Headline reference: Gujarat tourism’s tagline, कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा
होती हैं मेरे दिन की शुरुआत
एक गरमा-गर्म चाय के कप के साथ
होटल की चाय पड़ जाती है महंगी
चर्चा के पहले आप भी एक चाय लेंगी, बहनजी?
चाय के उपरान्त चला आता हूँ मैं
कुछ देर हमीरसर तालाब के किनारे
भुज में इतने गाय और बैल हैं मानो
रात में हज़ारों चमकते सितारे
तपती धूप की किरणों के बीच
निकल पड़ता हूँ ढूंढने दिन का खाना
पर कभी दुकानें बंद मिली तो
मुश्किल हो जाता है बच्चों का पोषण पाना
महंगाई इतनी बढ़ गई है जनाब
क्या जवाब दे घरवालों को?
इन बाज़ारों की गलियों में भी
अक्सर हताश ही पाता हूँ खुद को
हाँ, हो जाता है छास और खाने का इंतज़ाम
जब मिल जाती है कभी खुली दुकानें…
गुजरात में ग़म को डुबाना नहीं आसान
वो क्या है कि ढूंढने पड़ते है यहाँ वैद्य मयखाने
सुना है इस राज्य के लोग
हमारे नाम पर मांगते फिरते है वोट
फिर कोई क्यों नहीं पूछता हमें
जब लग जाती है सड़क हादसों में चोट?
धर्म के नाम पर हमारा इस्तेमाल करके
करते है ये सब लोग बड़ी-बड़ी बातें
पर बेरोज़गारी के चलते कैसे हो गुज़ारा
यही सोचने में कटती है हमारी रातें
जिस देश में गाय को माता मानते है
उसकी एक गर्भवती गाय गुज़र जाती है कचरे की वजह से
प्लास्टिक और गंदगी तो हमारे लिए आम बात है
पर क्या ये तस्वीर आपको स्वच्छ भारत की एक अलग छवि दर्शाती है?
इस राज्य की आबादी तो ठीक-ठाक है
पर कितने ही रुकते है पूछने हमारा हाल?
मिल जाते है कभी कुछ सरफिरे इंडिया फैलो,
मिल जाता है उनसे आदर और प्यार, बेमिसाल…
पर समस्याओं का क्या है?
उनका न कोई अंत है, न कोई छोर…
हम तो अगली सुबह फिर निकलेंगे
अपने प्यारे हमीरसर की ओर
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