कई बार हम बहुत सारी धारणनाएँ बना लेते है, लोगो से सुन कर या सिर्फ एक बार देख कर | कई बार ये सच होती है और गलत भी | मैंने भी अपने दोस्तों से सुना था की राजस्थान में शादियॉँ 18 साल या उससे पहले भी हो जाती है तो मेरी भी एक धारणा थी की शादी जल्दी हो जाती है तो आज भी बच्चों को पढ़ाया भी नहीं जाता होगा खासकर लडकियों को |
मेरे लिय गॉव जाना कोई नया नहीं था पर आज (18.07.2016) मैं अपनी फ़ेलोशिप ट्रेनिंग के एक टास्क के दौरान इस धारणा को देखने उदयपुर के गॉव बेदला और सबलपुरा पहुची, यहाँ सभी घर बहुत अच्छे थे | मध्य प्रदेश के गॉव देखने के बाद मुझे लगा ही नहीं की मैं एक गॉव में हूँ | जब एक शहर में रहने वाला व्यक्ति गॉव सुनता है तो एक एसी जगह दिमाग में आती है जहाँ दूर-दूर तक खेती होगी | मै भी इतने गॉव घुमने के बाद भी रही कल्पना करती हूँ | शायद हम गॉव का मतबल समझ ही नहीं पाए है या सिर्फ एक ही बार देख कर चित्र बना लेते है और बात करते है गॉव के विकास की | आज जब एक धारणा को देखने करने निकली तो पता चला हम कितनी कहानियाँ बना रखे है |
जब मैं पहुची तो लगभग 2 बज रहा था और ये समय होता है स्कूल से लौटने का, मैंने देखा कई सारे बच्चे (लड़के और लड़कियां दोनों) स्कूल से वापस अपने घर जा रहे है मैंने उनसे बात करना शुरू किया | उन्होंने बताया की गॉव के आस-पास बहुत सारे सरकारी और निजी स्कूल है (मैंने सोचा था 1 या 2 ही स्कूल होगे) फिर मैंने लोगो के घर पर जाकर बात करना शुरु किया लगभग 10-15 घरो में बात करने के बाद एक ही जवाब मिला की हाँ सारे बच्चे स्कूल जाते है | जब वापस होने आने लगी तो एक घर (सिर्फ एक कमरा) के बाहर 3 – 4 बच्चे खेल रहे थे सोचा इनसे इनसे पूछती हूँ ये तो पक्का नहीं जाते होगे पर बात करने पर पता चला बच्चे स्कूल जाते है | तब लगा ‘स्कूल चले हम’ काम कर रहा है और पहले की तुलना में वाकई मेरा देश बदल रहा है |
आगे गई तो एक लड़की अपने घर पर कुछ काम कर रही थी, उससे बताया की उसकी शादी 18 साल में ही हो गई थी | गॉव के एक पुरुष से लम्बी बात के दौरान उन्होंने बोला “यहाँ तो एसा ही होता है लड़की की शादी 18 साल में करनी ही होती है” | मैंने एक और बात महसूस कि की गॉव में आगे की तरफ एसे लोग रहते है जिनकी आय अधिक है उनकी तुलना में जो गॉव के पीछे की तरफ रहते है | आगे की तरफ रहने वाले लोग अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर अपने पैरो पर खड़ा करना चाहते है वहीँ पीछे रहने वाले लोग एसा नहीं सोचते है |
मुझे लगता है शायद एक तरफ बदलाब हो तो रहा है पर ये काफी नहीं है, पता नहीं और कितना इंतजार और करना और जब हम पूरी तरह अपने देश पर गर्व कर पायगे |
Loved reading it Shubhi, especially because ye Hindi mein tha. Write more often! 🙂
Mind blowing work and experience shubhi!! Keep going against the flow :-*
………..हो सकता हैं मैं गलत रहू पर मैं सीतामढ़ी के जिस प्रखंड में शिक्षा के क्षेत्र के विकास पे काम कर रही हूं वहां हमे दोहरी मानसिकता के लोग अधिक मिलते है
1. बच्चों को स्कूल भेजने वाले (वो माता पिता जिनको अपने बच्चों को शिक्षित करना जरूरी लगता हैं
2. वो माता पिता वो समुदाय जिन्हें लगता है सरकारी योजनाओं से बच्चों को संलग्न करना है क्योंकि वो सिर्फ हमारे लिये ही है
स्कूलों मे वो क्या सीख रहे हैं , नही सिख रहे कोई मतलब नही
आपने जिस गांव की बात कही है हो सकता हैं वो भी अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हो पर रूढ़िवादी परम्परा आरे आ रहा हो ,या फिर उनको लग रहा हो पढ़ लिख के फिर एक दिन तो ………….