नीता (लेखिका) तस्वीर के बीच में एक समुदाय परामर्श / जांच सत्र में
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों से मिलाकर बने क्षेत्र को बुन्देलखण्ड कहते है। आज भी यहां बहुत सारी लोक परम्पराओं का चलन है। गांवों में आज भी बहुत से ऐसे स्थान हैं, जहाँ महिलाओं के जाने में मना ही है। पुरूषों के साथ महिलायें बराबरी से नही बैठती है। ऐसी व्यवस्था के बारे में बहुत सारे लेख आसानी से पढने को मिल सकते हैं। फिल्मों में भी कई दफा प्रथाओं और कुप्रथाओं को दिखाया गया है। ऐसी ही एक लोक व्यवस्था हैबंधेज।
बंधेज ज्यादातर ऐसी महिलाओं के लिए किया जाता है, जिन्हें गर्भधारण करने में देरी या किसी प्रकार की परेशनी का सामना करना पड़ रहा हो, जैसे – की गर्भपात हो या गर्भधारण न हो रहा हो, इस अवस्था में महिला पर बंधेज लगाया जाता है। जिस भी महिला पर ये बंधेज लगता है, उसे इस बंधेज के नियमों का पालन भी करना पड़ता है। देवता की अनुमति के बिना महिला कोई दवाई नहीं खा सकती है। घर से बाहर नही जा सकती है। कोई और महिला उसे छु नहीं सकती है। ऐसे में उस महिलाको कई माह घर के अन्दर ही बिताने होते हैं। वैसे ये भी एक प्रकार लाकडाउन ही है।
आज हम श्यामवती से मिले; उसने बताया की मेरी गर्भावस्था के नो माह पुरे हो चुके है। जब हमने श्यामवती से पुछा की इसे पहले आपके कितने बच्चे है। उन्होंने बताया की मेरे दो बच्चों थे। पहला बच्चा छः माह में पैदा हुआ था। कम समय का बच्चा था तो ख़त्म हो गया। और दुसरा बच्चा भी गर्भवस्था के पांच माह के बीच में ही मरा पैदा हुआ था। उस बच्चे के कुछ माह के बाद से ही मेरा महीना (पीरियड) नहीं आया है। मेरे परिवार के लोगों ने मेरा बंधेज भी कराया है। और देवता ने कहा है की में गर्भवती हुँ।
प्रोजेक्ट कोशिका पन्ना टाईगर रिजर्व के दस गांवों में महिलाओं एवं बच्चोंके स्वस्थ पर काम कर रही है। महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में और समझ बनाने के उदेश्ये से टीम कोशिका भी हर माह के टिकाकरण दिवस में शामिल होती है। इस टीकाकरण में गांव की महिलाऐं और बच्चे शामिल होते है। यँहा उनकी जाँच होती है, और उन्हें टिका लगाया जाता है। श्यामवती जी भी अपना चेकअप करने ले लिए आई थी। अक्सर अनुभवी महिलाओं जैसे एएनएम, दाई गर्भवती महिलांओं के पेट का आकर देखकर ही अनुमान लगा लेती है। लेकिन श्यामवती को देखने से लग ही नहीं रह था, की वो नो माह की गर्भवती है? क्योकि गर्भवती के पेट का जो उभार होना चाहिये, उसमें वो दिख नहीं रह था। जब श्यामवती पूछा की आप याद कीजिये की अन्तिम माहवारी कब हुई थी, जो भी उसने बताया उसके अनुसार नो माह हो चुके थे। तब श्यामवती ने घुसे से कहा की “मेरा बच्चा पीट में है! इस कारण मेरा पेट दिखता नहीं है। मेरा बंधेज भी हुआ है, और देवता ने कहा है की बच्चा है।“

मासिक धर्म शादी के बाद अगर किसी महिला का (पीरियड) नहीं आया, तो उनके दिमाग में एक अलार्म शुरू हो जाता है क्या में गर्भवती हुँ? यह प्रश्न आता ही जाता है। आज के समय में लगभग महिलांओं को यह जानकारी होती है, की एक किट होती है जिसे हम (pregnancy test kit) कहते है। इस के उपयोग से पता किया जा सकता है महिला गर्भवती है या नहीं। लेकिन आज भी गांव में महिलाएँ इन तरीकों के बारे में जानकारी नहीं रखती है, अगर पीरियड नहीं आया है तो वे मान लेती है की वो गर्भवती है। लेकिन ये कितना सही है इसकी पुस्टि तो डॉ. ही कर सकते है …
कोशिका टीम टीकाकरण दिवस पर हर गर्भवती महिला के साथ वन टू वन कन्सिलिंग करते है। श्यामवती को भी आज कन्सिलिंग में किसी तरह से समझा की आपको एक बार महिला डॉ. को दिखाना चाहिए। जिसे कम से कम आपको यह पता चलेगा की बच्चा पेट मे ठीक है या नहीं, श्यामवती ने कहा की में देवता से पूछने के बाद ही डॉ. दिखा पाउंगी। कुछ दिनों के बाद श्यामवती अपने पति के साथ डॉ. के पास गई; यहाँ उसकी सोनोग्रफी की रिपोर्ट के अनुसार श्यामवती गर्भवती नहीं थी। डॉ. ने टेस्टों के अनुसार बताया की श्यामवती को हॉर्मोंनल प्रॉब्लम है। इस वजह से उनका लगभग 10 महीनो से माहवारी नहीं आई थी। डॉ. ने दोनों पति – पत्नी को समझाया और कुछ दवाईयाँ लेने के लिए कहा। लेकिन उन दोनों कोई दवाई नहीं ली क्योंकि उन्हें विश्वास था, की देवता ने कहा है तो बच्चा है। जब की श्यामवती को भी पता था, की 10 महीने की कोई गर्भवस्था नहीं होती है।
मुझे लगता है की महिला कोई भी हो – माँ बनना उसके लिए एक सुखद पल होता है, या फिर दबाब। क्योकि अगर माँ नहीं बन पा रही तो आसपास के लोग ही उस महिला को अलग नजरिये से देखने लगते है। शायद इसी लिए हर हाल में माँ बनना जरूरी होता होगा।
बंधेज के बारे में जितना भी अभी तक समझ पाई हुँ, मुझे लगता है कम उम्र में शादी, शारीरिक कमजोरी और इतने कामों के बीच गर्भावस्था कितनी कठिन होती होगी हम केवल उसका अंदाजा ही लगा सकते हैं। ये समझने के लिए हमें महिलाओं की दिनचर्या को और उनके परिवार की आजीविका में महिलाओं की भूमिका को समझना होगा। इन परिवार की सुबह लगभग सूर्योदय के साथ हो जाती है। और उसमें महिलाओं की सुबह सब से पहले होती है। हम में से अधिकांश के लिए तो ये समय आधी रात जैसा ही होता है। यँहा सुबह उठ कर पहले चाय नही मिलती है, बल्कि खेती और मवेशियों का ध्यान रखा जाता है। ये काम पुरुष नहीं करते है। फिर चूल्हा पोतना, तब कही चाय का नम्बर आता है। चाय के बाद पानी भरना, घर की झाडू, लिपाई, आदि का काम करके सभी के लिए खाना बनता है। मजदूरी या लकडी बेचने वाले परिवारों की महिलाओं के दिन भी सुबह से शाम तक भागते हुए ही निकल जाते है। इन सब के बाद आवश्यकता अनुसार खेतों के कामों में भी महिलायें मदद करती है।
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