अक्सर मैंने अपने आसपास से कई लोगों को कहते सुना है, मैं इंग्लिश बोलना चाहता हूं, गिटार बजाना सीखना चाहता हूं, डाँस, बुक रीडिंग, मेडिटेशन, योगा, और भी बहुत कुछ की शुरुआत करना चाहता हूं. पर उनमें से ज्यादातर लोग शायद ही कभी वह चीज सीख पाते हैं, अधिकांश लोग तो उन चीजों की शुरुआत भी नहीं कर पाते हैं. इसकी वजह क्या है? शायद उनके बहाने (excuses) और टालमटोल (procrastination) उनके चाहतों या इच्छाओं से ज्यादा बड़ा और मजबूत होता है. इस लेखन टुकड़े में मैं साझा कर रहा हूं कुछ ऐसे सामान्य व्यक्तियों की सामान्य कहानियां जिनकी चाहत उनके बहाने एवं टालमटोल से बड़ा था और कई मायनों में मैं इनके कहानीयों से प्रभावित हुआ हूं.
गीता एवं बृजमोहन जोशी:- गीता एवं बृजमोहन जोशी पति-पत्नी हैं, तथा हिमालयन पब्लिक स्कुल सुयालगढ़ नामक एक एनजीओ के सह-संस्थापक हैं. पेशे से दोनों महज एक सामान्य कृषक हैं पर उनके विचार और कार्य उन्हें औरों से अलग करता है. आज उनके प्रयासों से लगभग 150 बच्चे को उनके घर के पास गाँव में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा मिल रही है. तथा लगभग 20 लोगों को रोजगार मिला हुआ है. दोनों काफी मेहनती एवं लगनशील इंसान हैं. एक दूरस्थ ग्रामीण इलाका से ताल्लुक रखने के बावजूद उनमें जो खुलापन एवं अपनापन है, वह काबिले तारीफ एवं अनुकरण करने योग्य है. गीता जी लगभग हर दिन एक साथ कुशल गृहिणी, शिक्षिका तथा समाज सेविका की भूमिका अदा करती हैं, वहीं बृजमोहन जोशी एक जिम्मेदार गृहस्थ एवं समाज सेवी का. इन दोनों के द्वारा स्थापित स्कूल में देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से कई लोग अक्सर भ्रमण एवं कार्यों के सिलसिले में आते रहते हैं तथा इन दोनों के चारित्रिक गुणों से प्रभावित होकर वापस जाते हैं. जोशी जी एंड टीम के प्रयासों की बदौलत बिना किसी फर्नीचर, इमारत और शैक्षणिक सामग्रीयों के तथा सिर्फ़ एक शिक्षक के साथ शुरू किये गये स्कूल में वर्तमान में दर्जनों लैपटॉप, कंप्यूटर, टैबलेट्स, पाठ्य तथा खेल सामग्रीयाँ है, 15 शिक्षक सहित वर्तमान में विद्यालय की दो शाखाएँ हैं. पेशे से आम किसान, यह जोड़ा अपने प्रयासों से समुदाय में शिक्षा और प्रेम फैला रहा है।

अपने खेत में चाय का आनंद लेते बृजमोहन व गीता जोशी.
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बची गिरी गोस्वामी:– उत्तराखंड राज्य के एक बेहद सुदूर गांव से ताल्लुक रखने वाले बची गिरी 70 वर्ष से अधिक पुरानी तथा महात्मा गांधी जी के बेहद करीबी रहे सरला बहन द्वारा स्थापित संस्था लक्ष्मी आश्रम में कार्यरत हैं. बची गिरी जी इस संस्था में 20 वर्ष से अधिक समय से अपनी सेवा दे रहे हैं. यह आश्रम उत्तराखंड के बागेश्वर जिला के कौसाणि नामक कस्बे में अवस्थित है. आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि कौसानी (जिसे महात्मा गांधी ने स्विट्ज़रलैंड ऑफ इंडिया कहा था) एक बेहद लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है. इस वजह से वहां हर वर्ष हजारों पर्यटक भ्रमण के लिए आते रहते हैं जहां हर बस हजारों में बाहरी लोग आते जाते हो वहां संस्कृति वातावरण एवं अन्य चीजों का बदलना बहुत सामान्य सी बात है बच्ची ने देखा कि कैसे पर्यटकों के प्रभाव से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है कुमाऊनी अर्थात स्थानीय समुदाय के संस्कृति में बदलाव आ रहे हैं स्थानीय युवा पर्यटकों की देखा देखी कर रहें हैं. इस बात से वे चिंतित हुए और अपने विचारों को कविता के रूप में लिखने और व्यक्त करने लगे. बची गिरी बताते हैं कि उन्हें बचपन से ही जंगलों, पहाड़ों एवं कुमाऊंनी संस्कृति से प्रेम है. विकास के नाम पर जंगलों एवं पहाड़ों की अंधाधुंध हो रही कटाई देखकर उन्हें अक्सर तकलीफ होता है.
बच्ची गिरी का बचपन व युवावस्था बेहद आर्थिक तंगी में बीता. घर में आजीविका चलाने के लिए खेतों में कठिन परिश्रम किया ,खेतों में कार्य करते हुए जंगलों में मवेशी चराते हुए जब भी उन्हें फुर्सत मिलता वह अपने विचारों को पन्नों पर व्यक्त करने लग जाते. बच्ची गिरी की अभिलाषा तो थी, अपनी रचनाओं को प्रकाशित करने का पर उनकी आर्थिक स्थिति इसकी अनुमति नहीं दे रहा था. बाद में 2012 में संस्कृतिक विभाग उत्तराखंड ने उनके अभिलाषा को बल दिया तथा उनकी रचनाओं को काव्य संग्रह के रूप में प्रकाशित करने के लिए आर्थिक सहायता मुहैया कराया. इसके बाद बची जी के बारे में कई स्थानीय समाचार पत्रों में लिखा गया, T.V. चैनलों पर दिखाया गया. बच्ची जी को आज कई संगोष्ठी एवं सम्मेलनों से उनके प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया जाता है. बची गिरी का दूसरा काव्यसंग्रह भी तैयार है, एवं वो उसके प्रकाशन के लिए प्रयासरत हैं.
मैंने बहुत से लोगों को अपनी ख्वाहिशों एवं सपनों का छोटे-मोटे चुनौतियों का सामना करने के बाद कत्ल करते देखा है, पर बची गिरी ने अपने कवि बनने की चाहत को कठिन परिस्थितियों एवं चुनौतियों के बावजूद जिंदा रखा.

अपने कविताओं का अर्थ सनझाते बची गिरी
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पूरन पांडे:- पूरन पांडे हमारे इस लेखन टुकड़े के तीसरे किरदार हैं. पूरन से मेरा पहला मुलाकात स्टारगेट ऑब्जर्वेटरी कौसानी में हुआ. जहां वह मेरे से पहले पहुंचे दर्जनों पर्यटकों को टेलिस्कोप की मदद से आकाश में चांद-तारे एवं खगोलीय वस्तुएँ दिखा रहे थे. जब तक मेरी बारी आती उनके ऑटोमेटिक टेलिस्कोप की बैटरी डिस्चार्ज हो चुका था. वो मैन्युअली मुझे चीजें दिखाने की कोशिश करने लगे, मैंने Venus, Mars, चाँद, तथा स्टार के कुछ क्लस्टर्स देखें. फिर उन्होंने मुझे अगले दिन वापस आने के लिए बोला. तब तक हमने आपस में बातचीत करना शुरू कर दिया था. यह जानकर मैं बेहद प्रभावित हुआ कि महज 3 बर्ष के छोटे से समय अवधि में खगोलशास्त्र के बारे में वो बेहद कुछ जानते हैं. बचपन से मेरी अवधारणा है कि खगोलशास्त्र विज्ञान का एक बेहद कठिन एवं जटिल शाखा है. जो चीज आपको बहुत कठिन लगती हो और उसे बेहद कम औपचारिक पढ़ाई करने वाला कोई बंदा अत्यंत कुशलतापूर्वक बताये तो आश्चर्यचकित होना सामान्य सी बात है.
अब तक पूरन के बारे में और ज्यादा जानने के लिए मेरा उत्सुकता और ज्यादा बढ़ गया था. महज 9 वर्ष की उम्र में पूरन के पिताजी का देहांत हो गया था. 4 भाई बहनों में पूरन सबसे बड़े थे और इस कारण घर की जिम्मेदारियों का भार उनके कंधों पर था. जीवन बेहद संघर्षमय था. तभी लक्ष्मी आश्रम के सदस्यों को पूरन के पारिवारिक स्थिति के बारे में पता चला और सहयोग के तौर पर दोनों बहनों को लक्ष्मी आश्रम में रखने की सलाह दी. लक्ष्मी आश्रम जो कि गांधीजी के विचारों पर आधारित एक आश्रम है जहां जरूरतमंद लड़कियों के लिए आवास, भोजन, गांधी जी द्वारा सुझाए गए शिक्षा पद्धति पर शिक्षा निःशुल्क में मुहैया कराया जाता है. कुछ समय बाद पूरन भी लक्ष्मी आश्रम से स्वयंसेवी के तौर पर जुड़ गये. और वहाँ उनकी मुलाकात रामाशीष रॉय नामक एक व्यक्ति से हुयी।
बाद में रामाशीष रॉय ने ही पूरन का परिचय टेलीस्कोप और खगोलशास्त्र से करवाया. पूरन बेहद तन्मयता के साथ इस विद्या को सीखने लगे और कुछ ही महीनों में पर्यटकों को भी, ग्रह, तारे, नक्षत्र, इत्यादि दिखाने लगे. धीरे-धीरे पर्यटकों के सवालों ने उन्हें सीखने में मदद की और उन्हें अधिक परिपक्व बनाया. पिछले 3 वर्षों में पूरन के पास 20,000 से अधिक पर्यटक आ चुके हैं. आज दर्जनों उच्च शिक्षित लोग भी पूरन से खगोलीय चीजों के बारे में राय लेते हैं.

पर्यटकों के साथ पूरन.
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