कर्मा फिल्म का यह डायलॉग उन बच्चों के लिए बहुत उचित है, जो अपने बचपन में स्कूल या घर पर कॉर्पोरल पनिशमेंट का शिकार रहे हैं. मैं मैथ में बहुत कमज़ोर था, और इस कमज़ोरी की वजह से लम्बे समय तक दिन में ३ बार पीटा जाता था. एक बार सुबह स्कूल की मैथ क्लास में, फिर दोपहार में उन्हीं टीचर से कोचिंग में और फिर कभी-कबार घर पर. दिन में ३ बार पिटने पर भी यह समझ में नहीं आया कि इस पिटाई को सिर्फ पिटाई ही कहते हैं या कुछ और. इस कारण इसे पिटाई ही मान लिया.
कॉर्पोरल पनिशमेंट: यह अलफ़ाज़ पहली मर्तबा सुना जब फ़ेलोशिप की तैयारी कर रहा था. NCF 2005 में पहली बार इसे पढ़ा तो समझ आया कि उस कुटाई को कॉर्पोरल पनिशमेंट कहते है. चलिए जो हुआ सो हुआ. अब तो चिड़िया चुग गई खेत. अब बात समझने की ये है कि जो बच्चे पढ़ाई में कमज़ोर हैं, क्या उनको पीटना ज़रूरी है. क्या इससे सब कुछ उनके समझ में आ जाएगा. पिटने पर तो वह बच्चा कुछ समय या शायद हमेशा के लिए डर कर चुप हो जाये लेकिन उसे कांसेप्ट समझ में नहीं आएगा. मुझे अच्छी तरह से याद है कि मैं मैथ की क्लास में कभी सवाल पूछने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाया. टीचर का इतना खौफ़ था कि लगता था एयरोप्लेन में सफर कर रहा हूँ जो हाईजैक हो गया है.
हर तरफ सन्नाटा, इतना कि सतपुड़ा के जंगल भी उसके सामने हार मान लें. बच्चे थर-थर कांपते थे कि कहीं पेरेंट्स टीचर मीटिंग में पापा मैथ टीचर से न मिल लें. वह मिलन घर जाकर बहुत खतरनाक साबित होता था. हद तो तब हो गई जब एक बार मैथ टीचर ने मुझे पीटने के लिए अपना हाथ उठाया लेकिन इससे पहले कि उनका थप्पड़ मुझ तलक पहुँचता, मैं तपाक से नीचे बैठ गया और बेचारा मेरे बराबर में खड़ा लड़का पिट गया. बस फिर क्या था. मेरी इस हरकत से वह इतना ग़ुस्साये कि मार-मार कर मेरा कचूमर निकाल दिया.
ज़रा सोचिए इतने ख़ौफ़ज़दा माहौल में क्या पढ़ाई होगी, जहाँ बच्चे सवाल पूछने से डरें. हमें रटाया गया कि टू टू ज़ा फ़ोर. अब ये ‘ज़ा’ क्या होता है? मुझे अभी थोड़े दिन पहले ही पता लगा है कि ये ‘ज़ा’ नहीं बल्की ‘आर’ होता है, मतलब two two’s आर 4. यह तो हाल है. क्लास में बिना डरे टीचर से सवाल पूछना बहुत ज़रूरी होता है.
यह अमूमन तौर पर देखा गया है कि जो बच्चे कॉर्पोरल पनिशमेंट का शिकार होते हैं, वो क्लास में बहुत चुपचाप और सहमे हुए रहते हैं. उनकी ये ख़ामोशी उनके खुद के लिए बहुत खतरनाक साबित होती है. वे अंदर ही अंदर घुट रहे होते हैं और अपनी बात किसी से शेयर करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. पढ़ाई में दिक्कतें होने के बाद भी वे उस बारे में किसी से बात नहीं कर पाते. यह ख़ामोशी उम्र भर उनके साथ रहती है.
स्कूल पास करके, कॉलेज व आगे की ज़िन्दगी में भी उनकी चुप्पी बरक़रार रहती है, जो उनके लिए कभी-कभी नुकसानदेह साबित होती है. स्कूल में पड़े उन थप्पड़ों की गूँज बहुत देर तलक उन्हें उन दिनों की याद दिलाती रहती है.
और भी कई आसान तरीक़े हैं बच्चों को समझाने के…
मेरे अपने कॉर्पोरल पनिशमेंट के तजुबे का नतीजा ऐसा है कि ज़्यादा शोर शराबा पसंद नहीं, किसी से घुलने मिलने में टाइम लेता हूँ, जल्दी किसी पर भरोसा नहीं कर पाता, खामोश तबियत रहना पसंद है, किसी पार्टी वगैरह में डांस या गाना गाने के लिए हिम्मत जुटानी पड़ती है जिसकी वजह से शायद लोग इंट्रोवर्ट भी कहते है और ज़्यादा भीड़ वाली जगह पसंद नहीं.
वक़्त के साथ हर चीज़ बदलती है. एक अच्छी बात ये है कि आजकल के पेरेंट्स ज़्यादा अवेयर हैं और ऊपरी तौर पर कॉर्पोरल पनिशमेंट को रोकने के लिए कुछ चुनिंदा स्कूलों में पहल हुई है. मगर ध्यान रहे कि यह स्कूल ज़्यादातर एलीट कैटिगरी के हैं, जहाँ बच्चे स्कूल के गेट के अंदर जाने के लिए बड़ी गाड़ियों से उतरते हैं. सरकारी स्कूल में जाकर देखेंगे तो हैरान रह जाएँगे.
ज़रूरी हैं के बच्चों के साथ नरम रवैया अपनाया जाए और अपना पेशेंस लेवल हाई रखा जाए, ताक़ि बच्चें आप से बात करने में घबराएं नहीं. उनके साथ बैठिये, उनकी परेशानी को समझिये कि वह कहाँ जूझ रहे हैं और फिर साथ मिल कर उसका हल निकालिए.
ऐसा करने के कई रास्ते हैं. मैं जिस संस्था में काम करता हूँ, उसका नाम है आविष्कार. यहाँ हम बच्चों के कांसेप्ट क्लैरिटी पर काम करते हैं, जिससे एक मुश्किल टॉपिक को छोटे टुकड़ों में तोड़कर, उन्हें समझाने के कोशिश की जाती है, और इस टॉपिक को उनकी रोज़मर्रा कि ज़िन्दगी से जोड़ा जाता है, जिससे उस सब्जेक्ट और उस टॉपिक में उनकी पकड़ व समझ ज़्यादा अच्छी बने. आविष्कार ख़ासकर साइंस और मैथ पर काम करता है, क्योंकि देखा गया है कि इन्हीं दो विषयों में बच्चे को सबसे ज़्यादा डर लगता है.
कॉर्पोरल पनिशमेंट के बारे में मैंने एक और सज्जन से भी बात की जो हमारी संस्था में म्युनिक से आए थे. उन्होंने बतलाया कि उनके देश जर्मनी में ऐसी पनिशमेंट का कोई चलन नहीं है. हद से हद अगर किसी बच्चे की बात या हरकत टीचर को बहुत नागावार गुज़रती है तो वह उस बच्चे को सिर्फ हाथ या पीठ पर थपथपा सकता है. और अगर कोई टीचर कॉर्पोरल पनिशमेंट देते हुए पाया जाता है तो उसपे कड़ी करवाई होती है.
यहाँ मैं आपको एक विडियो दिखाना चाहूँगा:
इस वीडियो में हम लोग अपनी कमर पर एक-एक डोरी बांधते हैं, जो एक पेन से बंधी हैं. उस पेन के नीचे एक बोतल रखी है. हमें मिलकर करना यह है कि उस पेन को उस बोतल में डालना है. यहाँ हम लोग पेरेंट्स या समाज को दर्शा रहे हैं और बोतल एक बच्चा है जिसे हम सब कहीं ले जाना चाहते हैं. इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सभी को सब्र रखना बेहद ज़रूरी है और मार-पिटाई इसका उपाय नहीं है.
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