एवरेज ज़िंदगी

by | Jun 22, 2020

“पटेल एक बेनसन” मैंने कहा।
पटेल ने मेरी ओर एक नज़र देखा और अपने हाथों के आगे रखी डिबिया में से एक सिगरेट निकाल मेरी ओर सरका दी। मैंने सिगरेट अपने होठों के बीच फँसाई और लाइटर से जलाकर एक लम्बा कश लेते हुए कहा,
“एक मिनट मेड पन आपी दो” 

निम्बू से बने इस ड्रिंक का मैं शौक़िया नहीं था मगर गर्मी के दिनों में कभी कभार मैं इसे पी लिया करता था। अहमदाबाद की गरमियाँ आपको वो सब चीज़ों की आदत डलवा देती है जिन्हें आप पसंद नहीं करते। मैं ये ड्रिंक इसीलिए पीता था कयोंकि ये अहमदाबाद में अपने पहले दिनों की याद दिला देता था। शायद उन्ही दिनों किसी दोस्त ने मुझे ये पहली बार पिलाया था। हम अक्सर बुरे दिनों में वो चीज़ें करते है जो हमें अच्छे दिनों की याद दिलाती हो। 

मैं सामने बनी सीढ़ियों में से एक को झाड़ कर उस पर बैठ गया और अपनी सिगरेट और ड्रिंक साथ-साथ पीने लगा। पत्थर की सीढ़ियां काफ़ी ज़्यादा गर्म थी मगर मेरी थकान ने मुझे आलसी बना दिया था। पटेल की दुकान मेरे अपार्टमेंट के गेट के ठीक सामने थी। अक्सर इस समय कॉलेज से लौटते वक्त मैं पटेल के यहाँ से सिगरेटें ले कर सीधा रूम पर चला जाता था, मगर आज का दिन अलग मालूम हो रहा था। पटेल भी मुझे देख हैरान हो रहे  थे । उनकी आँखें बार-बार मुझपर पड़ती, उनमें असमंजसता झलक रही थी। मुझे एक बार के लिए लगा वे आज मुझसे सिगरेट और मिनट मेड के पैसे भी नहीं माँगेगे । मैं जनता था अगर ऐसा होता भी तो अगली बार वह मुझे याद ज़रूर दिलाते।

मैंने सिगरेट पीकर बुझा दी और पूरी बोतल एक घूँट में ख़त्म करदी। 4 बेनसन और ली और अपने बैग के साइड पॉकेट में ढकेल दी । पैसे देकर अपने अपार्टमेंट की पार्किंग की ओर बढ़ गया । उन दिनों मैं बजाज पल्सर की गोल हेडलाइट वाले मॉडल की सवारी करता था । यूँ तो ये मॉडल काफी पुराना था मगर मैं इसका शौकीन बचपन से ही था ।  चलाने का मौका पहली बार कॉलेज में आकर मिला । बाइक पार्क कर मैं अपना बैग संभालते हुए लिफ्ट की ओर चलने लगा । शाम के 5 बज रहे थे, कुछ बूढ़े लोग अपनी छड़ी लिए और पैरों में हवाई चप्पल डाले सैर करने निकल रहे थे । लिफ्ट का रास्ता लॉबी से होकर आता था।

बिल्डिंग के इस एरिया में हमेशा एक अजीब सी महक आती रहती थी। जैसे कोई पुराने सामान को बड़े दिन बाद धोने पर आती है। मिटटी और गीले जालों की महक। मैंने कभी उसका स्त्रोत जानने की कोशिश नहीं की| क्योंकि उस एरिया में कभी भी धूप नहीं गिरती थी, वह शायद पूरी तरह सूख नहीं पाता था और इसी कारण से वह महक भी हमेशा वहाँ रहती थी। हम भी जान नहीं पाते जब कभी हम ज़िन्दगी से ऊबना शुरू कर देते हैं| अजीब सी महक फैल जाती है। शायद हम उन चीज़ों से कुछ ज़्यादा दिन ही दूर रह लेते हैं जो हमारे मन को आलोकित करती है। 

लिफ्ट तक पहुंचकर मैंने बटन दबाया मगर मालूम पड़ा कि लिफ्ट फिर ख़राब है। अब तक मेरे चेहरे से पसीने की बूँदें बनकर कॉलर तक सररकने लगी थी। मुझे हमेशा धूप से छाँव में आने पर ऐसा होता है। मैंने अपने बैग को एक कंधे पर अटका रखा था। उसे अपने से सटा कर मैं सीढिया चढ़ने लगा। मेरी आदत है सीढियाँ चढ़ते वक्त मैं हर कदम में एक सीढ़ी छोड़कर चढ़ता हूँ। चाहे कितना भी थका क्यों न हूँ। चौथे फ्लोर तक पहुँचते मेरे चेहरे से सरकी पसीने की बूंद मुझे छाती से पेट तक जाती हुई महसूस हुई। मैंने शर्ट को उस जगह दबा कर उसे सोख लिया। जीन्स के पॉकेट से चाबी निकाल मैंने रूम का दरवाज़ा खोला। एक ठंडी हवा का झोंका मेरे चेहरे को चूम कर गुज़रा। मेरी सारी थकान एक लम्हे के लिए गायब सी हो गई।

हमारे रूम के हॉल की तस्वीर, सितंबर 2016

उस फ्लैट में हम 4 लोग रहते थे। बाकी के तीनों लड़के मुझसे उम्र में बड़े थे और जॉब करते थे। मैंने कॉलेज के लोग साथ न रहने का निर्णय ले रखा था क्योंकि मुझे घर में कॉलेज की बातों से दूर रहना पसंद था। वैसे ही जैसे काम और घर को मिलाने पर इंसान ज़्यादा जल्दी थक जाता है और रिजुविनेट होने में ज़्यादा वक्त लेता है।

मैंने बैग सोफे के एक कोने पर फेका और दूसरी तरफ बैठ गया। अपने जूते निकाल मैंने दरवाज़े के आगे ढकेल दिए। जुराब भी पसीने से गीले हो चुके थे। उन्हें भी उतारकर मैंने वही फेक दिए।

आम तौर से घर इतना ठंडा नहीं रहता था इसीलिए मैं जूते निकाल सीधा फ्रिज से पानी की बोतल लेने चल देता था मगर उस दिन मैं सोफे पर ही बैठा रहा। सोफे के सामने एक कांच की टेबल रखी रहती थी। उसपर टाइम्स का अख़बार और एक फॉसिल घडी का स्टील का डब्बा रखा हुआ था जिसे हम ऐश ट्रे की तरह इस्तेमाल करते थे। स्मोकर्स हमेशा किसी भी बक्से को ऐश ट्रे बनाने से नहीं चूकते। मैंने उन दोनों को एक तरफ किया और अपने पैर टेबल पर रखकर सोफे से थोड़ा सरक गया। पास ही फैन का स्विच था मगर मुझे उसकी ज़रूरत महसूस नहीं हुई शायद इसीलिए भी क्योंकि मुझे पता था कि कुछ देर बाद मैं सिगरेट जलाऊंगा और फैन ऑफ करना होगा।

मैंने बैग से ईयरफोन्स निकाल अपने कानो में डाल लिए और फ़ोन से जोड़ पिंक फ्लॉयड की प्लेलिस्ट लगा दी। मेरी आँखें सीधी फैन को घूर रहीं थीं, मैंने आँखें बंद कर ली और एक लम्बी सांस ली। मुझे अपने बदन पर तो गर्म हवा कहीं-कहीं महसूस हो रही थी मगर सांस एकदम शीतल लगी। मैं सोच में डूब रहा था।

मेरे कमरे की तस्वीर, सितंबर 2016

आज कॉलेज में गुज़रे दिन से मैं थोड़ा खफा सा था। मालूम नहीं शायद मैं दिन से या अपने आप से खफा था। मैं मास्टर्स के आखरी सेमेस्टर में था और मेरे साथ के सभी स्टूडेंट्स अपनी थीसिस और जॉब सर्च में लगे थे। थीसिस में तो मैं भी लगा हुआ था मगर जॉब ढूंढ़ने में मेरी कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी। और ये बात अब मुझे खटकने लगी थी। मैं इस गैर दिलचस्पी की वजह समझ नहीं पा रहा था। उस दिन दो स्टूडेंट्स के जॉब लगने की खबर ने मुझे इसपर सोचने के लिए और मजबूर कर दिया था। 

बचपन से ही मैं एक एवरेज स्टूडेंट रहा हूँ। स्कूल में हर विषय में हमेशा पासिंग मार्क से थोड़ा ऊपर और टॉप मार्क्स से कई कम के रेंज में रहता था। मेरे माँ-बाप इसी में खुश थे की मैं पास हो रहा हूँ। खेलकूद में भी मैं दिलचस्पी रखता था मगर किसी भी खेल में औरों से बेहतर हूँ ये कहना मुश्किल था। कॉलेज में भी मैंने हर साल एवरेज मार्क्स लाकर पहले बैचलर्स के आठ सेमेस्टर और फिर मास्टर्स के तीन सेमेस्टर निकाल ही लिए थे। मुझे पता था की ये सेमेस्टर भी निकाल लूंगा और डिग्री मिल जाएगी। ‘मास्टर्स की डिग्री’ सुनने में काफी बड़ी चीज़ मालूम होती है, बचपन में कभी सोच भी नहीं सकता था की मैं किसी भी विषय में मास्टर्स की डिग्री हासिल कर सकता हूँ। मगर अब उसे हासिल करने से महज़ कुछ महीने दूर था। एवरेज मार्क्स से होगा ये भी जनता था।

मगर एवरेज होने का एक बहुत ही बड़ा दुर्भागय है। आप अगर किसी भी चीज़ में फेल होते हो तो आपको पता चलता है आप उसमे अभी इतने मुकम्मल नहीं हो, और आपको समझ आता है की आपको कहा आगे बढ़ना है। और अगर आप किसी विषय में बेहतरीन मार्क्स लाते हो तो आपको उसमे रूचि होने का पता चलता है। मगर एवरेज होने पर ये सवाल बस सवाल ही रह जाता है। गिलास जब खाली होता है तो उसमे पानी भरने की जगह पूरी होती है और जब वह पूरा भरा होता है तो किसी की प्यास बुझा सकता है।  मगर वह गिलास अगर आधा भरा हो तो कैसे कह सकते है उसे और पानी भरने की ज़रूरत है या उतना पानी प्यास बुझाने के लिए काफी है|

जो भी बात थी उस समय मैं खुद से यही सवाल कर रहा था की क्या एवरेज होना मुझे अपनी दिलचपियों को ढूंढने से दूर रख रही है| मैं बहुत देर सोच में रहा। प्लेलिस्ट ख़त्म हो हुई, गाना बजना बंद हो गया – कम्फर्टेबली नम्ब।

मैंने बैग के साइड पॉकेट से  सिगरेट निकालकर अपने होंठों के बीच रख ली और अपने कमरे में लाइटर ढूंढ़ने चला आया। ए.सी ऑन था। मुझे समझ आया क्यों पूरे घर में ठंडी हवा ठहर-ठहर कर चल रही थी। मैंने सिरहाने को हटाकर नीचे दबे लाइटर को उठा अपनी सिगरेट जलाई और एक लम्बा कश लिया।

Stay in the loop…

Latest stories and insights from India Fellow delivered in your inbox.

0 Comments

Submit a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

%d bloggers like this: