बिहार का नाम सुनते ही लोगों के दिमाग में गरीब राज्य, पिछड़ा राज्य, अशिक्षित राज्य और न जाने क्या-क्या घूमने लगता है, जो की बहुत हद तक सत्य भी है। हम बिहार के लोग चाहे जितना भी अपने गौरवशाली इतिहास का दंभ भरे परंतु वर्तमान स्थिति में हम इन तथ्यों से मुंह नहीं मोड़ सकते। परंतु इन सब चीजों से अधिक जो चीज़ कष्ट देती है वो है बिहार में प्रति वर्ष बाढ़ की समस्या। कभी-कभी तो यहाँ के लोगों को एक ही वर्ष में बाढ़ की दोहरी मार झेलनी पड़ती है । साथ ही आपको बता दूँ कि बिहार में बाढ़ की समस्या यहाँ के लोगों के लिए नई नहीं है, तो फिर सवाल ये उठता है की आजादी के 73 सालों के बाद भी इस विकट समस्या का समाधान क्यों नहीं निकला है| इसका जवाब बहुत सरल है और जटिल भी – इसे आप सरकार और तंत्र की नाकामी समझ सकते हैं या फिर उनका समाधान न निकालने का दृढ़ निश्चय।
मैं इसके लिए सिर्फ सरकार को दोषी नहीं समझता। बिहार की सारी समस्याओं के लिए जितना दोष यहाँ की दोहनकारी राजनीति का रहा है उतना ही दोष यहाँ की जनता का भी है, जो हर बार अपने विकास के मुद्दों को छोड़ कर जात-पात का लॉलीपॉप पकड़ा देने पर खुश हो जाती है। बिहार एक ऐसा राज्य है जहाँ प्राकृतिक संसाधनों की कमी है| यहाँ कारखाने और फैक्ट्रीयां नहीं हैं। यहाँ की बहुत बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर रहती है| प्रत्येक वर्ष बाढ़ के कारण किसानों को जो क्षति होती है उसका उल्लेख करना मुश्किल है। इन्ही सब वजहों के कारण बिहार के लोग नई संभावनाए तलाशने के लिए बिहार से पलायन करते हैं परंतु कोरोना महामारी के कारण प्रवासी लोगों की स्थिति और दयनीय हो गई है।
बिहार भारत का सबसे ज्यादा बाढ़ ग्रस्त राज्य है, जिसमें उत्तर बिहार की 76 फीसद आबादी हर साल बाढ़ की तबाही के खतरे में जीती है। बिहार भारत के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 16.5% और भारत की बाढ़ प्रभावित आबादी का 22.1% हिस्सा है। बिहार के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 73.06% बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। वार्षिक आधार पर, बाढ़ के कारण पशुधन और लाखों रुपये की संपत्ति के अलावा हजारों मानव जीवन भी नष्ट होते हैं| उत्तर बिहार के जिले मानसून के दौरान, पांच बड़ी बाढ़ पैदा करने वाली नदियों की चपेट में हैं – महानंदा, कोशी (बिहार का शोक), बागमती, बूढ़ी गंडक और गंडक जो नेपाल से निकलती है। दक्षिण बिहार के कुछ जिले सोन, पुनपुन और फल्गु नदियों से बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं।
हिमालय से निकलने वाली ये नदियां नेपाल और तिब्बत से होते हुए बिहार में प्रवेश करती है। अत्यधिक पेड़ों की कटाई एवं उन क्षेत्रों का खेती में उपयोग होने के कारण वहाँ की मिट्टी भी तेज़ी से कट रही है जिसके कारण नदियों में अधिक गाद और समय के साथ उनके वहन करने की क्षमता काफी कम हो गई है। नेपाल और तिब्बत में भारी वर्षा के साथ संयुक्त कारक सीधे इन नदी प्रणालियों के प्रवाह को प्रभावित करते हैं। बीते वर्षों की प्रवृत्ति से पता चलता है कि बिहार के मैदानों में बाढ़ की आवृत्ति बढ़ गई है। हर वर्ष बाढ़ के कारण जनजीवन का विनाश, कृषि, निवास और बुनियादी ढांचा बुरी तरह प्रभावित होता है।
उत्तर बिहार के मैदानी इलाकों में बाढ़ का प्रमुख कारण है राज्य के भीतर सपाट इलाके| बरसात के मौसम में भारी बारिश नदियों में पानी के स्तर को काफी बढ़ा देती है। हिमालय की नदियों में न्यूनतम और अधिकतम प्रवाह के बीच का अंतर काफी उच्च होता है। इस प्रकार राज्य की भौगोलिक सेटिंग हाइड्रोमेटोरोलॉजी व जलविज्ञान, भूरूप विज्ञान के साथ मिलकर इस क्षेत्र को सबसे अधिक बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में से एक बनाता है।
बिहार में बाढ़ का दौरा लगभग हर साल गंभीर रूप से संपत्ति (चल और अचल), खड़ी फसलों और खाद्यान्न को नष्ट कर देता है और बुनियादी सुविधाओं को बुरी तरह से कमज़ोर बना देता है। बाढ़ की वजह से जान और माल के नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती। हालांकि आर्थिक रूप में इसकी कीमत कई करोड़ है। बाढ़ अपने साथ अनकहे दुख और निराशा लेकर आती है। लोगों को अपने क्षतिग्रस्त घरों को छोड़ना पड़ता है और राहत शिविरों, प्लेटफार्मों या अस्थायी आश्रयों में एक लंबा समय बिताना पड़ता है।

बिहार में बाढ़ का असर
बिहार भारत के उस राज्य में से एक है जिसकी अर्थव्यवस्था मोटे तौर पर या तो कृषि पर या कृषि कार्यों पर निर्भर करती है। बिहार की जनसंख्या में से 78% आबादी कृषि और उससे संबद्ध गतिविधियों में शामिल है। बिहार सरकार के आँकडों के अनुसार 73% किसान छोटे या मध्य वर्गीय किसान हैं जो न केवल अपनी भूमि पर खेती करते हैं बल्कि कृषि श्रम के रूप में भी कार्य करते हैं। इसलिए यहाँ की सामाजिक-आर्थिक स्थिति मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र पर निर्भर है।
भौगोलिक दृष्टि से उत्तरी बिहार में बाढ़ का खतरा ज्यादा है क्योंकि यहाँ बड़ी संख्या में नदियां हैं जो हिमालयन बेसिन का पानी ढोती हैं। बाढ़ की घटना में हर वर्ष लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि जलमग्न हो जाती है और गाद हो जाती है। कुछ परिणामी वर्षों के लिए वह भूमि कृषि योग्य नहीं रहती और उन्हे छोड़ना पड़ता है। कई हेक्टेयर भूमि क्षीण हो जाती है और घर में संरक्षित अनाज नष्ट हो जाता है जिस कारण कई छोटे और मध्य वर्गीय किसान भूमिहीन की श्रेणी में परिवर्तित हो जाते हैं। कमज़ोर परिवारों की महिलाएं कृषि श्रम के रूप में काम करती हैं लेकिन बाढ़ के कारण यह गतिविधि भी पूरी तरह से बंद हो जाती है। इसके अलावा जिन किसानों की फ़सल नष्ट हो जाती है, उनके पास अपने क्षेत्र को परती रखने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचता।
बिहार राज्य में बाढ़ एक बारहमासी समस्या है| यह लोगों के जीवन, संपत्ति और आजीविका पर विनाशकारी प्रभाव डालता है। बुनियादी ढांचा प्रभावित होने के कारण यह उद्योग क्षेत्र को भी बुरी तरह प्रभावित करता है। हालांकि, बार-बार बाढ़ के कारण राज्य में कृषि और सम्बंधित क्षेत्रों का विकास दर दयनीय है लेकिन अभी भी कृषि बिहार के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
बाढ़ से पूरी तरह बचना संभव नहीं है, लेकिन इस तैयारी को विकसित किया जा सकता है जा और इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। उचित योजना और प्रबंधन के साथ असमान प्रवृत्ति को रिवर्स करना संभव है।
बाढ़ के नकारात्मक परिणामों को कम करने के लिए, बाढ़ प्रबंधन कार्य एवं संरचनात्मक ढांचाओ का निर्माण करना होगा। लेकिन अकेले यह काफी नहीं होगा। तो वहां गैर संरचनात्मक विधियों को अपनाने की जरूरत होगी। जैसे प्रबंधन उपाय, बाढ़ की भविष्यवाणी और चेतावनी, बाढ़ प्रूफिंग और आपदा से बचाव, तैयारी और प्रतिक्रिया तंत्र अपनाया जाना चाहिए। समुदाय को बाढ़ के खतरे के बारे में जागरूक करना एवं उनकी भूमिका की एक स्पष्ट समझ के साथ उनको आपातकालीन स्थितियों के लिए तैयार करना चाहिए।
हर साल हेलिकोपटर में बैठ कर सर्वेक्षण करने, हाथ हिलाने और रोटी फेकने से हमारी समस्याओं का निदान नहीं निकलने वाला, ये बात हमें समझनी होगी और हुक्मरानों को समझानी भी होगी। आश्वाशन और सहानुभूति अपनी जगह है लेकिन अब समस्या का हल चाहिए।
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