कुपोषण और क्षयरोग (टीबी)

by | Apr 20, 2023

राजस्थान का दक्षिणी क्षेत्र में कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याऐं हैं| मैं यहाँ बेसिक हेल्थकेयर सर्विसेज़ (BHS) नाम की संस्था के साथ एक नर्स के रूप में काम करता हूँ| एक नर्स की भूमिका में, मैं मरीज़ों की देखभाल करता हूँ| साथ ही में उनकी स्वास्थ्य और बीमारी पर चल रहे इलाज के लिए उनकी काउंसलिंग और होम विजिट भी करता हूँ| इससे मुझे एक मरीज़ की शारीरिक ,मानसिक और सामजिक परिस्थिति की जानकारी रहती है| मेरे कार्य के दौरान में कई मरीज़ों से मिलता हूँ जिन्हें अन्य प्रकार की बिमारियाँ होती है| इनमें से क्षयरोग या टीबी और कुपोषण के बारे मे मैं अपने कुछ अनुभवों को साझा करना चाहूँगा|

क्षयरोग/ ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) का निवारण

हम टीबी को देश से केसे उखाड़ कर फेक सकते है उसपे कुछ विचार :

  1. चिकित्सकीय सुविधाए 2 सप्ताह से ज्यादा खाशी होने पर तुरंत sputum की जांच कराई जाए. इस जाँच को नकारा नही जाए| कई बार मरीज बहुत उम्मीदों के साथ हॉस्पिटल जाता है लेकिन उसकी समस्या को नकारा जाता है| इससे मरीज demotive हो जाता है| मरीज के साथ सम्मानजनक भाषा मे बात की जाए| Sputum टेस्ट के लिए CBNAAT मशीन की संख्या बढ़ाई जाए जिससे मरीज को समय पर रिपोर्ट मिले। साथ ही में sputum टेस्ट के लिए समय की पाबंदी नही रखी जाए।समय पर उनका टेस्ट किया जाए। टीबी के मरीजों को हॉस्पिटल मे सुविधा मिलती है उन सेवाओं मे इजाफा किया जाए।
  2. पोषण अभी सरकार द्वारा पोषण के लिए टीबी मरीज़ों को 500 रुपए दिये जा रहे है।लेकिन उससे पूरा पोषण नही मिल पाता है। हम कई बार मरीज़ों से पोषण की बात करते है लेकिन सच ये है की बहुत बार उन्हें उनके गांव में/घर पर पौष्टिक खाने की चीजे नही मिल पाती है। ज्यादातर मरीज सिर्फ हमारी बात सुनकर हा हा करते है। मरीज को मार्केट की खाने की चीज़ें नही लाकर, घर के आस पास मिलनेवाली पौष्टिक पदार्थों की जानकारी दी जाए। इससे पोषण प्राप्त करना सस्ता रहेगा।और एक उपाय है की सरकार इन्हें पोषण बेग दे जिससे उन्हें पोषण सीधा मिल पाएगा।
  3. मिथ्य – टीबी के बारे मे कम्यूनिटी मे कई मिथ्य है। लोग टीबी मरीज के घर पर पानी तक पीना नही चाहते है। इसी वजह से कई मरीज दवाई छोड देते है।कई मरीज़ मंदिर मे जाकर गुमराह होते है।इसके लिए हम लोगो को सीधा मंदिर जाने का विरोध नही करे। हम उनको मंदिर जाने के साथ साथ दवाई खाना भी क्यों जरुरी है, इसकी जानकारी दे।
  4. मानसिक सपोर्ट – मरीज खुद को अकेला या डरा हुआ महसूस करता है। इस दौरान हमको मरीज के साथ लगातार फॉलो-अप करना जरुरी है। उनका दवाई के प्रति विश्वास बनाए रखना बहुत जरूरी होता है। मरीज़ के इलाज मे उसके परिवार के सदस्यों का उसके साथ जुड़ा रहना भी जरूरी होता है। हर बार फॉलो-अप मे मरीज का होसला बढ़ाना भी बहुत जरूरी होता है जिससे वह खुद को मोटिवाटेड महसूस करे। फॉलो अप बढ़ाए जाए। जरूरत होने पर मरीज को तुरंत हॉस्पिटल पहुचाए। मरीज को बीमारी के विज्ञान के बारे मे जरूर बताया जाए। 
  5. आर्थिक स्थिति – मरीज़ की आर्थिक स्थिति भी कमजोर होने से मरीज़ कई बार हॉस्पिटल नही पहुँच पते है क्योंकि मरीज को और उनके परिवार को सरकार की योजनाओं का पूर्ण रूप से पता नही होता है। मरीज़ को लगता है की हॉस्पिटल जाने पर बहुत रुपए खर्च होंगे और जिससे उन्हें कर्जा उठाना पड़ेगा। इस हेतु मरीज़ को सरकार की सभी योजना से जुडवाना और उनको इस बारे मे पूरी जानकारी देना भी जरूरी है।

कुपोषण

राजस्थान में 5 साल से कम उम्र के बच्चों में, 100 में से 9 बच्चे SAM (Severe Acute Malnutrition) से पीड़ित होते हैं। उदयपुर के ग्रामीण क्षेत्र में, पूरे राज्य के औसत के मुक़ाबले, ज़्यादा SAM बच्चे हैं- 100 में से 12 बच्चे SAM से ग्रिसत है। जो बच्चे सामान्यतः पोषित हो, उनके मुक़ाबले SAM बच्चों में मृत्यु का ख़तरा 12 गुना ज़्यादा होता है।

SAM को स्वीकार करना मुश्किल होता है क्यो की कई बार यह बिना किसी लक्षण के होता है, इसीलिए कई बार माता पिता SAM को स्वीकार नही कर पाते है। कई बार क्लीनिक पर बच्चों के माता-पिता अन्य समस्याओं को लेकर आते है। तब पता चलता है जिससे घर वाले सिर्फ बच्चे की बीमारी पर ही ध्यान देते है जब तक बच्चा बीमार होता है। तब तक ही उस पर ध्यान दिया जाता है फिर उसके कुपोषण पर ध्यान नही दिया जाता है।

कुपोषण के कारण

  • जन्म के समय बच्चे का वजन 2.5 kg से कम होना
  • Birth asphyxia (साँस न ले पाने की स्थिति)
  • माँ को कुपोषण
  • परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होना

कुपोषण से होने वाले नुकसान

  • बच्चे का growth and development उम्र के अनुसार नही हो पाना
  • बार-बार बीमार होना
  • कई बार मृत्यु भी हो सकती

एक बच्चे की कहानी

यह कहानी BHS द्वारा उदयपुर के ग्रामीण इलाके मे संचालित मानपुर क्लीनिक की है।मैं अपने ड्यूटि के दौरान क्लीनिक पर बेठा हुआ था। मैं अपने किसी काम मे व्यस्त था. अचानक मेरी नजर एक माँ पर पड़ी।वह माँ करीब आधे घंटे से मेरे सामने बेठी हुई थी। जब मैंने देखा और पूछा की केसे आना हुआ तब उन्होंने अपने चद्दर मे ढके हुए बच्चे को बताया फिर मेने उनसे बात शुरू की।उनके बच्चे की उम्र तकरीबन 14 महीने थी और वजन 5.6 ग्राम था।

मैंने बच्चे के सभी vitals चेक किए।बच्चा बहुत कमजोर था जिस कारन उसकी वृद्धि और विकास रुका हुआ था।मैंने बच्चे की माँ को सभी बाते बताई।माँ के साथ उसका बड़ा बेटा भी था जो की 7 साल का था।पूछने पर पता चला की वह भी कमजोर था और इसी क्लीनिक पर सही हुआ था।मैंने जब उनकी घर की हालत के बारे मे पूछने पर पता चला की पति कमाता नही है. इसके कारन माँ को मजदूरी कर के घर का भरण-पोषण करना पड़ता है।

यह जानकारी मिलने के बाद, मेरी पूरी टीम ने उनके घर की विजिट का प्लान बनाया। साथ ही में माँ को अच्छे से counselling की गयी उस पर माँ जरूरत होने पर बच्चे को क्लीनिक लाने को भी तैयार हुई।बच्चे के लिए rutf (ready-to-use therapeutic food) दिया गया जो की पोषण से भरपूर होता है।साथ ही घर पर खाने के लिए ऊपरी आहार भी दिया गया। लगातार फॉलो अप और पोषण से बच्चे का वजन 4 महीनो मे बढ़कर 8.2 kg हो गया।बच्चे की माँ बहुत खुश थी और हम भी उस बच्चे को देख कर खुश थे।

SAM को कम करने हेतु कुछ सुझाव

  • Early detection of pregnancy को बढ़ाया जाए।
  • माँ के anaemia को सही किया जाए।
  • समुदाय मे बच्चो की स्क्रीनिंग बढ़ाई जाए।
  • कई बार SAM बच्चा कुछ दिन तक तो आता है लेकिन कुछ दिन बाद वह सही होने पर छूट जाता है. SAM की पहचान होने के बाद उसके लगातार फॉलो अप को भी बढ़ाया जाए।
  • SAM के उपचार के लिए एक सरल तरीका निकाल कर भी SAM को कम किया जा सकता है।

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