हमारे देश में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) सन 2005 में लागू हुआ था। कोटडा आदिवासी संस्थान के साथ काम करते हुए मुझे मालूम हुआ कि इसके पहले राजस्थान के उदयपुर जिले में क्या स्थिति थी। इस कानून के आने से पहले आम आदमी को काम मिलना मुश्किल था। गांव में अकाल राहत नाम से एक योजना थी जिसके जरिये लोगों को काम दिया जाता था। इस योजना में सभी लोगों को काम नहीं मिलता था।

जिनके पास काम है, वे जिन्हें पहचानते थे या जो उनके करीबी थे उन्हें ही काम मिलता था। उस वज़ह से काम करने के लिए लोग गांव से बाहर शहरों में जाया करते थे। वहाँ उन्हें कई साल परिवार से दूर रहकर काम करना पड़ता था। कुछ सालों बाद नया कानून आया लेकिन यह स्थिति आज भी उदयपुर के कोटडा तहसील के कुछ गावों में है।

आप लोग सोच रहे होंगे कि मनरेगा और अकाल राहत में क्या फ़र्क़ है। दोनों से ही मजदूरों को काम मिलता है, फिर इस कानून की क्या ज़रूरत थी. अकाल राहत सरकार की एक योजना थी पर मनरेगा कानून है जिसमें काम न होने पर मजदूर काम मांग सकता है। कोटडा में आज भी बाहर जाकर दूसरे शहरों या राज्यों में काम करने जाने वालों की कमी नहीं है। यहाँ से गुजरात बॉर्डर पास ही है। कुछ लोग रोज़ गुजरात की तरफ आना-जान करते हैं जहाँ उन्हें मनरेगा के तहत राजस्थान से ज़्यादा मजदूरी मिलती है

राजस्थान में एक दिन काम करने के 221 रु और गुजरात में 268 रु अगर यह प्रवासी मज़दूर कोटडा में रहकर ही काम करें तो वह मजदूर यहीं अपनी आजीविका जारी रख सकते हैं। गुजरात जाकर उन्हें 268 रु मजदूरी तो मिल जाती है पर वहां जाने और वापस आने में रोज़ 80 से 100 रु तक पैसे ख़र्च हो जाते है। एक दिन की कमाई बचती है 168 से 188 रु इसमें इन मजदूरों का नुक़सान हो रहा है।

इसी वज़ह से कोटडा आदिवासी संस्थान ने यहा के लोगों से बात करना शुरू किया। बात करके समझ आया कि ज़्यादातर मजदूरों में महिलाएं काम करने गुजरात जा रही हैं। तब संस्था द्वारा महिला संघ को काम-मांगो-प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया गया। कोटडा में अलग-अलग क्षेत्र में कार्यकर्ता महिलाओं से बात करके उन्हें मीटिंग के बारे में बताते थे। इंडिया फेलो होने के कारण मुझे भी इस प्रशिक्षण का हिस्सा बनने का मौका मिला।

इस प्रशिक्षण में महिलाओं को मनरेगा कानून के बारे में बताया जाता है, और उनसे राजस्थान में काम न करने की वज़ह समझी जाती है उन्हें कोटडा में काम करने के लिए जो समस्याएं आती हैं, उसपर चर्चा करके उस के निवारण के लिए काम किया जाता है।

मनरेगा कानून में काम करने के लिए एक जॉब कार्ड बनाया जाता है। यह जॉब कार्ड 18 या 18 से अधिक उम्र वालों को ही दिया जाता है। 0 से 18 साल के बच्चों को यह कार्ड नहीं मिलता क्योंकि वह बाल श्रम कहलायेगा। मनरेगा कानून की मदद से जॉब कार्ड धारक एक साल में 100 दिन के लिए काम मांग सकते हैं जिसके लिए वह एक फॉर्म भरते हैं। फॉर्म भरते ही 15 दिन के अंदर उन्हें काम मिल सकता है। यह फॉर्म पंचायत में जमा करने के बाद हमे रसीद मिलती है। अगर 15 दिन में काम नहीं मिला तो उस व्यक्ति को न्यूनतम मजदूरी का 25% बेरोजगार भत्ते के रूप में मिलना चाहिए। यदि काम करते समय किसी को कुछ हानी हो जाती है तो उसे 25 हज़ार रु मिलने चाहिए।

मनरेगा के अनुसार आपके काम मांगने पर आपको आपकी पंचायत से 5 किलोमीटर की दूरी तक काम दिया जाता है। अगर आपको उससे ज़्यादा दूर काम दिया जाए तो आपकी मजदूरी पर 10% ज़्यादा पैसे आपको दिया जाना चाहिए। साथ ही चाय और शुद्ध पीने का पानी। अगर किसी महिला का बच्चा छोटा है तो उनके बच्चे की देखभाल के लिए किसी को रखे जाने की सुविधा भी मिलती है।

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प्रशिक्षण के दौरान सरफ़राज़ जी, मेरे मेंटर यह बाते सभी महिलाओं को बता रहे थे। उस दौरान उन्होंने कहा कि आप सब लोग जितना काम करोगे उतना ही दाम आपको मिलेगा। इसीलिए कम काम करने पर पैसे भी कम मिलते है। उन्होंने महिलाओं को सलाह दी कि उन्हें 5-5 महिलाओं का समूह बनाकर आपस में तय करके काम लेना चाहिए और वह पूरा करके देना चाहिए। तभी उन्हें पूरा पैसा मिलेगा।

यह बोलने के बाद महिलाओं ने सवाल पूछना शुरू किया। उन्होंने अपनी समस्याएं रखी। एक महिला ने कहा कि वह अभी भी समूह बनाकर ही काम करते हैं; तय करके काम लेते है और देते भी है। लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि उनके साथी जो काम करने आते थे, उनका नाम रजिस्टर में लिखा जाता है पर उनकी जगह कोई और काम करता है, तो उन्हें पूरा पैसे नहीं मिलता। कुछ महिलाओं से समझ आया कि उन्हें कोटडा में काम करने पर राजस्थान सरकार से वक़्त पर पैसा नहीं मिलता है, इसीलिए कम ही सही पर गुजरात की तरफ़ तुरंत पैसा मिल जाता है। इस पैसे से वह घर खर्च कर सकते हैं। इन्हीं सब कारणों की वजह से वे बाहर जाना पसंद करते हैं।

सुझाव के तौर पे सरफ़राज़ जी ने कहा कि अगर रजिस्टर में किसी और का नाम है और अलग व्यक्ति आपके समूह में काम कर रहा है तो यह ज़िम्मेदारी आपकी है कि आप उनका नाम लिखवाएं। काम करते समय अगर उस व्यक्ति को कुछ हो जाता है तो सवाल आप पर भी उठेगा।

कम पैसे मिलने वालों के साथ चर्चा के लिए कोटडा तहसील के ग्राम विकास अधिकारी को आमंत्रित किया गया था। उन्होंने महिलाओं से बात करते हुए उन्हें उनका पैसा वक़्त पर देने का विश्वास दिलाया। अधिकारी का महिलाओं से उनकी समस्या पूछना और उन्हें आश्वासन देना महिलाओं को अच्छा लगा। इसके बाद अधिकारी ने मनरेगा के ऐप के बारे में बताया जिसमे ऑनलाइन हाज़िरी लगा सकते हैं ताकि उसके साथ कोई बदलाव न कर सके। इसी के साथ उन्होंने कहा कि मनरेगा में पुरूषों से ज़्यादा महिलाओं का काम जिमेदारी से होता है।

कोटडा आदिवासी संस्थान ने उस दिन के बाद हर गांव में काम-मांगो-अभियान शुरू किया जिससे लोगों को मनरेगा के बारे में जानकारी मिले। इस जानकारी की मदद से अगर उन्हें कोटडा में ही रहकर काम करते रहने का मौका मिले, और बाकर जाकर काम करने की ज़रूरत न पड़े तो हमारी पहल कामयाब होगी।

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