लंबी बीमारी क्या है
लंबी बीमारी वह होती है जिसमें मरीज़ को कुछ महीने, कुछ साल या कभी-कभी पूरी जिंदगी भर के लिए दवाई खानी होती है। लंबी बीमारियों के कई कारण होते हैं, जिनमें बहुत सारे कारण आनुवांशिक होते हैं या फिर कई बार किसी बीमारी के समय पर न ठीक होने के कारण वह लंबी बीमारी बन जाती है। इनमें डायबिटीज़, उच्च रक्तचाप, टीबी, मानसिक तनाव, हाईपरटेंशन, थायरॉयड, हड्डियां कमज़ोर होना आदि शामिल हैं। ऐसे बीमारियाँ अधिकांश धीरे-धीरे शरीर के अंगों में नुकसान पहुचाती हैं। कई बार हमें लगता है कि लंबी बीमारियाँ सिर्फ शहरी लोगों में होती हैं, और हम ये समझ ही नहीं पाते कि गांवों में भी ऐसा हो रहा है।
गांवों में इन सभी बीमारियों से कई बार लोगों की मृत्यु भी हो जाती है लेकिन पता नहीं चल पाता है। कई बार इसे अंधविश्वास भी मान लिया जाता है। इन बीमारियों में मरीज को कई बार कोई लक्षण नहीं होते हैं जिसके कारण वह अपनी जाँच नहीं करवाते हैं। अगर जाँच करवाते भी हैं तो अक्सर वह दवाई नहीं लेते या उसे जारी नहीं रखते हैं। ज़्यादातर लोग थोड़े दिन या महीनों तक दवाई लेने के बाद या तो कुछ लक्षणों में सुधार होने पर या फिर स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच नहीं होने के कारण दवाई छोड़ देते हैं। और जीवन भर दवाई लेने की घबराहट भी कुछ लोगों को पीछे छोड़ देती है।
एक उदाहरण
जैसे कुछ दिन पहले, एक 25 वर्षीय पुरुष हमारे क्लीनिक पर आए। जब वे आए, तब उनको पसीना आना, भूख ज़्यादा लगना, पेशाब बहुत आना और बार-बार बुख़ार आना, ये समस्याएं थीं। जब उनका चेकअप किया गया और खून की जांच की गयी, तो हमारी टीम ने पाया की उनकी शुगर ज़्यादा थी। पूछने पर उन्होंने बताया की उन्हें पहले शुगर की बीमारी के बारे में नही पता था। उनके साथ बातचीत की गयी, बीमारी के बारे में बताया और दवाई भी दी, लेकिन एक बार दवाई लेने के बाद वह वापस नहीं आए, क्योंकि शुगर की बीमारी में कई बार लम्बे समय तक कुछ भी लक्षण नहीं होते हैं।
कुछ दिनों बाद, उन्हें वापस क्लीनिक पर बुलाया गया। दवाई नहीं लेने के कारण पूछने पर, उन्होंने बताया की वह काम के लिए बाहर गए हुए थे। साथ ही, उन्हें लगा था कि दवाई नहीं लेने पर भी उन्हें कुछ फायदा नहीं हो रहा है। इस पर फिर से उनके साथ बातचीत की गयी और बीमारी की जटिलता के बारे में बताया। अभी वह दवाई ले रहे हैं, लेकिन कुछ समय तक लगातार उनके साथ फॉलो अप बनाए रखना ज़रूरी है क्योंकि लंबी बीमारी में मरीज को मानसिक रूप से भी सपोर्ट की जरूरत होती है। मरीज को डॉक्टर और नर्स के ऊपर विश्वास होना जरूरी है। हमारे लिए दवाई देने के साथ-साथ उनकी पर्सनल व घर की स्थिति के बारे में जानना भी महत्वपूर्ण होता है।
लेकिन जब भी मरीज दवाई छोड़ने के कुछ दिन बाद वापस लौटते हैं, तो या वे बुरी स्थिति में होते हैं या फिर कुछ और लक्षण के साथ आते हैं। इन सभी स्थितियों में मरीज का साथ बनाए रखना खूब मुश्किल है। ये सब स्थितियां हमें बहुत बार सोचने पर मजबूर करती हैं कि किस प्रकार हम लोगों का साथ बनाए रख सकते हैं। कई बार लोग सिर्फ मामूली जानकारी या पैसे के अभाव के कारण नहीं जुड़ पाते हैं।
कुछ पहल
बीएचएस ने ग्रामीण क्षेत्रों में फिज़िओथेरेपी की शुरुआत की है, क्योंकि गांवों में भी फिज़िओथेरेपी की आवश्यकता महसूस की जाती है। गांव के लोग इसके लिए शहर नहीं जा पाते हैं जबकि उन्हें पुराने दर्द, चोट और कई बार हड्डी के फ्रैक्चर होने पर भी इलाज नहीं मिल पाता जिससे बाद में दर्द होता है और परेशानी बढ़ जाती है। इसी तरह कई बार टीबी के कारण फेफड़े कमजोर हो जाते हैं और इस स्थिति में श्वास संबंधी समस्याएं होती हैं, जिन्हें कसरत से सुधारा जा सकता है। उम्र के साथ घुटनों के दर्द के लिए भी कसरत ज़रूरी हो जाती है।
लेकिन, गावों के लोगों के लिए फिज़िओथेरेपी नया विषय है, इसलिए कई बार जब उनसे कहा जाता है कि वे कसरत करें, तो वे हंसते हैं या कहते हैं कि “हम पूरा दिन काम ही करते हैं“। कुछ कसरतें बताने पर उन्हें आराम महसूस होता है और फिर वे उसे नियमित रूप से करते हैं।

बीएचएस ने मेंटल हेल्थ प्रोग्राम भी शुरू किया है, क्योंकि गांवों में बीमारियों का कारण कई बार घरेलू हिंसा या तनाव होता है, जिसके कारण मरीज पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाते हैं। गांवों में बीमारी होने पर लोग मरीज के घर आना-जाना बंद कर देते हैं, साथ ही कई बार उन्हें घृणा की नजरों से देखा जाता है। कई बार बीमारी के कारण मरीज का परिवार भी उनका साथ छोड़ देता है। इसलिए, मरीज को मानसिक सहायता भी चाहिए।
अंतिम रूप से, हमें स्वीकार करना होगा कि शहरों और गांवों के बीच स्वास्थ्य सेवाओं में मौजूद असमानताओं को दूर करने के लिए अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। बीएचएस के प्रयास एक उज्ज्वल उदाहरण हैं, जो दिखा रहे हैं कि कैसे हम शहरी-ग्रामीण गैप को भर सकते हैं और हर व्यक्ति को उचित स्वास्थ्य सेवाएं पहुँचा सकते हैं। अब हमें इसे व्यापक स्तर पर लागू करने की आवश्यकता है।
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