मासिक के किस्से

by | Apr 9, 2020

फ़रवरी के महीने में गुजरात के भुज के एक स्कूल में लगभग 68 लड़कियों को उनके कपड़े उतारने को कहे गए| ये घटना श्री सहजानंद गर्ल्स इन्स्टीट्युट में तब हुई जब हॉस्टल की वार्डन ने प्रिंसिपल से शिकायत की कि कुछ लड़कियाँ संस्थान के धार्मिक नियमों का अपमान कर रही हैं| उनका कहना था कि लड़कियाँ किचन और मंदिर में गईं और दूसरे हॉस्टलर्स को छुआ| इसके बाद प्रिंसिपल ने लड़कियों को बाथरूम जाने को कहा और उनकी तलाशी हुई कि वे मासिक में हैं या नहीं| लड़कियों के मुताबिक प्रिंसिपल ने उन्हें गालियाँ दीं और अपमान किया| महिला आयोग के लिए घटना की रिपोर्ट बनाते समय ये अंदेशा हुआ कि जितनी बातें मीडिया मे सामने आईं हैं वो सुई की नोंक बराबर है| पता चला कि लड़कियों को एक रजिस्टर में अपने मासिक की तारीखें लिखनी होती हैं, उन्हें एडमिशन के समय कुछ शपथ दिलाए जाते हैं जिनमें उन्हें बताना होता है कि वे हॉस्टल के मासिक से जुड़े नियमों का पालन करेंगी| लड़कियों के लिए मासिक के समय अलग रहने सोने की व्यवस्था की गई थी| लड़कियों को मासिक के समय ना ही अपने बिस्तर पर आना था और ना ही डाइनिंग हॉल में| जिस दौर में संस्थानों में जीएसकैश बनाने की बात चल रही है उस दौर में इस संस्थान में आईसीसी भी नहीं है|

इस संस्थान की ये घटना आम हो जाने से बेहद हलचल हुई| मासिक से जुड़े तमाम तरह के पुराने विवादों पर फ़िर से खुलकर चर्चा होने लगी| जो लोग पीरियड पर काम करते हैं उन्हें बार बार ये सुनना पड़ता है कि दुनिया में और भी समस्याएं हैं काम करने को| किसी आपदा के समय सबसे मुश्किल काम होता है मासिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना, लेकिन तब भी रीलीफ़ का काम करने वाले लोग मासिक स्वास्थ्य के सामानों के बारे में नहीं सोचते| जब लड़कियों से बात की गई तो उन्होंने कहा ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं है| प्रिंसिपल, वॉर्डन और एक टीचर के सस्पेंड हो जाने से भर वे संतुष्ट थीं और मामले को आगे नहीं ले जाना चाहती थीं| उन्हें हॉस्टल के नियमों को भी मानने में कोई समस्या नहीं थी| ये सब मासिक की भारतीय पितृसत्तात्मक समझ को दर्शाता है| इन सभी सवालों का जवाब दिये जाना ज़रूरी है| अगर हम अपने आस पास नज़र दौड़ायें तो हम देखेंगे कि मासिक को लेकर जहां एक तरफ़ कई लोगों में एक तरह के दैवत्व का भाव आया है तो वहीं कई लोग इसे एक कमज़ोरी की तरह देखते हैं|

लोगों के मासिक से जुड़े कई बुनियादी तथ्य नहीं मालूम होते और लोग मासिक से जुड़ी बातों से परहेज़ करते हैं| इन सब सवालों का सिलसिलेवार उत्तर देने पर हम समझ सकेंगे कि कैसे मासिक से जुड़े मिथक / भ्रम और विचार ना केवल महिलाओं और ट्रांस* व्यक्तियों की संसाधनों तक पहुंच सीमित करते हैं बल्कि यह भी समझ पाएंगे कि कैसे मासिक की गलत / अधूरी या गैर वैज्ञानिक जानकारी महिलाओं और ट्रांस व्यक्तियों के साथ होने वाली तमाम तरह की हिंसाओं का कारण बनती है| हम यह भी समझ पाएंगे कि कैसे इन गलत जानकारियों का इस्तेमाल ना केवल महिलाओं और ट्रांस व्यक्तियों के खिलाफ़ गुस्सा और डर पैदा करने के लिए किया जाता है बल्कि ये भी समझेंगे कि ये धर्म और पूंजीवाद का एक बेहद जहरीला गठजोड़ है|


आखिर लड़कियों को ये नियम क्यों स्वीकार थे और वे इसके खिलाफ़ क्यों नहीं बोलीं?

हम एक पितृसत्तात्मक ढांचे में रहते हैं जहाँ लड़कियों को बचपन से ही कई तरह के नियम मानने सिखाये जाते हैं| उन्हें हर कदम पर आगे बढ़ने के लिए ये बताना होता है कि उन्होंने पिछले सभी नियमों को माना है या नहीं| ऐसे में लड़कियों के मन में भी पितृसत्ता घर कर जाती है और वे इसी ढांचे को सही और प्राकृतिक मानने लगती हैं| इसके अलावा अगर लड़कियाँ किसी नियम को ना मानें तो उनसे उनके अधिकार छीने जा सकते हैं| सहजानंद कॉलेज में भी ऐसा ही हुआ| लड़कियाँ गरीब तबके से हैं और उनके पास कहीं और एडमिशन लेने के मौके नहीं थे यहां एडमिशन के लिए ये जरूरी था कि वे कॉलेज के नियमों को मानना स्वीकार करें| ऐसा ना करने पर उन्हें एडमिशन नहीं मिलता| लड़कियों को उनके घरों में भी उनके मासिक के बारे में नहीं बताया जाता या जो भी जानकारी दी जाती है वो शर्म और घिन्न से जुड़ी होती है| ऐसे में लड़कियों को ऐसे नियम मानने में ओई समस्या नज़र नहीं आई| असल सवाल ये होना चाहिए कि ऐसे नियम क्यों थे? स्वामीनारायण की वेबसाइट पर मासिक को लेकर एनर्जी सरीखी बातें लिखी हुईं थी, फ़िलहाल वो लेख गायब है| अगर हम धर्म के अंतर्गत मासिक को समझने का प्रयास करेंगे तो हमें मनु स्मृति से लेकर वेदों तक में इससे जुड़ी बातें मिल जाएंगी| ज़ाहिर है आम लोगों ने इन्हें नहीं पढ़ा होगा लेकिन इनमें लिखे अधकचरे ज्ञान का जो रिस रिस कर लोगों में ज़हर फ़ैला है वो मासिक से जुड़ी कई सामान्य भ्रांतियों के लिए ज़िम्मेदार है|

क्या ये अपनी तरह का पहला मामला है या इस तरह के और भी किस्से होते रहते हैं?

हलांकि हम ये तयशुदा तौर पर नहीं कह सकते लेकिन दुनिया भर में मासिक को लेकर कई तरह की हिंसाएं और भेदभाव होते रहते हैं| कई मालधारी समुदायों में मासिक के दौरान औरतों को रेत पर बैठना होता है जबकि कई अन्य समुदायों में लड़कियों के लिए मासिक के लिए अलग रहने की व्यवस्था की जाती है|

शबरीमाला मंदिर में औरतें मासिक को लेकर क्यों बवाल कर रही हैं?

ये सवाल एक नज़र में हो सकता है इस चर्चा के दौरान जरूरी न लगे लेकिन अगर हम देखें तो शबरीमाला और भुज की घटना को जो बांधता है वो है धर्म| धर्म हिंसा और भेदभाव का कारक है और उसी के निर्देश से भुज में या शबरीमाला में मासिक को लेकर इस तरीके की घटनाएँ सामने आती हैं| शबरीमाला पर पहले ही काफ़ी कुछ लिखा जा चुका है जिसे आप आसानी से गूगल कर देख सकते हैं| मुझे बस यहाँ पर ये जोड़ना है कि जो भी धार्मिक संस्थान सार्वजनिक ‍क्षेत्र में होंगे वे संविधान के अनुसार सबके लिए खुले होने चाहिए| ऐसा ना करना संवैधानिक अधिकारों का हनन है|

File photo of women in Kerala who formed a “woman’s wall” in support of gender equality, following protests against the Sabarimala verdict. | PTI

मासिक में खून के साथ / अलावा अलग अलग तरह के रंग का स्त्राव क्यों होता है?

मासिक के दौरान अगर अलग अलग रंग का स्त्राव हो तो घबराने की आमतौर पर कोई बात नहीं होती| मासिक के शुरु होते या खत्म होते वक्त खून गाढ़ा भूरा/ लाल या थोड़ा काला हो सकता है| ये सामान्य है और पुराना खून है| अगर खून एक्दम लाल हो तो भी कोई दिक्कत की बात नहीं है, ये ताजा खून है| यदि खून गुलाबी या हल्का लाल है तो इसे ‘स्पॉटिंग’ कहते हैं, ये दो मासिक चक्र के बीच में हो सकता है| अगर ये गुलाबी. हल्का लाल स्त्राव पानी जैसा है तो आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए| अगर स्त्राव स्लेटी रंग का है तो ये इन्फेक्शन के कारण हो सकता है, आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए| हालांकि मासिक के समय खून का रंग बदलना सामान्य है, आपको इसके गाढ़ेपन, मात्रा, प्रक्रिया चक्र और तकलीफ़ पर नज़र रखनी चाहिए और डॉक्टर से लगातार परामर्श लेते रहना चाहिए ताकि आप किसी भी तरह की समस्या से दूर रह सकें|

सभी लड़कियों को मासिक नहीं होता और जिन लोगों को मासिक होता है वे सभी लड़कियाँ नहीं होते|

जी, ये बात सुनने में अटपटी लग सकती है लेकिन ये सच है| कई लड़कियों को कई हॉर्मोनल या अन्य कारणों से मासिक नहीं होते, कई इंटरसेक्स और ट्रांस* लड़कियों/व्यक्तियों को भी मासिक नहीं होते| वहीं कई ट्रांस* और इंटरसेक्स लड़कों/व्यक्तियों को मासिक होते हैं| अगर जन्म के समय आपका जेंडर स्त्री करार दिया गया है और 16 बरस की उम्र तक आपको मासिक नहीं आए हैं तो आपको डॉक्टर से मिल लेना चाहिए| इसके अलावा गर्भ निरोधक गोलियाँ, ब्लॉकर्स या अन्य तरह के हॉर्मोन लेने से मासिक को रोका जा सकता है| इसके लिए आपको पहले डॉक्टर से परामर्श कर लेना चाहिए|

Cass Clemmer, who uses they/them pronouns, posted the photo of themself on Instagram on July 12, depicting them free-bleeding while holding up a sign that reads “Periods are not just for women #BleedingWhileTrans.”

कुछ लोगों में मासिक देर से शुरु होते हैं तो कुछ लोगों में मेनोपॉज़ 30 बरस से पहले भी हो सकता है, ऐसा क्यों?

हालांकि इसका कोई ठोस जवाब नहीं दिया जा सकता लेकिन ये कहा जा सकता है कि हमारा शरीर बेहद जटिल और इसके काम करने के तरीकों को अभी समझा ही जा रहा है| मासिक का देर से आना या जल्दी खत्म होना हॉर्मोन्स के कारण होता है| हालांकि आम तौर पर ये कोई समस्या नहीं है लेकिन तब भी आपको डॉक्टर से परामर्श करते रहना चाहिए|

क्या ट्रांसजेंडर महिलाओं में मासिक से जुड़े मानसिक और शारीरिक अनुभव होते हैं?

इस सवाल का जवाब थोड़ा जटिल है| जन्म के समय पुरुष करार दिए गए तमाम लोग इस खांचे में फ़िट नहीं बैठते| कुछ खुद की पहचान ट्रांसजेंडर महिला तो कुछ अन्य नामों से बताते हैं| ऑनलाइन उपलब्ध कुछ लेखों के अनुसार हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी शुरु होने के बाद कई ट्रांस* व्यक्ति मासिक से जुड़े मानसिक और शारीरिक अनुभव करते हैं| हालांकि इसपर कोई वैज्ञानिक शोध उपलब्ध नहीं है|

इंटरसेक्स लोगों, ट्रांसजेंडर पुरुषों, और जन्म के समय स्त्री करार दिए गए जेंडर नॉन-बाइनरी,  जेंडरफ़्ल्युइड, जेंडरक्वीयर और जेंडर नॉन-कन्फ़र्मिंग लोगों के लिए मासिक के अनुभव कैसे होते हैं?

सभी लोगों के अनुभव अलग अलग होते हैं| ये उनके डिस्फ़ोरिया और मौजूद सपोर्ट सिस्टम पर निर्भर करता है| कई के लिए ये सामान्य है तो कईयों के लिए ये परेशानी का सबब है|

आखिर ये सब जानना क्यों जरूरी है?

एक इंसान और ज़िम्मेदार नागरिक होने के तौर पर हमें ये समझना होगा कि सभी लोगों का बेहतर स्वास्थ्य एक बेहतर समाज के लिए जरूरी है| मासिक होने वाले लोगों और लड़कियों के स्वास्थ्य पर ध्यान ना दिए जाना अमानवीय है, मासिक उनके जीवन का एक अहम हिस्सा है और इसकी सही जानकारी उनतक पहुंचना ज़रूरी है ताकि वे बिना किसी हिचक और डर के अपने शरीर का ख्याल रख पाएं|

भारत जैसे देश में जहाँ शिक्षा का स्तर इतना कम है और लोग भूख और बिमारियों से मरते हैं इतने गहन ज्ञान की क्या जरूरत है?

शिक्षा का स्तर कम होने से मासिक होने वाले व्यक्तियों और लड़कियों तक सही जानकारी नहीं पहुंचती जिससे उनके खिलाफ़ हिंसा का माहौल बनता है| भूख और बिमारियों से मरने वाले लोगों में ट्रांस* व्यक्तियों और महिलाओं की गिनती करना बेहद ज़रूरी है क्योंकि इन्हें जानबूझकर सांसाधनों से वंचित किया जाता है जिससे ये भूख और बिमारियों के शिकार होते हैं|


हमें ये समझना होगा कि मासिक एक आम प्रक्रिया है और ना तो इसके दैवीकरण की आवश्यकता है और ना ही इसे छुपाने की| हम सबको साथ मिलकर मासिक से जुड़े बेहतर ज्ञान और सामग्री के लिए प्रयासरत रहना होगा|

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