक्ष्यों को हासिल करने मे काफी हद तक सफल रही है। किन्तु ज़मीनी हकीकत क्या है, यह हम और आप अपने आस-पास के इलाकों, अपने गाँव, अपने मोहल्लों को देखकर बेहतर बता सकते हैं। मैं कानपुर में श्रमिक भारती के साथ काम कर रहा हूँ, जो की एक स्वयंसेवी संस्था है और 1986 से ग्रामीण व शहरी समुदायों के साथ विभिन्न विषयों जैसे कृषि, वर्षा जल संचयन, अक्षय ऊर्जा, जल एवं स्वच्छता इत्यादि पर कार्यरत है और अपने सतत प्रयासों से उत्तर प्रदेश और पंजाब के लगभग 10 लाख लोगों के जीवन को सकारात्मक तरीके से प्रभावित कर रही है। मैं इस लेख के द्वारा अपने दो निजी अनुभव साझा कर रहा हूँ जो मैंने संस्था के साथ काम करते हुए अनुभव किया।
हमारे प्रधानमंत्री कानपुर दौरे पर आने वाले हैं और यहाँ वो गंगा घाटों का जायजा लेंगे। जिस कारण नगर निगम की नींद खुली है और वो उनके आने से पहले व्यवस्था दुरुस्त करना चाहते हैं। इसलिए नगर निगम कानपुर नगर में गंगा के किनारे बसे लोगों के बीच शौचालय की स्थिति जानने के लिए सर्वेक्षण करा रही है जिसमे श्रमिक भारती उनका सहयोग कर रही है। मैंने भी सर्वेक्षण में भाग लिया और उनके अनुदेश-अनुसार काम में लग गया। वहाँ सबसे पहले मेरी मुलाकात एक 50-55 वर्षीय महिला से हुई जो अपने घर के दरवाज़े पर बैठ पड़ोसियों के साथ बात कर रही थी। उनसे पूछने पर पता चला की उनके घर में शौचालय नहीं है और घर के बगल से एक नाली बह रही थी जो कचरे से भरके जाम हो गयी थी जिस कारण नाली का पानी सड़क पर बह रहा था। उनके परिवार के सदस्य दिन में सामुदायिक शौचालय का उपयोग करते हैं और रातों को घर के बगल वाली खुली जगह, जहां कचरे का ढेर है, वहाँ शौच करते हैं।
उस महिला ने मुझे नगर निगम का मुलाज़िम समझते हुए कहा “पहले आप उस नाले को साफ करवाओ फिर शौचालय की बात करना”। मैं निरुत्तर खड़ा था, मेरे पास उनके लिए कोई जबाब नहीं था। मैंने करीब 15-17 घरों का सर्वेक्षण किया जिसमे कुछ लोगों के घरों मे शौचालय थे, कुछ के घरों मे नहीं थे, कुछ घरों में शौचालय बनाए गए थे किन्तु उपयोगी नहीं थे क्योंकि उनके सेप्टिक टैंक का निर्माण गलत तरीके से हुआ था, कुछ लोगों के घरों के शौचालयों को सीवर लाइन से जोड़ा गया था। इससे कानपुर में गंगा के किनारों पर बसी बस्तियों की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है।
18 नवंबर को हमारी संस्था और CSJM University द्वारा विश्व शौचालय दिवस (19 नवंबर) के अवसर पर कानपुर के विकास भवन में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें कानपुर जिला विकास अधिकारी, प्रयोजना निर्देशक, पंचायत ए.डी.ओ, पंचायत सचिव, पंचायत प्रधान, समुदाय आधारित संपूर्ण स्वच्छता के टीम मेम्बर्स, स्वच्छता ग्राही, नेहरू युवा केंद्र, CSJM University के छात्र-गण व अन्य लोग उपस्थित थे। इसका उद्देश्य स्वच्छता, शौचालयों की उपलब्धता, स्वच्छता के प्रति लोगों में जागरूकता, खुले में शौच मुक्त वातावरण, गलत तकनीक से शौचालयों का निर्माण जिस कारण भूजल का दूषित व संक्रमित होना इत्यादि जैसे गंभीर मुद्दों पर समीक्षा व चर्चा करना और उससे संबंधित उपायों पर विचार करना था। कार्यक्रम में सदस्यों द्वारा कई मुद्दे उठाए गए, जिसमें से एक मुद्दा यह भी था कि सार्वजनिक व सामुदायिक शौचालयों पर अत्यधिक गंदगी होने का मुख्य कारण है लोगों में स्वच्छता के प्रति स्वयं के लिए किसी भी प्रकार की ज़िम्मेदारी या जबाबदेही का अनुबोध न होना, उसका इस्तेमाल कर उसे सरकारी संपती समझ वहाँ गंदगी छोड़ देना, स्वच्छता के आभाव को नज़र-अंदाज करना, जो काफी चुनौतीपूर्ण है।

एक सवाल अपने आप से…
मैंने यहाँ दो वाक्यों का जिक्र किया है, एक सरकार की नाकामियों को दर्शा रहा है तो दूसरा देश के नागरिकों की मानसिकता को। आज आज़ादी के 72 साल बाद भी देश के पूर्णतः स्वच्छ नहीं होने के पीछे कई कारण हैं –
शिक्षा का आभाव, खराब मानसिकता, घरों में शौचालयो का नहीं होना, अत्यधिक जनसंख्या, सार्वजनिक शौचालयों का साफ़ न होना, कचरे के सही निस्तारण का आभाव, उद्योगों का अपशिष्ट पदार्थ इत्यादि .. लोकतंत्र में सरकार अपनी नाकामियों व खराब नीतियों के लिए जबाबदेह है, परंतु क्या हम नागरिकों की देश के स्वच्छता के प्रति कोई जबाबदेही नहीं बनती? मेरा मानना है कि देश को स्वच्छ बनाने की ज़िम्मेदारी और जबाबदेही सिर्फ सरकार की नहीं होनी चाहिए अपितु देश के प्रत्येक नागरिक को स्वच्छता के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी व जबाबदेही का एहसास होना चाहिए। देश को पूर्णतः स्वच्छ बनाने का लक्ष्य जन-भागीदारी के बिना कभी संभव नहीं हो सकता इसलिए हम सब को मिल कर आगे आना होगा और साथ-साथ काम करके बापू के स्वच्छ भारत के स्वप्न को पूरा करने में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगा।
जो परिवर्तन आप दुनिया में देखना चाहते हैं, वह सबसे पहले अपने आप में लागू करें।
– महात्मा गांधी
Bahut badiya! Very well written Saurav. Took me a while to read through but very informative and definitely raises some important questions. I see this kind of out of sight, out of mind attitude here also regarding garbage and general swachchta..
thanks Aakanksha…
Bahut badiya! Very well written Saurav. Took me a while to read through but very informative and definitely raises some important questions. I see this kind of out of sight, out of mind attitude here also regarding garbage and general swachchta..
thanks Aakanksha…
मित्र आपका लेख पढ़ कर जमीनी सच्चाई से अवगत हुआ हूं। सिर्फ शौचालय एवं नाले बनाने से सरकार का कर्तव्य पूर्ण नहीं होता है। आम जन को शौचालय का इस्तेमाल करने की आदत दिलाने की आवश्यकता है। साथ ही सड़क पर कचड़ा ना फेंकने की आदत देश के हर नागरिक को लगाने की जरूरत है।
आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। सराहनीय है।
धन्यवाद बंधु
मित्र आपका लेख पढ़ कर जमीनी सच्चाई से अवगत हुआ हूं। सिर्फ शौचालय एवं नाले बनाने से सरकार का कर्तव्य पूर्ण नहीं होता है। आम जन को शौचालय का इस्तेमाल करने की आदत दिलाने की आवश्यकता है। साथ ही सड़क पर कचड़ा ना फेंकने की आदत देश के हर नागरिक को लगाने की जरूरत है।
आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। सराहनीय है।
धन्यवाद बंधु