“हमारे माँ-बाप हमें गेहूं काटने भेजते हैं, हम स्कूल कैसे जाएं?”

by | Jun 7, 2022

राजस्थान में उदयपुर ज़िले के कोटडा विभाग में आदिवासी समुदाय है। इस विभाग में महिला, किसान, मज़दूर, जंगल, ज़मीन और शिक्षा के मुद्दों को लेकर काफी समस्याएं है।

जब मैं गाँव के विद्यालय पहुंचा

इनमें से ही मैं 16 अप्रैल, शनिवार को कोटडा से 5 किमी की दूरी पर नाडाफला, गाँव के विद्यालय में गया. इस विद्यालय की वर्तमान स्थिति देखने के लिए मै और मेरे साथी मकनाराम जी हम दोनों गये थे। हम वहां अध्यापक से मिले और विद्यार्थियों के बारे में हमारी चर्चा शुरू हुई। यह राजकीय प्राथमिक विद्यालय था, जहां पहली से पांचवी कक्षा के विद्यार्थी पढ़ते हैं और जिनमे कुल नामांकन 80 विद्यार्थियों का था, इनमे 39 लड़के और 41 लड़कियां थीं।

अध्यापक शहर से कोटडा में रहने आए हैं, आदिवासी समुदाय के विद्यार्थियों को पढ़ाते समय भाषा की समस्या का उन्हें सामना करना पड़ता है और अध्यापक को आदिवासी भाषा नही समझ आती और विद्यार्थियों को हिंदी भाषा नहीं समझ आती।

स्कूल में विद्यार्थी गायब

स्कूल के बच्चे
स्कूली बच्चोँ के साथ

शिक्षक कहते हैं की विद्यार्थियों में नियमितता नहीं है 80 में से ज़्यादातर विद्यार्थी नियमित पढ़ने नहीं आते हैं और लड़कियों में यह नियमितता है।अगर एक विद्यार्थी नियमित एक साल तक विद्यालय में आए तो, उसे हम हिंदी समझना सिखा देते हैं, इसके लिए विद्यार्थी की नियमितता रहना उनके लिए ज़रूरी है साथ ही इस विद्यालय में केवल 2 अध्यापक हैं। शिक्षा का अधिकार कानून के तहत यह कहा जाता है के 80 विद्यार्थियों के लिए 3 अध्यापक विद्यालय में होने चाहिए जो इस विद्यालय में नही थे।

जब हम इस विद्यालय में गये, हमने विद्यार्थियों की उपस्थिति देखी, जिसमें 80 में से 67 विद्यार्थी उपस्थित थे। अनुपस्थित विद्यार्थियों में से हम 3 विद्यार्थियों के घर गए, उन विद्यार्थियों से हमने बात की यह तीनो विद्यार्थी एक ही परिवार से थे, इनसे हमने सवाल पूछा विद्यालय में क्यों नहीं जा रहे हो?

गेंहू काटे जा रहे हैं अभी

वे हमसे डर रहे थे फिर मैंने उन्हें कहा आप विद्यालय में जाना पसंद करते हो? इन 3 विद्यार्थियों में एक लड़की है जिसका नाम मनीषा है. मनीषा ने जवाब दिया हा वह पढ़ना पसंद करती है, उसने यह भी बताया बड़ी होकर वह मास्टर (शिक्षिका) बनना चाहती है, उसे देखकर बाकि दोनों ने जवाब दिया वो भी पढने जाना चाहते हैं।

थोड़ी देर बाद विद्यार्थियों से बात सामने आई यह तीनो विद्यार्थी गेहूं काटने के लिए खेत में जाते थे, इसीलिए माँ-बाप ने उन्हें स्कूल जाने नही दिया और लड़की इन तीनों विद्यार्थियों में बड़ी थी, वह माँ-बाप के काम में हाथ बटाती थी और दोनों भाई छोटे बच्चे को संभालने का कम करते थे।

आदिवासी किसान खेती करते हैं, तो उन्हें गेहू खुद निकलने पड़ते है जिसमे पैसे ना होने के कारण वो अतिरिक्त मजदूर नहीं लगा सकते इसीलिए बच्चों से यह काम करवाया जाता है। गेहूं निकालने का कम होते ही वे बच्चों को विद्यालय में भेज देंगे यह भरोसा किसान ने दिलाया।

मज़दूरी, पलायन भी बड़ी वजह

स्कूली बच्चे

कोटडा में विद्याथियो का शिक्षा से वंचित रहने का यही कारन है, यहां से मजदूर गुजरात, में या राजस्थान के सिरोही जिले में पलायन करते है इस वक्त यह मजदूर अपने बच्चों को अपने साथ ले जाते है जिस वजह से बच्चा शिक्षा से वंचित रह जाता है. इस विद्यालय के बाद मैं, जोड़घाटा और हड्मत इन दोनों गाँव के विद्यालय में गया, यह कोटडा तहसील में जंगल के इलाके में है कोटडा से 13 किमी अंदर है, जोड़घाटा के विद्यालय में 80 विद्यार्थियों का नामांकन है, जिसमें से 10 विद्यार्थी रोज़ उपस्थित रहते हैं।

यहां भी 2 अध्यापक पढ़ाते हैं, इस विद्यालय में हम 11:30 समय पर गए थे और यह विद्यालय बंद था। आसपास लोगों से बातचीत की तो उन्होंने इस विद्यालय के बारे में जानकारी दी और कहा आज अध्यापक ने छुट्टी है ऐसे कहा था। जोड़घाटा का ये सरकारी विद्यालय है।

इसके बाद हम राजकीय प्राथमिक विद्यालय, हड्मत में गए इस विद्यालय में 200 विद्यार्थियों के नामांकन है और 150 विद्यार्थी उपस्थित रहते है यहां 2 अध्यापक है, शिक्षा का अधिकार इस कानून का पालन नहीं किया जा रहा है। यह विद्यालय भी उस दिन बंद था, इन विद्यार्थियों को छुट्टी बताई गयी थी।

यानि एक तरफ कोटडा से करीबी विद्यालय शुरू थे और जंगल के इलाकों में विद्यालय बंद रखे जा रहे हैं।


This article was originally published on Youth Ki Aawaz as a part of the JusticeMakers’ Writer’s Training Program.

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