हम जीवन में सब कुछ प्राप्त नहीं कर सकते, और न ही दुनिया में अनगिनत लोगों के अनुभवों को पूरी तरह से पढ़, सुन या जी सकते हैं। हम इतनी बड़ी दुनिया में अगर चाहें कि सभी लोगों से एक बार मिल लें, तो भी यह एक जिंदगी में संभव नहीं है। इसलिए आप जहां भी हैं, जिस काम में भी हैं, उसे भरपूर जीने की कोशिश करें। क्योंकि यदि आप अपने बगीचे के गुलाब से ही अनुभव लेने लगें, तो आपको पता चलेगा कि केवल गुलाब की ही 180 प्रकार की प्रजातियाँ हैं। और यदि आप गुलाबों में और गहरी रुचि लेने लगें, तो आपको यह भी पता चलेगा कि गुलाब की पंखुड़ियों का लाल रंग एंथोसाइनिन और उसकी खिली हुई सुंदर पीली पंखुड़ियों के रंग कैरोटेनॉइड्स की वजह से आता है। इसमें आप जितनी भी आप गहराई में जाएं, आपको उतने ही नए अनुभव मिलते जाएंगे।
काम में ही ज्ञान है
जी हाँ, मैं विज्ञान की ही बात कर रहा हूँ। विज्ञान इतना ही आसान और सामान्य है। हमारे आस-पास मौजूद हर सजीव और निर्जीव वस्तु में विज्ञान है, हमारे पास बस उसे देखने की नज़र होनी चाहिए। मैंने विज्ञान को इतने सामान्य तरीके से तब जाना जब इंडिया फैलो की तरफ से मुझे विज्ञान आश्रम के साथ काम करने का मौका मिला, और यहाँ आकर मैंने समझा कि काम करने में ही ज्ञान छुपा हुआ है।

महाराष्ट्र के पुणे शहर से 70 किलोमीटर दूर, पाबल गाँव में स्थित एक आश्रम है जहाँ आप भारतीय संस्कृति के साथ-साथ ज्ञान, विज्ञान, और तकनीक से भी रूबरू होंगे। तो चलिए, हम विज्ञान आश्रम की एक यात्रा पर चलते हैं।
मेरी नज़र से विज्ञान आश्रम
आश्रम प्राचीन और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान का संगम स्थल है। गाँव की मुख्य सड़क से विज्ञान आश्रम के मेन गेट की तरफ बढ़ते हुए गेट से कुछ कदम पहले ही एक बड़ा लोहे और जाली से बना ढांचा रखा दिखाई देता है। दरअसल, यह एक प्रकार का ड्रायर है, जो खाद्य पदार्थों को सुखाने के लिए प्रयोग किया जाता है। बाद में मुझे पता चला कि यह आश्रम यहाँ के युवाओं द्वारा ही डिज़ाइन करके बनाया गया है। थोड़ा आगे पहुंचा तो गेट के बायीं तरफ एक विशाल दो मंज़िला भवन है। इसमें युवाओं के सीखने के लिए कंप्यूटर लैब, एक डिजाइन इनोवेशन लैब, और एम्ब्रॉइडरी एंड फैशन डिजाइनिंग लैब हैं।

इसी भवन में नीचे के तल पर आश्रम का प्रशासनिक कार्यालय बना हुआ है, जहाँ से आश्रम के सभी आर्थिक और सामाजिक कार्यों का संचालन होता है। कार्यालय के बिल्कुल पीछे भोजनालय (मेस) है। मेरे एक सहकर्मी महेश जी, जो मुझे गेट पर मिले थे, उनसे मैंने जाना कि किचन को इस तरह व्यवस्थित किया गया है जिससे हर व्यक्ति के खाने की मात्रा और उनकी उपस्थिति-अनुपस्थिति का ख़ास ध्यान रखा जाए। रोज़ का ब्यौरा एक बोर्ड पर लिखा जाता है जिससे भोजन की बर्बादी को रोका जा सके। इसी के पास में फूड प्रॉसेसिंग लैब है जहाँ युवा तमाम तरह के खाद्य पदार्थों और पकवानों को बनाने की विधियाँ सीखते हैं।

थोड़ा आगे चलते ही आपको एक बड़ा सा हॉल दिखेगा जो यहाँ का मैन्युफैक्चरिंग प्लांट है। इसमें एक मेटल वर्कशॉप है, जहाँ युवा आधुनिक उपकरणों और मशीनों के द्वारा मेटल स्ट्रक्चर और डिज़ाइनिंग सीखते हैं। हॉल में ही ऊर्जा एवं पर्यावरण की लैब है, जहाँ विद्युत ऊर्जा, सौर ऊर्जा, तापीय ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण के शोध कार्य होते हैं।
इसी हॉल के अंदर अमेरिका की MIT यूनिवर्सिटी द्वारा स्थापित एक एडवांस फेब्रिकेशन लैब है, जहाँ आसान भाषा में लेज़र कटिंग, 3D प्रिंटिंग और मॉडलिंग जैसे कई कोर्स सिखाए जाते हैं।
सपनों का घर
हॉल से बाहर निकलकर थोड़ा आगे चलते ही आपको एक छोटी सी कुटीर दिखेगी, ये आश्रम के बीचों-बीच बनी है, और इसका नाम है ड्रीम हाउस। ये ड्रीम हाउस पूरे आश्रम का हृदय है। यहाँ ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों से आए वे समावेशी युवा जो शिक्षा से वंचित और स्कूल छोड़ चुके हैं, समाज की आधुनिकता से अवगत नहीं हैं, हर वर्ष बैठकर आसमान में उड़ने के सपने देख पाते हैं।
मयूर उनमें से एक है, जिसे गणित और विज्ञान बिल्कुल समझ में नहीं आते, पर वो आधुनिक खेती की सभी तकनीकों को अच्छी तरह सीख रहा है। यहां पर ये युवा अपने पैरों पर खड़े होने का आत्मविश्वास इसलिए जगा पाते हैं क्योंकि ये अपने आस-पास विज्ञान और तकनीकी के जीवंत उदाहरणों को देखकर खुद को उत्साहित और आत्मविश्वास से भरा हुआ महसूस करते हैं।

ड्रीम हाउस के पास ही प्रदेश की आधुनिक लैबों में से एक कृषि विज्ञान की माइक्रो-बायोलॉजी लैब है, जहां पॉलीहाउस, हाइड्रोपॉनिक और एक्वापॉनिक जैसी अत्याधुनिक कृषि तकनीकों पर शोध किए जाते हैं। इससे थोड़ी दूरी पर पशुपालन विभाग है, जिसमें नई नस्लों तथा उनके चारे और रखरखाव की नई पद्धतियाँ विकसित की जाती हैं।
मैंने जब अपने काम की शुरुआत की, तो मुझे यहाँ कई नामों की सूची मिली, जिसमें देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय IIT मद्रास के छात्र से लेकर दूर ग्रामीण परिवेशों से आए युवाओं की सफलता शामिल है। इनमें से एक छात्र है सिद्धेश, जो दसवीं पास है। उसने 2019 में यहाँ मेटल फैब्रिकेशन सीखा था और आज वह पुणे में अपना खुद का मेटल वर्कशॉप चलाता है।
एक और छात्र अनिल भी है, जिन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी लेकिन उन्होंने आश्रम में ही खुद को बेहतर बनाने का रास्ता चुना है। मैं जब पहली बार अनिल से मिला, तो वे यहाँ युवाओं को कुछ सिखा रहे थे। उनसे बातचीत शुरू हुई और पता चला कि वे वर्ष 2008 में यहाँ पढ़े हैं और आज पुणे में कृषि मशीनों की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट चला रहे हैं। अनिल अब हफ्ते में दो दिन आश्रम में पढ़ाने और युवाओं को मशीनों की मूलभूत जानकारी देने के लिए आते हैं। विज्ञान आश्रम ने ड्रीम हाउस में बैठने वाले कई युवाओं के सपनों को साकार किया है।
I want to sit in the dream house too!