उत्तराखंड के किसानों का जीवन

by | Aug 24, 2018

आपकी उम्र चाहे जो भी हो, आपका पेशा (occupation) चाहे जो भी हो, आप शहर में रहते हो या गांव या कस्बे में. क्या आप अपने दैनिक जीवन की कल्पना बिना फल-सब्जियों, अन्न तथा दूध का कर सकते हैं? बेशक आपका जवाब होगा, नहीं. हमें अपने दैनिक जीवन में एक डॉक्टर, वकील, ऑफिसर, राजनेता, अकाउंटेंट या किसी अन्य पेशेवर व्यक्तियों का शायद ही जरूरत पड़ता है. पर प्रत्येक दिन हममें से हर एक व्यक्ति किसी न किसी रूप से किसान के साथ अवश्य जुड़ा हुआ है. लंबी-चौड़ी, झूठे और मीठे भाषण देने वाले राजनेता, डिंगे हांकने वाले ऑफिसर, अपने आप को बुद्धिजीवी एवं चिल्ला-चिल्लाकर देश का कर्ता-धर्ता मानने वाले लोग, हर किसी के जीवन गति मंद पड़ जाएगी यदि किसानों ने उनसे मुंह मोड़ लिया तो. पर क्या आप जानते हैं कि देश के ज्यादातर किसानों की स्थिति एवं जीवनचर्या कितना दुष्कर होता है? उनके आर्थिक हालात कितने दयनीय होते हैं? देश की लगभग हर राजनीतिक दल किसानों एवं कृषि पर राजनीति करती है, बयानबाजी और भाषणबाजी करती है पर देश के आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी अधिकांशतः किसानों के माली हालात खस्ताहाल हैं.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2014 में 5650 किसानों ने तो 2004 में 18241 किसानों ने आत्महत्या की है. 2009 से 2016 के बीच में अकेले महाराष्ट्र में 23000 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है. यह महज एक आँकडे़ नहीं है जो अखबार के पन्नों पर या समाचार चैनल पर आये दिन दिखाये जाते हैं. बहुत कुछ कहते हैं ये आँकड़े, किसानों की स्थिति एवं मजबूरी की दास्तां बयान करते हैं यह आँकड़े. देश की कुल आबादी का लगभग 65 से 70 फ़ीसदी आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर से कृषि पर निर्भर है और जिस देश में इतनी बड़ी संख्या में लोग किसी एक क्षेत्र से जुड़े हों और उनमें से ज्यादातर लोगों की हालत दयनीय हो, ऐसे में देश के समग्र विकास की कल्पना करना भी मुश्किल लगता है.

अनुभव एवं अवलोकन

इन दिनों मैं उत्तराखंड (कुमाऊं मंडल) के गांवों में रह रहा हूं, और यहां रहने वाले 80 फ़ीसदी से अधिक लोग प्रत्यक्ष तौर पर खेती से जुड़े हैं. यहां की जमीन उपजाऊ है और इसमें कई तरह के फसल होते हैं. आड़ू (peach), खुबानी (apricot), बेर, आम, लीची, नाशपाती, अखरोट, इत्यादि जैसे फल तो बैंगन, टमाटर, आलू, प्याज, शिमला मिर्च, टमाटर, इत्यादि जैसे सब्जियों के अलावा राजमा, मलका, तहत, भट्ट, मटर, मसाले जैसे कई अनेक प्रकार के फसल होते हैं.

इन गांवों में सप्ताहांत में मनोरंजन के लिए मल्टीप्लेक्स, पार्क, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, मॉल, इत्यादि जैसे चीजों का कोई विकल्प नहीं है. अतः मैं इन छुट्टियों के दिनों में पहाड़ों, खेतों और गांव में भ्रमण करता हूं. खेतों में दर्जनों किसानों से मिलता हुँ, जिज्ञासावश उनसे सवाल करता हूं. और मैंने महसूस किया है कि खेतों में मेरे जैसे नए, बाहरी एवं शहरी व्यक्ति को देखकर उनके चेहरे पर कुछ पल के लिए मुस्कान आ जाता है.

महिला एवं पुरुष दोनों साथ मिलकर खेतों में काम करते हैं, एक किसान सुबह जल्दी जागते हैं और सुबह से लेकर रात के 8:00-9:00 बजे तक अपने कार्य में लगे रहते हैं. इनके दिनचर्या में बेहद कठिन शारीरिक परिश्रम शामिल होता है. खेतों में काम करना, मवेशियों के लिए चारा और पानी लाना, घरेलू कार्य के अलावा भी कई तरह के काम करते हैं. इस तकनीकी और आधुनिक युग में अभी भी इन गांवों के ज्यादातर घरों में खाना बनाने के लिए लकड़ी का ही इंधन के रूप में इस्तेमाल होता है. इसके लिये लोग जंगल से लकड़ियां काट कर बेहद मेहनत से इसे घर तक लाते हैं. जिस आसानी से हमारे और आपके घरों/फ्लैटों में नल और चापाकल से पानी मिल जाता है, यहां इतनी आसानी से इन किसानों या ग्रामीणों को पानी नहीं मिलता. यहां लोगों को सार्वजनिक नल, चापाकल, नॉले {ऐसी जगह जहां भूमिगत जल (groundwater) निकलता हो} या गधेरा (mountain stream) से पानी भरकर लाना पड़ता.

यहाँ अभी भी बड़ी संख्या में किसान खेतों/फसलों की सिंचाई के लिए वर्षा जल पर निर्भर हैं, जिसकी वजह से कई बार इनके जीवन में विकट परिस्थिति उत्पन्न हो जाता है. देश और दुनिया में ट्रैक्टर, थ्रेसर (harvesting machine), जनरेटर, इत्यादि जैसे कई तरह के खेती के तकनीकी उपकरण उपलब्ध होने के बावजूद अभी भी यहां लगभग 98 फ़ीसदी से अधिक किसान हल-बैल तथा अपने शारीरिक परिश्रम पर ही निर्भर हैं. इतनी कठिन परिश्रम एवं नगदी फसल उपजाने के बावजूद ज्यादातर किसानों की जीवन शैली एवं आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर एवं निम्न स्तर का है. परिणामस्वरुप इस इलाके में बेहद कम ही ऐसे लोग हैं या यूं कहूं गिने चुने लोग हैं जो अपने बच्चे को बेहतर एवं उच्च शिक्षा दिला पाने में सक्षम हैं. रोजगार के उचित अवसर ना होने के कारण तथा खेती में नुकसान होने के कारण इधर के लोग पलायन (migration) के लिए विवश हैं.एक संवेदनशील इंसान होने के नाते मुझे किसानों की यह कमजोर एवं दयनीय स्थिति बेहद बुरा लगता है तथा एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते किसानों की यह कमजोर स्थिति अपने देश के विकास में अवरोधक लगता है.

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