सामाजिक कार्यक्षेत्र मे कार्यरत साथियो के अनुभवो मे शायद ये अनुभव शामिल हो सकता है कि अमूमन कुछ लोगो मे ये जानने की जिज्ञासा या प्रतिक्रिया होती है जहाँ वो शायद ये जानने-समझने की कोशिश मे रहते है की आखिर NGO काम क्या करते है ? क्या वास्तव में इनका प्रभाव पड़ता है? प्रभाव दिखता कहा है? समाज वैसा ही है जैस कल था ? साथ ही बहुतायत लोगो द्वारा सतही तौर पर या यु कहे कि कुछ विसंगत अवलोकनों और खबरों के प्रभाव के वजह से जल्द ही किसी निष्कर्ष पर पंहुच जाते है, उदाहरणस्वरूप:- आज की महिलाऐं तो बहुत जागरूक है आगे बढ़ चुकी है कोई दिक्कत होने पर थाने खुद चली जाती है तो क्यों करते है ये सशक्तिकरण ? … इन सवालो और प्रतिक्रिययो की जद्दोजहद का दौर खुद मेरे अनुभवो मे भी शामिल रहा है, जहा खुद को किसी सामाजिक मुद्दे को उसके ऐतिहासिक जड़ो से खोलते हुए वर्तमान परिस्थितियो से रूबरू कराते हुए उसकी जरूरत और संवैधानिक मूल्यो से जोड़ते हुए लोगो की जिज्ञासा/प्रतिक्रिययो को संतुष्ट करने की कोशिश होती थी।

इन सारे सवालों का कुछ दिनों पहले तक मेरे पास भी कोई ठोस जवाब नहीं था, या मेरे पास ऐसे प्रत्यक्ष अनुभव नहीं थे | खुद को नए आयाम देने के उद्देश्य से नए सफर की शुरुवात 7 अगस्त से हुई , जब मै अपनी होस्ट ऑर्गेनाइजेशन, बिहार में सिवान जिले के जीरादेई ब्लॉक के नरेन्द्रपुर गावं में  स्थित ‘परिवर्तन’ संस्था से जुड़ती हूँ। शहर से 20km दूर ऐसा स्थान जहाँ चारो तरफ हरियाली और सुन्दरता है |

परिवर्तन संस्था सिवान जिले के 45 गावं में कई मुद्दों पर काम करती है, जैसे- शिक्षा, महिला समाख्या, खादी, कृषि, रंगमंच, कौशल विकास | मै संस्था में महिला समाख्या के साथ प्रत्यक्ष रूप से जुडी हूँ | महिला समाख्या एक सरकारी कार्यक्रम है जो नई शिक्षा निति के अंतर्गत महिलाओं के विकास और बराबरी के दर्जे के उद्देश्य से शुरू किया गया था | इसके अंतर्गत गावं में महिलाओं के समूह बना कर सहयोगिनी व्दारा शिक्षा, स्वास्थ्य, घरेलु हिंसा, पंचायती राज, आर्थिक सशक्तिकरण के विषय पर चर्चा करते हुए जागरूकता फैलाई जाती है | ‘सहयोगिनी’ वह महिला है जो इस कार्यक्रम को सुचारू रूप से चलने के लिय क्षेत्रीय कार्यकर्ता के रूप में नियुक्त की जाती है जो विभिन्न समूह की बैठक करवाती है | परिवर्तन में इस कार्यक्रम के लिय 13 सहयोगिनी है जो 118 समूह को संभालती है |

जब में इन सह्योनिगीयो से पहली बार मिली तो बातों के दैरान महिला समाख्या से जुड़ने के बाद के अनुभव बताए तो सभी के चहरो पर एक अजीब सी ख़ुशी साफ़ दिखाई पड़ रही थी | मै अचंभित रह गई जब उन्होंने बताया की वे महिला समाख्या से जुड़ने के पहले घर से बाहर भी नहीं निकलती थी उन्हें आस-पास की सड़क, गावं, पंचायत आदि कुछ भी नहीं पता था, पर्दे के पीछे रह कर सिर्फ घर का काम और घर वालो की सेवा करती रहती थी, यदि आत्म सम्मान, इज्जत कि बात करे तो इन सब के बारे में तो सोचा भी नहीं था | पर महिला समाख्या से जुड़ने के बाद का अनुभव राजवती जी ने बताया की “”महिला समाख्या से जुड़कर मै आज़ाद हो गई हूँ”, बाकियों ने भी चर्चा की वे इससे मिलने वाले सम्मान से बहुत खुश है और सरकारी योजनाओ के साथ आस-पास की भी जानकारी उनके पास है, जिससे उन्हें इज्जत भी मिलती है |

हाल ही में एक घटना हुई जिसमे गावं में दो जातियों के बीच झगडे का कारण बना उनके बच्चो का प्रेम प्रसंग, लड़की के भाई को पता चलने पर लड़के के पिता को बांधकर बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया साथ ही लड़के को खोजने लगा और लड़के का परिवार कुछ नहीं कर पा रहा था, क्योकि इस ऊच-नीच की जाति प्रथा में वे निम्न जाति में आते है | गाँव वाले लड़की के भाई की धमकियों के डर से न आगे आने कि पहल कर रहा थे न ही पुलिस को खबर दे रहे थे | लड़के कि माँ महिला समाख्या समूह में है इसलिय उन्होंने किसी तरह बाकि सखी(समूह की अन्य सदस्य) तक खबर पहुचाई, सखियों के पहुचने पर साथ मिलकर लड़के के परिवार को सुरक्षित किया तथा मामला शांत करवाया | यदि ये महिलाएं समय पर पहुँच कर हस्तक्षेप नहीं करती तो निश्चित ही किसी कि जान जा सकती है | द्रश्य बिलकुल किसी हिंदी फिल्म कि तरह था, जिसमे लड़की के परिवार वाले गुन्डे और महिला समाख्या हीरो के रोल में थी | मैंने इस मामले को जितनी आसानी से लिख दिया है ये कही ज्यादा गंभीर था |

ये तो एक मुद्दा है, इसे लगभग हर गावं में इस तरह के कई मुद्दे होते रहते है, जैसे- किसी के पति ने पत्नी को छोड़ दिया है, कोई ससुराल वालो की हिंसा से पीड़ित है, किसी के पति ने दूसरी शादी कर ली है, जात-पात को लेकर शोषण आदि जिसके विरोध में अब महिलाएं मिलकर कदम उठाती है | मै अचरज मै हूँ की महिला समाख्या आने के पहले इन समस्याओ का क्या होता था ? क्योकि पहले कोई भी समस्या होती थी तो महिलाएं अकेली होने के कारण चुप होती थी और बेज्जती के डर से उनका साथ मायके वाले भी नहीं देते थे | महिला समाख्या से जुड़ने के बाद महिलाओ में कितनी जागरूकता आई है यह जानने के लिय आने वाले दिनों में मै गहराई से समझने का प्रयाश करुगी | परन्तु समूह मे होने से महिलाओ मे अभिप्रेरणा बढ़ती है, जिससे महिलाए खुद की बेहतरी के लिए समस्या अनुरूप अपनी बात रख पा रही है और आवाज़े उठा रही है। तो ये है परिवर्तन | सिर्फ इतना ही नहीं मुझे हर क्षेत्र पर इसका प्रभावात्मक रूप देखने मिला है | और अब मेरे पास कई उदाहरण है |

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