Picture by Sani Sabale, a 2019 fellow
इंडिया फेलो इंडक्शन ट्रेनिंग के तहत हमको (मेरे 4 को-फ़ेलोज़ और मुझे) राजस्थान के जतारा* गांव में जाने के लिए कहा गया. गांव जाने से पहले मन में कई तरह के विचार आ रहे थे. मैं सुनकर हैरान था कि स्थानीय लोगों को उस गांव के बारे में पता भी नहीं था जबकि वह उदयपुर शहर से थोड़ा ही दूर था. हमारे प्रशिक्षण केंद्र के आसपास हमने जिस किसी से भीजतारा के बारे में पूछा, कोई ठीक से कुछ बता नहीं पाया.
उस गाँव तक जाने के लिए कोई सार्वजनिक वाहन नहीं था. किसी ने हमको बताया कि आपको जतारा पहुंचने के लिए बस मिल जाएगी लेकिन वह गांव से चार किलोमीटर पहले ही रुक जाती है और इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि आपको दूसरा वाहन मिलेगा. जैसा बताया गया था वैसा ही हुआ. हमें आगे के लिए कोई वाहन नहीं मिला और बाकी का रास्ता हमने पैदल चलकर तय किया.
प्रशिक्षण केंद्र से गांव पहुँचने के सफर में जाने-अनजाने मेरे मन में बहुत से विचार घर कर रहे थे. हम सब अपने-अपने मन में कुछ न कुछ सोच रहे थे। क्या उस गाँव में बिजली होगी? क्या गाँव के लोग हमसे बात करेंगे? क्या पीने के लिए शुद्ध पानी मिलेगा? हमें नहीं पता था कि हम वहां जाकर लोगों के साथ कैसे बातचीत करेंगे.
चलते-चलते गांव पहुँचते समय हम बहुत लोगों से मिले. एक ग्रामीण से बातचीत की तो उनके परिवार के बारे में पता चला, उनकी परंपराओं और संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त हुई और उन्होंने हमारा स्वागत-सत्कार किया. उनसे मिलने के बाद हमने पूरा गांव घूमने का फैसला किया. थोड़ा आगे जाने पर हमें एक प्राथमिक विद्यालय दिखा तो हमने अंदर जाकर स्कूल व्यवस्था के बारे में जानने की कोशिश करी. स्कूल में हमारी मुलाकात शिक्षिका मीनाक्षी देवी* से हुई जिनके बारे में मेरे को-फ़ेलोज़ निवेदिता और अक्षता ने विस्तार से लिखा है. उन्होनें हमें गांव में शिक्षा प्रणाली और छात्रों के बारे में बहुत जानकारी दी.
जतारा पहुंचने से पहले ही हमारे मन में इस गांव को लेकर कई तरह के मिथक बन गए थे. लेकिन वहां कुछ समय बिताने के बाद ही कई मिथक गलत साबित हुए. हमने किसी वजह से गांव को गरीबी से जोड़ा हुआ था. लेकिन हमने जो देखा और सुना उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि गाँव में सड़कों और शिक्षा व्यवस्था से वहां तेज़ी से हो रहे विकास का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.
इस गांव का विकास कैसे हुआ, यह समझने के लिए हमें उसके इतिहास और लोगों की जीवन-शैली के बारे में समझना बहुत जरूरी था. किसी भी विषय पर उचित जानकारी हासिल करने के लिए उसकी तह तक जाना बेहद ज़रूरी है.
यहाँ विभिन्न जातियों के लोग रहते हैं, जैसे सुथार राजपूत, देवड़ा राजपूत, कुंभारी मेघवाल और आदिवासी. सबसे बड़ी आबादीसुथार समुदाय की है. मूल रूप से यह लोग लकड़ी से अलग-अलग चीजें बनाते हैं, और बढ़ई का काम करते हैं. उन्हें विश्वकर्मा में अपार आस्था है. कुछ समय पहले तक उनका काम उदयपुर में हो जाता था. हालांकि, उदयपुर में पैसे कमाने के सीमित विकल्प होने के कारण उन्होंने बैंगलोर जाकर काम करने का फैसला किया. जतारा गांव में रहकर काम करने का कोई चारा नहीं था. उनके पास खेती के लिए ज़मीन भी कम थी. कुछ लोगों ने संगमरमर (मार्बल) का काम शुरू किया लेकिन उसमें ज़्यादा मुनाफा न होने पर वे अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए टाइल्स पर काम करने लगे.
इन सभी लोगों का संघर्ष अतुलनीय है और प्रेरणादायक भी. ये अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए व अच्छा जीवन-यापन करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. महाराष्ट्र में मेरे गांव की तुलना में यहाँ की संस्कृति और परंपराएं अलग हैं लेकिन यहां के लोग भी एकता और लगन के बल पर इस गांव को बसाने में सफल रहे. आमतौर पर लोगों की सोच प्रगतिशील है और महिलाओं के प्रति समान व्यवहार व शिक्षा सुनिश्चित करके गांव ने सही मायने में सशक्तिकरण का एक अच्छा उदाहरण स्थापित किया है.
*गोपनीयता बनाए रखने के लिए बदला हुआ नाम
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